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________________ श्री सौभाग्य मुनि 'कुमुद' [ कवि, लेखक एवं राजस्थान के प्रभावशाली विद्वान संत ] अन्तकाल में कुछ इसमें कोई सन्देह नहीं कि सामान्य जन-जीवन की एक सम भूमिका से ऊपर उठकर दमकने वाले जीवन के ऐसी अन्यतम विशेषताएँ अवश्य होती हैं जिनका सहज ही अन्यत्र पाया जाना कठिन है । पूज्य गुरुदेव श्री के दमकते जीवन के अन्तर में क्या-क्या विशेषताएँ हैं । उन्हें सर्वतोभावेन समझ पाना तो आसान है नहीं, किन्तु हाँ, यदि उस तरफ अति निकटता से लगातार गहराई तक देखते जायें तो वे विशेषताएँ किसी स्वच्छ जल से भरे गहरे पात्र के तले पड़ी मणियों की तरह दमकती हुई अवश्य दिखाई दे सकती हैं । मैं पिछले छब्बीस वर्षों से गुरुदेव श्री के निकट हूँ और गहराई तक इन्हें देखता भी रहा हूँ । इतने दीर्घमुझे इनमें जो कुछ मिला उसमें "मधुरम्" ही अधिक है। कालीन अतः जीवन की अन्तर्यात्रा [पूज्य श्री अम्बालाल जी महाराज के जीवन की विरल विशेषताएँ] चाहता हूँ, मुझे जो कुछ मिला वह सब पाठकों के सामने खोलकर रख दूं, किन्तु यह मुझसे संभव नहीं होगा । क्योंकि जो कुछ पाया वह अति विशाल है । यहाँ कुछेक अन्तर्तत्त्व सामने लाने का प्रयास है, पाठक इन्हीं कुछ विशेषताओं से समग्र जीवन के अन्तदर्शन को समझने का यत्न करें । शास्त्र-परक गुरुदेव श्री को संयमरत्न पाने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अनेकों परीषह सहे तब कहीं मुनि बन पाये, फलस्वरूप मुनि बन जाने पर भी रत्न को जैसे सहेज कर रखा जाता है, गुरुदेव संयम को भी ऐसे ही सहेज कर रखने लगे । शास्त्र ज्ञान ही संयम का संबल है । इस तत्त्व को चरितार्थं करते हुए, गुरुदेव केवल शास्त्र ( आगम ) पढ़ने लगे और अब तक भी केवल यही करते हैं । शास्त्रों से भिन्न अन्य पुस्तकें कभी-कभी संयम को चोट भी पहुँचा जाती हैं अतः उनका संयमी जीवन के लिए कोई उपयोग नहीं, कुछ ऐसी ही धारणा के आधार पर अन्य ग्रन्थों से लगभग असंपृक्त रहे । यही कारण है कि आज भी गुरुदेव श्री का शास्त्र - ज्ञानाभ्यास बहुत ऊँचा व गहरा है । इनके प्रवचन में भी शास्त्रीय आख्यान की ही प्रमुखता रहती है। बातचीत, चर्चा, अन्य सारे व्यवहारों में शास्त्रीयता का इतना गहरा असर परिलक्षित होता है, मानो महाराज श्री शास्त्र परक ही हो गये । शास्त्रीयता का आधार केवल व्यवहार ही नहीं है, बौद्धिक स्तर पर भी शास्त्र का बड़ा असर है। गुरुदेव श्री का शास्त्रज्ञान बड़ा गम्भीर एवं विस्तृत है । किसी भी समस्या का शास्त्रों के आधार से समाधान करना इनका दैनिक उपक्रम है, यही कारण है कि वर्ष भर में हजारों प्रश्नों का यत्र-तत्र समाधान करते रहते हैं । ပြီးတော Goo 000000000000 Jeha 000000000000 100000100 'S.BA st/
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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