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________________ तत्राऽलीराजपुर निवासिना श्वेतांबर जैन संघेन धर्मशालाss राम कृपद्वय समन्वितं पुरातन जिनालयस्य जीर्णोद्धारमकारयत् । प्रतिष्ठा चास्य वेदनिधिनन्देन्दुतमे विक्रमादित्य वत्सरे मार्गशीर्ष शुक्ला दशम्यां चन्द्रवासरेऽतिबलवत्तरे शुभलग्न नवांशेऽष्टाह्निक महोत्सवैः सहाऽऽलीराजपुर जैन श्री संघेनैव सूरिशकचऋतिलकाय मानानां श्री सौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसकानां विश्वपूज्यानामाबालब्रह्मचारिणां प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वराणामन्तेवासीनां व्याख्यान वाचस्पति महोपाध्याय बिरुदधारिणां श्रीमद्यतीन्द्र विजय मुनि पुङ्गवानां करकमलेन कारयत् ।। इस प्रकार लक्ष्मणी तीर्थ पुनः उद्धरित हुआ। इस तीर्थ के उद्धार का संपूर्ण श्रेय श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज को ही है। लक्ष्मणी तीर्थ का वर्तमान रूप यह तो अनुभव सिद्ध बात है कि जहाँ जैसी हवा एवं जैसा खानपान व वातावरण होता है वहाँ रहने वाले का स्वास्थ्य भी उसी के अनुसार होता है। आधुनिक वैद्य एवं डॉक्टरों का भी यही अभिप्राय है कि जहां का हवापानी एवं वातावरण शुद्ध होता है। वहाँ पर रहने वाले लोग प्रसन्न रहते हैं। लक्ष्मणी तीर्थ यद्यपि पहाड़ी पर नहीं है। फिर भी वहाँ की हवा इतनी मधुर, शीतल और सुहावनी है कि वहाँ से हटने का दिल ही नहीं होता। वहाँ का पानी पाचन शक्ति बर्धक है; इसलिए वहाँ रहने वाले का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। इस समय तीर्थ की स्थिति बहुत अच्छी है। आवास, निवास और भोजन की सुविधा वहाँ उपलब्ध है। विशाल धर्मशाला है और भोजनशाला भी है। यहाँ पर पूज्य श्री राजेन्द्रसूरिजी महाराज-गुरु मंदिर है और पावापुरी जलमंदिर की संगमरमर प्रस्तर प्रतिकृति भी बनाई गई है। इसके अलावा श्रीपाल और मयणासुंदरी के जीवन प्रसंगों पर आधारित भित्ति पट्ट भी तैयार किये गये हैं; जो दर्शनीय हैं। लक्ष्मणीजी जाने के लिए दाहोद रेल्वे स्टेशन पर उतरना पड़ता है। दाहोद स्टेशन पश्चिम रेल्वे के बंबई-दिल्ली मार्ग पर स्थित है। दाहोद से अलिराजपुर के लिए बस-सेवा उपलब्ध है। अलिराजपुर से लक्ष्मणी के लिए भी बस सेवा उपलब्ध है। लक्ष्मणीजी तीर्थ में भी बिछौने-बर्तन आदि सब साधन यात्रियों के लिए उपलब्ध हैं। पूज्यपाद श्रीमद्विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी महाराज द्वारा उद्धरित लक्ष्मणी तीर्थ आज एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थान बन गया है। यहां पर जो गुरु मंदिर बनाया गया उसके निर्माण में अलीराजपुर की श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद की शाखा ने सराहनीय सहयोग दिया। परिषद के सदस्यों ने बड़ी मेहनत उठाई। उसी प्रकार श्री पन्नालालजी, श्री भूरालालजी, श्री जिनेंद्रकुमारजी, श्री कुंदनलाल काकडीवाला, श्री जयंतीलालजी श्री नथमलजी, श्री ओच्छवलालजी तथा श्री सुभाषचन्द्रजी आदि अलीराजपुर निवासियों का इस तीर्थ के प्रति लगनशील उत्साह है। तीर्थ व्यवस्था एवं देखभाल के लिए ये लोग समय समय पर तीर्थ की यात्रा करते रहते हैं। इसी लक्ष्मणी तीर्थ में श्री अखिल भारतीय राजेन्द्र जैन नवयुवक परिपद का दसवां अधिवेशन बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुआ। इस अधिवेशन में देश के कोने कोने से सैकड़ों प्रतिनिधियों ने भाग लिया था । सांडेराव के जिनमंदिर वैद्यराज चुनीलाल २. श्री आदिजिन मंदिर ___ संवत् १९७३ में उपाध्यायजी श्री मोहनविजयजी महाराज के उपदेश से यहां के वांकली वास में शाह मोतीजी वरदाजी फालनीया के परिवार द्वारा श्री आदि जिन प्रसाद का महर्त हआ था। संवत १९८८ में माघ सुदी ६ के दिन शा. गणेशमलजी जवेरचन्दजी गुलाबचन्दजी के श्रेयार्थ जवेरचन्दजी के दत्तकपुत्र श्री ताराचन्दजी और उनकी माता हांसीबाई द्वारा इस मंदिर की प्रतिष्ठा की गई और ध्वजदण्ड चढ़ाया गया। सांडेराव एक प्राचीन नगर है और फालना रेल्वे स्टेशन से छह मील की दूरी पर स्थित है। सांडेराव का प्राचीन नाम संडेरक नगर है। संडेरगच्छ की स्थापना यहीं पर हई थी। यहां त्रिस्ततिक संप्रदाय के तीस घर हैं और राजेन्द्र भवन नामक उपाश्रय भी है। १. श्री शांतिनाथ जिन मंदिर इस मंदिर में पहले भगवान पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित थी। लगभग एक हजार वर्ष पहले परम प्रभावक तपस्वी श्री यशोभद्रसूरीजी महाराज ने यह प्रतिमा जीर्ण हो जाने के कारण इसे उत्थापित कर इसकी जगह भगवान महावीर की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई। पर यह प्रतिमा भी जीर्ण हो जाने के कारण लगभग पांच सौ साल पहले इसकी जगह पर मूल नायक श्री शांतिनाथ भगवान की मति प्रतिष्ठित की गई थी। यह मंदिर जमीन की सतह से छह फीट नीचे है और वर्षा का सब पानी जमीन के अंदर ही निकालने की चमत्कारिक व्यवस्था है। इस मंदिर के अधिष्ठायक श्री माणिभद्रजी का यहां बड़ा प्रभाव है। कई यात्री यहां यात्रार्थ आते रहते हैं । करीब पन्द्रह साल पहले शा. प्रतापमलजी जसाजी फालनीया के श्रेयार्थ उनके दत्तक पुत्र श्री केसरीमलजी ने एक विगढ़ युक्त चवरी बनाई है उसमें बीच में श्री पार्श्वनाथ भगवान के बिंब की ओर दो जिनबिब स्थापित किये जायेंगे। मंदिर के पीछे के बगीचे में शाह बरदीचन्दजी मियाचन्दजी थाणे की पावड़ीवालों ने समवसरण बनवाया है वहां श्री ऋषभदेव भगवान की पादुकाएं स्थापित की जायेगी। बी.नि.सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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