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________________ है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अपने लक्ष्यबिन्दुओं पर सजग परिषद् का सर्वत्र प्रसार हुआ है। यह उस नाम की महिमा है और एक मंगलमय संकेत है। हमारा कर्तव्य है कि हम इसे और व्यापक, प्रबुद्ध और प्रगतिशील बनायें । पूज्यपाद शासन प्रभावक कविरत्न वर्तमानाचार्य श्रीमद् विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी म. के शुभाशीर्वादों से परिषद् की निरन्तर प्रगति हो रही है। इन्हीं वर्तमानाचापेथी की शुनामा से इस वर्ष मुनिराज श्री जयन्तविजयजी "मधुकर", मुनिश्री विनयविजयजी म., मुनिश्री नित्यानन्द विजयजी का रतलाम नगर में चातुर्मास हुआ। यह योग अनेक शुभ योगों का सुखद संयोग लेकर आया । परिषद् का केन्द्रीय कार्यालय श्रीमोहनखेड़ा तीर्थ है, किन्तु उपकेन्द्र रतलाम होने से पूज्य मुनिश्री का चातुर्मास परिषद् के लिए विशेष वरदान रूप सिद्ध हुआ । पूज्य मुनिश्री के नगर प्रवेश के बाद हमने उनसे परिषद् के सम्बन्ध में विविध दृष्टियों से विचार-विमर्श किया, अतः हमें उनका मार्गदर्शन एवं सहयोग अबाध - अनवरत रूप में मिलता रहा। पूज्य मुनिश्री "मधुकर" जी ने ज्ञान- संवर्द्धन की योजनाओं को विशेषतः अपनाने और क्रियान्वित करने की प्रेरणा दी। परिषद् ने उनके सत्परामर्श को मूर्त रूप देने का सुदृढ़ संकल्प भी प्रस्तुत किया। विविध आयोजनाओं और संकल्पनाओं में एक यह भी थी कि पू. पा. श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म. के जन्म को १५० वर्ष हो रहे हैं अतः परिषद् के माध्यम से इस अवसर पर एक स्मारक ग्रन्थ क्यों न प्रकाशित किया जाए ? बात सम्मान्य और अनुकरणीय थी अतः योजना बनायी गयी और तदनुसार कार्यक्रम को मूर्तरूप देने के लिए परिषद की ओर से हमें इस कार्य हेतु नियुक्त किया गया। पूज्यपाद वर्तमानाचार्य श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी म. के शुभाशीर्वाद एवं मुनिश्री जयन्तविज"मधुकर" की बलवती प्रेरणा के साथ हमने उक्त गुरुतर कार्य का सूत्रपात किया । प्रसन्नता है कि परिषद् ने हममें योग्यता एवं विश्वास रख जो कार्य सौंपा था, उसका निर्वाह हमने यथामति, यथाशक्ति किया है। वह कैसा रहा, इसका मूल्यांकन प्रस्तुत ग्रन्थ के माध्यम से ही संभव होगा । प. पू. मुनिराज श्री जयन्त विजयजी "मधुकर" को तो हम कदापि विस्मृत नहीं कर सकेंगे, जिन्होंने हमारे इस गुरुवार कार्य में अनुपम, अनुक्षण उल्लेखनीय मार्गदर्शन एवं सहयोग प्रदान किया है। उसी के फलस्वरूप आज हम अपने गन्तव्य तक पहुँच सके हैं, कहें, सफलतापूर्वक पहुँच सके हैं । यहाँ हम उन्हें नहीं भुला सकते, जिन्होंने हमारे इस गुरुतर, गहन कार्य को संस्था का आदेश मानकर अपना अभूतपूर्व सहयोग दिया है। ऐसे व्यक्तियों में प्रमुख हैं "श्री राजेन्द्र- ज्योति" के कोषाध्यष श्री शान्तिलालजी सुराणा, जिन्होंने हमारे उत्साह को प्रतिपल, प्रतिपग बनाये रखा और इस कार्य को संपन्न करने में अपूर्व योगदान किया । परिषद् के उपाध्यक्ष श्री जे. के. संघवी एवं श्री रमेश झवेरी को भी हम इन क्षणों में नहीं बिसार सकते, जिन्होंने यहाँ एवं बम्बई रहकर श्रीराजेन्द्र ज्योति के गुजराती-खण्ड के प्रकाशन में अभिनन्दनीय सहयोग प्रदान किया । जैन समान के अग्रणी और 'प्रबुद्ध जीवन' जैसे प्रशस्त गुजराती पाक्षिक (बम्बई) के विद्वान सम्पादक श्री चिमनलाल चकुभाई शाह के भी हम हृदय से कृतज्ञ हैं जिन्होंने गुजराती खण्ड के भुद्रण में हमें तत्पर एव अविस्मरणीय सहयोग प्रदान किया है। बी. नि. सं. २५०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only P www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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