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________________ engli O कविराज श्री रिखबदासजी महाराज के कुछ पद | ५५७ राम न जाण्यौ । ए देशी । रे । अग्यानी थे प्रभु न पिछायो विषय - सुष संसारना किच माहे षुचाणो रे । तन धन जोवन कारमो जेस्या दुध उफाणो रे । अ०॥१॥ सजन सनेही यारो नही नही रूप नाणो रे । काल अवधपुरी हुइ कीयो वास मसाणो रे । अ०॥२॥ पुर्ब पुन्ये पामीयो मानव भव धर्म रतन चिंतामणी हाथ आय टाणो रे । गमाणो रे । अ०||३|| इन्द्र आप वंछा करे बेठा अमर विमाणो रे । मनुष वह करणी करी पावां पद निरवाणो रे । अ०॥४॥ कुगुर कुदेव कुधर्म वी भव माय भमाणो रे । अब ही चेत रे प्रांणीया पर्म निष्यानो रे । अ०||५|| देव निरंजण भेटीयो गुर गुण री पानो रे । धर्म दया मे जांणीये जन्म मर्ण मिटाणो रे । अ० ॥६॥ वार वार तुझने कटु मति होय अयाणो रे । धर्म थकी सुप पामीये एसी जनवर वांणो रे । अ०॥७॥ भव जीव हित कारणे कही सीध सु जांणो रे । रिषब रिषी कहे हारीया बाजी दुलभ पाणो रे । अ० ॥८॥ साल गुणीस बारे हुवो षाचरोद मे आंणो रे । फागुण विद बीज हर्ष स्युं उपदेस सुणाणो रे । अ ॥ इति संपुर्ण ॥ ~ Pra 000000000000 plings * 000000000000 00000000 +
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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