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________________ वि.सं. कहां से कहां के लिए किन के साथ १४. २००८ गुढ़ाबालोतरा १५. २००९ थराद १६. २०११ आहोर १७. २०१२ आहोर १८. २०१२ राणापुर भाण्डवपुर भांडवपुर राता महावीर केशरियाजी श्री लक्ष्मणीजी तीर्थ मुनि मण्डल मुनि मण्डल मुनि मण्डल मुनि मण्डल व श्रावक-श्राविका चतुर्विध संघ तपस्वियों की संख्या २०० वि. सं. ग्राम-नगर १९७३ सियाणा (मारवाड़) १९८९ गुढाबालोतरा ३. १९९१ पालीताणा ४. १९९२ खाचरौद २००२ बागरा ६. २००२ आकोली ७. २०१४ राणापूर ८. २०१७ मोहनखेडा तीर्थ श्रीमद् से सम्पन्न उपधान तर उपधान कराने वाले श्री जैन संघ शा. लालचन्द लखमाजी बागरा निवासी शाह ओटमल घूड़ाजी श्री जैन संघ श्री जैन संघ शाह लालचन्द अभयचन्द सकल संघ श्री जैन विस्तुनिक संघ ३५० ३५ ४५ इस प्रकार गुरु महाराज की अधिनायकता में आठ यात्रा संघ निकाले गये। गुरु महाराज ने स्वतंत्र रूप से साधु मण्डल के साथ पन्द्रह बार तीर्थयात्राएं की। गुरु महाराज ने छह उपधान तप कराये और पैतालीस प्रतिष्ठांजनशलाकाएं सम्पन्न करवाई। संवत् २०१७ पौष शुक्ला ३ के दिन राजगढ़ में आपका देहावसान हुआ। मोहन खेड़ा में अंत्यविधि सम्पन्न की गई और छत्री बनाकर आपकी मूर्ति प्रतिष्ठित की गई। शान्ति तथा द्रोह परस्पर विरोधी तत्व हैं । जहाँ शान्ति होगी, वहाँ द्रोह नहीं होगा; और जहाँ द्रोह होगा वहाँ शान्ति निवास नहीं करेगी । द्रोह का मुख्य कारण है, अपनी भूलों का सुधार नहीं करना । जो पुरुष सहिष्णुतापूर्वक अपनी भूलों का सुधार कर लेता है, उसको द्रोह स्पर्श तक नहीं कर सकता । जीव संसार में अकेला ही आता है और अकेला ही जाता है; ऐसी परिस्थिति में एक धर्म को अपना लेने से आत्मा का उद्धार होता है और किसी से नहीं । जब तक हम स्वयं अपनी कमजोर आदतों पर शासन न कर लें, तब तक हम दूसरों को कुछ नहीं कह सकते; अत: सर्वप्रथम प्रत्येक व्यक्ति को अपनी निर्बलताओं को सुधार कर, फिर दूसरों को सुधारने की इच्छा रखनी चाहिये। -राजेन्द्र सूरि वी. नि.सं. २५०३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012039
Book TitleRajendrasuri Janma Sardh Shatabdi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremsinh Rathod
PublisherRajendrasuri Jain Navyuvak Parishad Mohankheda
Publication Year1977
Total Pages638
LanguageHindi, Gujrati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size38 MB
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