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________________ 000000000000 000000000000 200 0000/ ५४४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ [ २ ] सुमत जिणेसर सुमत का दाता विसव माहे विष्याता रे । जयंत विमाण थकी चवी ने बतीस सागर भोगवने रे । सु० ॥१॥ कोसलपुर नगर छै नीको मेघ राजा छै ठीको रे । मंगला राणी माता ने आया सपना चवद दिषाया रे । सु० ||२|| धनदत सेठ छै नगर में नीको सेठा सेठां सिर टीको रे । दोय स्त्री नो छै उ नाहो माहो मांहि उछाहो रे । सु० ||३|| एक स्त्री नै पुत्रज हुवो पाछे सेठजी मुवो रे । दोइ माता पुत्र नै पालै जतन करी रुषवाले रे | ० ||४|| कर्म नै जोगे माता दोइ तांम ast कहै छै बेटो मारो लहोडी कहै लडाइ होइ रे । मारो रे । सु० ॥५॥ लडती लडती रावले जाव राजा पास आवै रे । राजा सेती न्याय न थावे अचरज सब जन पावे रे | सु० || ६ || रांणी सांभल ग्रभ प्रभावे दोइ नारी नै उर ही बोलावे रे | न्याव करै छै नारी केरो सुणतां हरष घणेरो रे । सु० ॥७॥ नारी कहै ए न्याव करीजै सुत म्हारो मुज दीजै रे । राणी भाषै दो षंड करस्यां दोयां नै वांटी देस्यां रे । सु० ||८|| सोक कहै सुधो न्याव कीधो झगडो माता भाषै मत मारीजे सुत एहनो इनै मेटी दीधो रे । दीजे रे | सु० || || म्हारो बेटो छँ नही कोई रांणी समजी सोइ रे । जूठी सोक नै जूठी कीजे बेटो माता नै दीजे रे । सु० ||१०|| सुभ वेला रांणी सुत जायो सुमत जनांम कहायो रे । कर्म पावी मुगत सिद्धाया तिरथंकर पद पाया रे । सु० ||११|| समत अठार पच्यासै चोमासो सहर राईपुर उलासो रे । र नरसींघदास भाषी उदारसिंघ भणी सुषकार रे । सु० ||१२|| धर्म ध्यान से हुवो उपगार नर नारी सुषकार रे । काती सुदरी चउदस सार आयो है गुरवार रे । सु० ||१३|| इति संपूर्णः ॥ RAK
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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