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________________ कार्यकर्तागण अपने व्यावसायिक कार्यों में ही संरत रहने लगे। केन्द्रीय कार्य समिति की बैठक भी नहीं हुई । कहीं-कहीं शाखाएँ कार्य करती रहीं किन्तु उनमें विशेष प्राण नहीं था। मार्ग-दर्शन के अभाव में परिषद् के जीवन का कृष्ण पक्ष प्रारम्भ हो गया । आपसी सम्पर्क टूटने लगा । नियमित सदस्यता अवरुद्ध हो गई। फिर भी परिषद् दीप की टिमटिमाती लौ मारवाड़ बागरा (राजस्थान) में तेजी से ऊवित होती रही। बागरा शाखा परिषद् ने समाज क्रांति के निनाद की प्रतिध्वनि की । पूरी ढंढार पट्टी में एक चेतना सी फैल गई । समाज के पुराने बन्धन चरमराकर गिरने लगे । सुधार का परिवर्तन सामने आया । पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज मधुकर' ने पुन: मालव क्षेत्र में पदार्पण किया। १९७० तक परिषद् धुंधली हो चुकी थी। उनने कार्यकर्ताओं को जगाकर समाज सेवा के महायज्ञ में जुटने के लिये प्रेरित किया । परिषद् के कार्यकर्ता श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर एकत्र हुए। श्री मधुकरजी की मधुरवाणी ने कर्तव्यपथ पर जुट जाने की गर्जना की । कार्यकर्ताओं ने अलसायापन दूर करने की तत्परता दिखाई । सभी ने खड़े होकर पूज्य गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज के समाधि मन्दिर के सम्मुख प्रतिज्ञा की कि वे कर्त्तव्यमार्ग से पराङ मुख नहीं होंगे। बैठक में इस तथ्य के प्रति काफी खेद था कि जिस परिषद् ने उन्हें विकास से परिपूर्ण किया है, उस परिषद् के प्रति वे उदासीन हो गये । एक ही स्वर गूंजने लगा । जब जागे तभी सवेरा ।" नैराश्यता व उदासीनता को समाप्त करने की तैयारी से परिषद् के प्रति आशाओं का नया धरातल खड़ा हो गया। नई तदर्थ समिति का गठन किया गया । श्री भंवरलालजी छाजेड़ (नीमच) संयोजक के रूप में मनोनीत किये गये। इसके साथ ही परिषद् के मुखपत्र 'शाश्वत धर्म' का प्रकाशन भी नियमित किया गया । उसके प्रकाशन में आर्थिक अभाव के कारण गतिरोध ने जन्म ले लिया था । इस अवरोध को दूर करने हेतु पूज्य मुनिराज श्री जयंतविजयजी महाराज ‘मधुकर' ने सदुपदेश दिये । शाश्वत धर्म को पाक्षिक रूप में प्रकाशित करने के लिये निर्णय किया गया । शाश्वत धर्म की स्थापना भी पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने की थी। वे अपने सामने ही इसे एक सशक्त, समुन्नत एवं स्तरयुक्त साहित्यिक तथा सामाजिक प्रवक्ता के रूप में देखना चाहते थे । पूज्य श्री मधुकरजी ने उनकी इस कल्पना को शाश्वत धर्म के कलेवर में साकार करने के लिये इसे जीवनदान दिया। नव पीढ़ी में धार्मिक संस्कारों के सिंचन एवं युवाओं को ज्ञान, दर्शन, चारित्र की प्रभावना से श्रद्धायुक्त सम्बन्धित करने के लिये त्रिस्तुतिक जैन श्वेताम्बर समाज में जैन धार्मिक शिक्षण शिविर का पहला प्रयोग पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महा. के सदुपदेश से अ. भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् ने श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में करने की घोषणा की । परमपूज्य आचार्य देव श्रीमद् विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वर जी महा. के तत्वावधान में १९७१ के मई-जून मास में शिविर का एक मास की अवधि के लिये श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर आयोजन सम्पन्न हुआ। जिसे पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर' ने वाचना प्रदान की। शिविर का संचालन श्री सुरेन्द्र लोढ़ा (मंदसौर) ने किया। शिविर में ८४ छात्रों ने नियमित दिनचर्या, आध्यत्मिक हवामान तथा नैतिक वातावरण के मध्य जैन संस्कृति के विविध विषयों का पारदर्शन प्राप्त किया। इस अवसर पर अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् की बैठक हुई जिसमें श्री महेन्द्रकुमार भंडारी (झाबुआ) को संयोजक नियुक्त किया गया। पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज "मधुकर" के उज्जन चतुर्मास काल में ही शिविरार्थियों का सम्मेलन आयोजित किया गया । इसी अवसर पर अखिल भारतीय श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद् का आठवां अधिवेशन सम्पन्न हुआ। शिविरार्थियों ने परिषद् के कार्य संचालन में भाग लेने का आश्वासन अर्पित किया। इन समस्त प्रयत्नों के बावजूद परिषद् पर लगा कृष्ण पक्ष व्यतीत नहीं हुआ। समय की नियति प्रबल है । जिस परिषद् के नाम पर समाज का कण-कण उबाल लेता था, उसमें पुनर्गठन के प्रयत्न बारम्बार निरुपयोगी बन रहे थे । समाज स्वयं अपेक्षा कर रहा था कि परिषद् के अन्तरिक्ष में विकास का चन्द्र उदित होगा और शुक्ल पक्ष का चक्र गतिमान होगा । अपेक्षा वर्षों तक आस लगाये बैठी रहती है । महिने और समय के चक्र के साथ वर्ष व्यतीत होने लगे । परिषद् की कतिपय शाखाओं में सक्रियता आने लगी। कार्यकर्ता स्वतः इसकी आवश्यकता अनुभूत करने लगे । पूज्य मनिराज श्री मधकरजी का दिव्य उपदेश रंग लाने लगा। १९७४ के मई मास की चार व पांच तारीख को जावरा में परिषद् का नवां अधिवेशन आयोजित किये जाने का साहस किया गया। दृढ़ संकल्प और आत्मविश्वास के साथ उठाया गया इस बार का कदम परिषद् के ग्रयोगों को बदलने वाला साबित हुआ । इससे पूर्व रतलाम नगर में परिषद् कार्यकर्ताओं की एक बैठक सम्पन्न हुई जिसमें पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी 'मधुकर' ने कार्यकर्ताओं को गुरुदेव की वाणी, परिषद् के उद्देश्य, परिषद् कार्यकर्ताओं द्वारा एकाधिक लिये गये संकल्पों का स्मरण करवाया। खाचरौद में सम्पन्न परिषद् कार्यसमिति की बैठक में जावरा परिषद् की ओर से आमंत्रण दिया गया कि गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वर जी महाराज की क्रियोद्धारभूमि पर निर्मित विशाल दादावाड़ी के पवित्र प्रांगण में ही परिषद् का पुनर्जन्म किया जावे । रतलाम की बैठक में डॉ. श्री प्रेमसिंह जी राठौड़ (रतलाम) को परिषद् का संयोजक मनोनीत किया गया। म. प्र. राज्य परिवहन कर्मचारियों की हड़ताल चल रही थी। यातायात साधन ठप्प पड़े हुए थे। शिविर स्थल तक पहुँचने में काफी असुविधा थी लेकिन भारी संख्या में कार्यकर्ता एकत्र हुए। पूज्य मुनिराज श्री जयन्तविजयजी महाराज 'मधुकर', पूज्य मुनिराज श्री लक्ष्मण विजयजी म., पूज्य मुनिराज श्री नित्यानंद, श्री विजयजी तथा पूज्य मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर २४ राजेन्द्र-ज्योति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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