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________________ छापर पुरि जिणु महिमावन्त, फटिक रयण कंतिहि झलकंत, चंदपणमेस ॥५॥ रणातु फतिरिहि चंद पास वीसी जिन पप्प डसणाउ ससिकंति । प्रणम संविनाह भानिहि, लालुदई हदरेर रंगिह आदि जिण बिम्बह नमंति || ६ || इस उद्धरण में शेखावाटी प्रदेश के अनेक छोटे-बड़े ग्रामनगरों का उल्लेख है, परन्तु नरहड़ (प्राचीन नरभट ) की कोई चर्चा नहीं है। विक्रम की सोलहवीं शती के प्रारंभ में या इससे पूर्व नरहड़ पठानों के हाथ में जा चुका था । वहां के वैष्णव मंदिर की कतिपय प्रतिमाएं, पाषाणखंड एवं शिलालेख वर्तमान में बिरलासंग्रहालय पिलानी में सुरक्षित हैं। इसी प्रकार इस गीतिका के प्रारंभ में अन्य स्थानों से लाकर झुंझुनु में स्थापित की गई जिनप्रतिमाओं की चर्चा है, वे आज भी सुरक्षित हैं । (जैनधर्म में स्त्रियों के अधिकार जिस प्रकार स्वार्थी पुरुष स्त्रियों के प्रति ऐसे निन्दा सूचक श्लोक रच सकते हैं उसी प्रकार स्त्रियां भी यदि ग्रन्थरचना करती तो वे भी यों लिख देतीं कि आपदामकरो नारी नारी नरकवर्तिनी । विनाशकारणं नारी नारी प्रत्यक्षराक्षसी ॥ १२८ कुछ जैन आधुनिक ग्रन्थकारों ने भी स्त्रियों के प्रति अत्यन्त कटु और अलोभन बातें लिख दी है। कहीं उन्हें 'बिष बेल' लिखा है तो कहीं 'जहरीली नागिन" लिख डाला है। कहीं उन्हें "विष बुझी कटारी" लिखा है तो कहीं "दुर्गुणों की खान" लिख दिया। मानो इसी के उत्तर स्वरूप एक वर्तमान कवि ने निम्नलिखित पंक्तियां निखी हैं- Jain Education International पुरुषो विपदां खानिः पुमान् नरकमद्वतिः । पुरुषः पापानां मूलं पुमान प्रत्यक्षराक्षसः । वीर बुद्ध अरु राम कृष्ण से अनुपम ज्ञानी । तिलक, गोखले, गांधी से अद्भुत गुण खानी ॥ पुरुष जाति गर्व कर रही है जिन के ऊपर । नारि जाति थी प्रथम शिक्षिका उनकी भूपर ॥ पकड़ एक उंगली हमको चलना सिखलाया । मधुर बोलना और प्रेम करना सिखलाया । उपर्युक्त सभी उद्धरण शेखावाटी और उसके आसपास के भू-भाग में निवास करने वाले जैन समाज की समृद्धि और धर्मप्रभावना पर अच्छा प्रकाश डालते हैं, परन्तु कालान्तर में यहां की जैन आबादी धीरे-धीरे व्यापार-व्यवसाय के लिये बड़ी संख्या में बाहर चली गई और वर्तमान में यह संख्या अधिक नहीं है । फिर भी शेखावाटी के जैन समाज का प्राचीन गौरव असाधारण रूप से महत्वपूर्ण है। अतः इस संबंध में योगनायक अनुसंधान कार्य की आवश्यकता है। यहां के प्राचीन स्थानों में, जिनकी अनेक चर्चा की गई है, जैन इतिहास की काफी सामग्री मिल सकती है । यहां पुराने मंदिरों एवं उपायों में विभिन्न महत्वपूर्ण ग्रन्थ भी मिल सकते हैं, जिनके सम्बन्ध में अभी तक खोज नहीं हुई है । आशा है, विद्वत् समाज इस दिशा में सचेष्ष्ट होगा । ६. वरदा (भाग १५ अंक २ अप्रैल-जून १९७२ में श्री अगरचंदजी नाहटा द्वारा प्रकाशित । पृष्ठ ८० का शेष) राजपूतिनी वेष धार मरना सिखलाया । व्याप्त हमारी हुई स्वर्ग अरु भू पर माया ॥ पुरुष वर्ग खेला गोदी में सतत हमारी । भले बना हो सम्प्रति हम पर अत्याचारी ॥ किन्तु यही सन्तोष हटी नहीं हम निज प्रण से पुरुष जाति क्या उऋण हो सकेगी इस ऋण से ।। भगवान महावीर के शासन में भगवान महावीर के शासन में महिलाओं के लिये बहुत उच्च स्थान है। महावीर स्वामी ने स्वयं अनेक महिलाओं का उद्धार किया था । चन्दना सती को एक विद्याधर उठा ले गया था, वहां से वह भीलों के पंजे में फंस गई। जब वह जैसे-तैसे छूट कर आई तो स्वार्थी समाज ने उसे शंका की दृष्टि से देखा । बाद में एक जगह उसे दासी के स्थान पर दीनतापूर्ण स्थान मिला। उसे सब तिरस्कृत करते थे । ऐसी स्थिति में भी भगवान महावीर ने उसके हाथ से आहार ग्रहण किया और वह भगवान महावीर के संघ में सर्वश्रेष्ठ आर्थिक हो गई। इस कथांश से भी सिद्ध है कि जैन धर्म में महिलाओं को उतना ही उच्च स्थान प्राप्त है जितना कि पुरुषों को । For Private & Personal Use Only राजेन्द्र ज्योति www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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