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________________ १८ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट 000000000000 जिन पर अभी तक बिलकुल नहीं लिखा गया या बहुत कम लिखा गया। मेवाड़ के धार्मिक, सामाजिक श्रेष्ठ तत्त्वों व सांस्कृतिक उपलब्धियों का परिचय भी इस खण्ड में है। इसके बाद, जैन विद्या जैन साहित्य और संस्कृति के दो खण्ड हैं, जिनमें उपर्युक्त विषयों के विविध अंगों का परिपूर्ण विवेचन है। पाँचवाँ खण्ड जैन इतिहास का है इसमें भगवान महावीर से पूज्य श्री धर्मदास जी महाराज तक की ऐतिहासिक परम्परा का संक्षिप्त किन्तु सारगमित विवेचन है । छठा खण्ड 'काव्य-कुसुम' के रूप में है जिसमें गुरुदेव श्री के स्मरण-पद एवं अन्य आचार्यों, मुनियों की रचनाएँ तथा ऐतिहासिक महत्त्व की कृतियों का संकलन है। इस तरह ग्रन्थ के छह खण्ड चक्रवर्ति सम्राट के षट्खण्ड की तरह सुशोभित हो रहे हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ जैन विद्या-साधना तथा तत्व विवेचना का एक अद्भुत कोष है। भारत के कई श्रेष्ठ विद्वानों ने अपनी श्रेष्ठतम कृतियाँ देकर इसे समलंकृत किया है । जैन जगत में ही नहीं, साहित्य के क्षेत्र में भी इसका जो महत्त्व है, वह आने वाले वर्षों में और अधिक बढ़ जायेगा । हजारों विद्या-जिज्ञासु इससे तत्त्वज्ञान-रस प्राप्त कर अपने आपको कृतार्थ समझेंगे। ग्रन्थ आदि से अन्त तक पठनीय और मननीय है। प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ के लेखन और सम्पादन में सर्वाधिक श्रम यदि किसी ने किया है तो वे हैं श्री सौभाग्य मुनि जी 'कुमुद'। ग्रन्थ में दो सौ से अधिक पृष्ठ तो स्वयं 'कुमुद' जी ने अपनी भाववाही लेखनी से लिखे हैं। भाव भाषा और प्रवाह का जो चमत्कार मुनि श्री की लेखनी में देखने को मिला वह अन्यत्र दुर्लभ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मुनि श्री ने प्रस्तुत ग्रन्थ में अथक श्रम किया। मुनि श्री ने श्रेष्ठ निबन्ध जुटाने में जिस तरह विद्वानों से सम्पर्क साधा और अपने मधुर व्यवहार से उन्हें आकर्षित कर निबन्ध प्राप्त किये यह भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। कुल मिलाकर प्रस्तुत ग्रन्थ मुनि श्री के एकनिष्ठ श्रम का परिणाम है, जो आज के महान कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका सहित आपके समक्ष पूज्य गुरुदेव श्री को समर्पित किया जायेगा ।।। VVU HTTTTTA HTTTTTP ANGH KANTITTET १ मुनि श्री का परिचय हम ग्रन्थ के प्रारम्भिक पृष्ठों में देना चाहते थे किन्तु प्रयत्न करने पर भी नहीं मिल सका, अब हमें थोड़ा परिचय मिला है, जो संक्षिप्त में दे रहे हैं; प्रधान सम्पादक मुनि श्री 'कुमुद जी का संक्षिप्त परिचय श्री सौभाग्य मुनिजी 'कुमुद' का जन्म-स्थान अकोला (उदयपुर) है। विक्रम सं० १९६४ मृगशीर्ष शुक्ला सप्तमी शुक्रवार रात्रि को ६ बजे स्थानीय गांधी परिवार में एक बच्चे का जन्म हुआ, जिसका नाम सुजानमल रक्खा गया । श्री नाथी बाई और नाथूलाल जी इनके माता-पिता के नाम हैं। श्री नाथूलाल जी व्यवसाय से 'दाणी' थे। बालक सुजानमल, श्री नाथूलाल जी गाँधी को चौथी जीवित संतान थी। बालक सुजान से पूर्व एक भाई और दो बहनें उपस्थित थीं। कर्मदशा की विचित्रता स्वरूप बालक सुजान को बाल्यावस्था में ही पितृ-वियोग सहना पड़ा। ऐसी स्थिति में माँ का ही वह सम्बल था जिसने बच्चे को सद्संस्कारों से ओत-प्रोत बना दिया । बालक सुजान पाँचवीं में पढ़ता था तब तक दोनों बहनें और भाई विवाहित हो चुके थे। उन्हीं दिनों एक दुर्घटना घटी, बहन उगमबाई विधवा हो गई। सारे परिवार में शोक छा गया । मृत्यु की इस अनिवार्यता और मानव की विवशता देख बालक सुजान का मन बड़ा खिन्न हो गया। बहन उगम भी वहीं थी, वह सांसारिकता से उपराम हो रही थी। वहाँ महासती सोहनकंवर जी भी थे उनका उस स्थिति में बड़ा सहयोग रहा । ...... JOHORIR al Education interational For Private Personal use only www.iainelibrary.org.
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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