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________________ रुगनाथमल, जुगराज द्वारा गौ सेवागृह का निर्माण कराया गया। शाह रतनचन्दजी जीवाजीने जसीबाई कन्या विद्यालय एवं उच्च विद्यालय में विज्ञान कक्ष के दो कमरे बना कर राजस्थान सरकार को भेंट किए। रेवतड़ा ग्राम रेवतड़ा राजस्थान के जिला जालोर में स्थित है । जालोर से लगभग ३५ किलोमीटर की दूरी पर बसा है । बस मार्ग है । इस ग्राम में त्रिस्तुतिक आम्नाय के ११० कुटुम्ब हैं। आचार्य देव श्रीमद् विजय धनचन्द्रसूरीश्वर द्वारा प्रतिष्ठापित आदीश्वर भगवान का भव्य जिनालय है। इसका निर्माण सं० १९७५ में हुआ । जिनालय के पार्श्व में धर्मशाला है। सं० २०२५ में शाह भारतमलजी भगाजी ने वर्षीतप, बीस स्थानकतप, ज्ञानपंचमी, नवपद आदि तपस्या की पूर्णाहुति के अवसर पर अट्ठाईस महोत्सव एवं उद्यापन आयोजित किये । सं. २०२८ में वर्तमानाचार्यश्री के सदुपदेश से शाह इन्द्रमल, सुखराज, भारतमल, पारसमल, रिखबचन्द, रुगनाथमल, जुगराज, वेदसुता परिवार ने श्री शत्रुजय, गिरिनार, श्री मोहनखेड़ा तीर्थ हेतु १२ बसों का एक संघ निकाला। इस यात्रा में १७ दिन लगे। सं० २०३२ में शाह जेठमलजी वर्दीचन्दजी वेदसुता ने जैसलमेर यात्रार्थ एक १० बसीय संघ निकाला। भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर शाह इन्द्रमलजी, सुखराज, भारतमल, पारसमल, रिखबचन्द, तणुकु आंध्र प्रदेश स्थित तणुकु में घर देरासर है । इस जिनालय में मूल नायक श्री शांतिनाथ भगवान की ९ फुट की प्रतिमा है जिसकी श्री कारटाजी में पूज्य आचार्य राजेंद्रसूरीश्वरजी द्वारा अंजनशलाका सम्पन्न हुई । निकट दोनों ओर सं० २०२१ में माह सुदी ५ को श्री शीतलनाथ एवं भगवान महावीर की सर्वधातु ५ फुट की प्रतिमा की अंजनशलाका डूडसी में आचार्य श्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सुरिजी के कर कमलों से सम्पन्न हुई। पंचतीर्थी एवं सिद्धचक्रजी आहोर से लाए जिसकी अंजनशलाका लगभग ५०० वर्ष पूर्व की है । माह सुदी ६ सं० २०२१ की मूथा घेवरचन्द शांतिलाल एण्ड कंपनी द्वारा प्रतिष्ठा हुई । जैन समाज ने एक भवन क्रय किया है । भविष्य में एक जिनालय निर्माण की योजना शाह मुकनचन्द घेवरचन्द छगनराज ने श्री मोहनखेड़ा तीर्थ (राजगढ़) धार में श्री आदीश्वर भगवान के मंदिर का शिलान्यास किया। - गोविन्द चन्द्र मेहता विनय मानवता में चार चाँद लगाने वाला गुण है। मनुष्य चाहे जितना विद्वान् हो, वैज्ञानिक और नीतिज्ञ हो; किन्तु जब तक उसमें विनय नहीं है तब तक वह सबका प्रिय और सम्मान्य नहीं हो सकता । शरीर जब तक सशक्त है और कोई बाधा उपस्थित नहीं है, तभी तक आत्म-कल्याण की साधना कर लेनी चाहिये; अशक्ति के पंजे में फंस जाने के बाद फिर कुछ नहीं बन पड़ेगा, फिर तो यहाँ से कूच करने का डंका वजने लगेगा और अन्त में असहाय होकर जाना पड़ेगा। -राजेन्द्र सूरि राजेन्द्र-ज्योति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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