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________________ श्री राजेन्द्र नवयुवक परिषद् का उद्गम एवं विस्तार भंवरलाल छाजेड़ मानव स्वभाव बड़ा विचित्र है। क्षण भर में जिस वस्तु की आशंका होती है वह प्राप्त होते ही नई वस्तु की आकांक्षा पुनः अंकुरित हो उठती है । जीवन भर यही क्रम चलता रहता है और मनुष्य जीने के प्रयत्न में ही उसे समाप्त कर देता है । प्रवर्तमान भौतिकवादी युग में मनुप्य की लोभ लिप्सा में वृद्धि हुई है। आचरण में गिरावट आई है और आदर्श दिखावा मात्र का रह गया है। समाज विशृंखलित हुवा है तथा भौतिक सुख साधनों की होड़ में मनुष्य स्वकेन्द्रित होता जा रहा है। उसे न भूखे पड़ौसी की चिन्ता है न दुःखी समाज की। उसे केवल अपनी चिंता है। दूसरे का शोषण करके किस प्रकार अधिक सुख सुविधाएं प्राप्त की जा सकती हैं इसी प्रतिस्पर्धा में मानवीय मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है । जो भावी विश्व एवं समाज के लिये चुनौती है। विश्व में अनेक सामाजिक संस्थाएं समाज को आदर्श रूप में परिवर्तित करने हेतु सतत प्रयत्नशील हैं। कुछ सामाजिक संस्थाओं ने कठोर परिश्रम करके समाज के कई अंगों को पतानोन्मुख होने से बचाया है। फिर भी आज ऐसी अनेक संस्थाओं की आवश्यकता है जो समाज को सुशिक्षित, सुसंगठित, समृद्ध और सुसंस्कृत बनाने के प्रयत्न करे। महापुरुषों की चेतना बड़ी विलक्षण होती है । वे भविष्य को वर्तमान में ही मूर्तरूप में देखने की क्षमता रखते हैं। भविष्य की कठिनाइयों एवं आपदाओं को हमारे समक्ष प्रदर्शित कर जाते हैं। इन्हीं सभी संभावनाओं को देखते हुए प्रात: स्मरणीय परम पूज्य श्री आचार्यदेव १००८ श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज साहब ने अखिल मालव मेवाड़ प्रान्तीय श्री राजेन्द्र जैन नवयवक परिषद की स्थापना कर अखिल भारतीय होने की आशा के साथ अपने आशीर्वाद के साथ समाज को नई चेतना, संगठन, सुशिक्षा, समृद्धि के भाव समाज के कर्णधार नवयुवकों में उत्साहित करके एक अलौकिक प्रेरणा का संचार किया। गुरुदेव ने परिषद की स्थापना में इस बात पर विशेष बल देते हुए कहा कि समाज में ऐसी कई संस्थाओं का उदय हुआ और वे अस्त हुई। उसका मुख्य कारण यह रहा कि उनको सबल, स्वस्थ मार्ग दर्शन का अभाव रहा था उन्हें प्रोत्साहित नहीं किया गया। जिससे वे समाज की सेवा नहीं कर सकीं । अतः हमें राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद की स्थापना के साथ इसके उद्देश्यों के दीपप्रज्वलित करना पड़ेंगे जिनके प्रकाश में यह संस्था समाज का मार्ग प्रशस्त करती रहे और अखिल भारतीय स्वरूप प्राप्त कर सके। गुरुदेव ने परिषद की स्थापना के साथ उसके साथ चार उद्देश्यों को बताते हुए उस तरफ गतिशीलता का संदेश दिया। चार उद्देश्य हैं:१. समाज संगठन, २. समाज सुधार, ३. धार्मिक शिक्षा प्रसार एवं ४. आर्थिक विकास। हमारी सबकी उपस्थिति की शुभ घड़ी में दीप प्रज्वलित करके इसका सारा बोझ समाज के कर्णधारों, सतत प्रयत्नशील नवयुवकों के कंधों पर डाल दिया गया। तबसे समाज के कर्णधार उत्साही समाज सेवा एकजुट होकर जी-जान से इस प्रयत्न में लग गये कि वह रोशनी बुझ न जाये बल्कि उसके प्रकाश में समाज का छोटा से छोटा प्राणी भी अमन चैन की सांस ले सके तथा धार्मिक भावनाओं को मन में संजोये हुए कुरीतियों तथा निष्कर्षों को त्यागता रहे । मन, वचन, काया से सन्मार्ग का अनुसरण कर सके। वी.नि. सं. २५०३/ख-६ ३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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