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गुरुदेव श्री के सुवचन | २७ बहुयं मा य आलवे
खराबियों से आज हिन्दुस्तान की युवा पीढ़ी डूब रही है । बहुत मत बोलो । बहुत बोलने से अनेकों कलह खड़े
भावी पीढ़ी को इन दो बुराइयों से बचाना हो तो इन दोनों हो जाते हैं। कई बार बहुत अधिक बोलने वाला अकथनीय
के व्यापार को बिलकुल बन्द कर देना चाहिए । भी कह जाता है जिसका परिणाम भयंकर निकलता है।
सम्यक्त्व शुद्ध रखो ! अधिक बोलने से आयु का क्षय भी जल्दी होता है। थोड़ा
सम्यक्त्व रत्न को संभाल कर रखो कुदेव, कुगुरु, कुधर्म बोलो और वह भी सोचकर ।
से अपने को बचाओ। उपवास में टंटा लग जाये तो उपशोक को रोक
वास भंग हो जाये, पौषध में टंटा लगे तो पौषध भंग हो शोक मत करो, शोक करना आर्तध्यान है, आर्तध्यान
जाये किन्तु सम्यक्त्व से भ्रष्ट हो जाये तो अनन्त जन्मपाप है । जो हुआ, हो रहा है या होगा, वह सर्वज्ञों के द्वारा
मरण बढ़ जाये । अतः सुगुरु सुदेव और सुधर्म की उपासना सब देखा हुआ है । कम-ज्यादा नहीं होता । अपनी भावना
करो। को शोक की आग में मत जलाओ। कहा है
संग-वर्जन जीव रे तूं, ध्यान आरत किम ध्यावे ।
जो सम्यक्त्व से भ्रष्ट है, उसका संग दूर से त्याग जो जो भगवंत भाव देखिया, सो सो ही वरतावे ।
दो । दर्शन-भ्रष्ट का संग छोड़ो ! घटे वधे नहीं रंच मात्र काहे को मन डुलावे ॥
लाख और साख गुरु का उपकार ज्ञान का प्रकाश देने वाले गुरु होते हैं। गुरु का उप
"जाज्यो लाख पर रीज्यो साख" इस राजस्थानी कहाकार अनन्त है। माता-पिता तो केवल जन्मदाता हैं, वे
वत के अनुसार भले ही हानि सहन कर लो, किन्तु अपनी तन की रक्षा करते हैं किन्तु जीवन को, सार्थकता प्रदान
पैठ (साख) मत जाने दो। करने वाले तो गुरु ही है । अनन्त माता-पिता भी आत्मा
हृदय मधुर रखो का जन्म-मरण नहीं मिटा सकते किन्तु एक सत्य-गुरु का
कभी किसी जगह कड़क बोलने से कोई अच्छा कार्य हो दिया तत्त्वज्ञान अनन्त भव भ्रमण को समाप्त कर देता है। सकता हो तो उसका प्रयोग सज्जन व्यक्ति करते हैं किन्तु विनय लाभ का सौदा
उनका हृदय कड़क नहीं होता। विनयवान को सभी चाहते हैं । अतः विनयवान बनो।
त्यक्त की कामना मत करो उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है कि अविनयी, सड़े कान की
जिसका त्याग कर दिया, उस तरफ फिर कभी लालसा कुतिया की तरह सभी जगह दुत्कारा जाता है।
मत करो। रहनेमी को राजुल सती ने क्या कहा वह याद विनयवान, गणियों से तो लाभ उठाता ही है, अभि- करो। मानी और बेपरवाह लोगों से भी लाभ उठा लेता है।
राजुल ने कहापाखण्ड कौन करता है ?
धीरत्थु तेऽजसो कामी जो तं जीवियकारणा। पाखण्ड तो मुलम्मा है। पीतल पर चढ़ा सोने का वंतं इच्छसि आवेडं, सेयं ते मरणं भवे ॥ मुलम्मा कुछ ही दिन चमकता है अन्त में तो पीतल को
कठिनाई तो आयेगी ही सामने आना पड़ता है । जिनमें असलियत की कमी होती है वे ही व्यक्ति पाखण्ड करते हैं। सच्चे को दिखावट की
जीवन में कठिनाइयाँ तो आती ही हैं, जो अपने लक्ष्य कोई जरूरत नहीं।
पर दृढ़ रहता है उसी की बलिहारी है।
जम्बू को उसकी आठों नारियों ने विचलित करने का दो बीमारी
बड़ा प्रयास किया किन्तु वे वैराग्य में अविचल रह गये तो सिनेमा देखना और गन्दा साहित्य पढ़ना इन दो स्वयं भी तिर गये और अनेकों को तार दिया ।
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