SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 000088 000000000000 ✩ 000000000000 2 98880 ४६४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज - अभिनन्दन ग्रन्थ नहीं है पर यह धारणा नितान्त भ्रमपूर्ण है । वास्तव में जैन साहित्य की जानकारी के अभाव में ही उन्होंने यह धारणा बना रखी है। इसलिये वे जैन साहित्य के अध्ययन से उदासीन रह जाते हैं। राजस्थानी जैन साहित्य में ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जो जैन धर्म के किसी भी विषय से सम्बन्धित न होकर सर्वजनोपयोगी दृष्टि से लिखे गये हैं १ - व्याकरण - शास्त्र -- जैन कवियों की अनेक रचनाएँ व्याकरण साहित्य पर मिलती है। इन रचनाओं में से निम्न रचनाएं उल्लेखनीय हैं— बाल शिक्षा, उक्ति रत्नाकर, उक्ति समुच्चय कातन्त्र वालावबोध, पंच-सन्धि बालावबोध, हेम व्याकरण भाषा टीका, सारस्वत बालावबोध आदि । २ – छन्द शास्त्र - राजस्थानी जैन कवियों ने छन्द-शास्त्र पर भी रचनाएँ लिखी हैं पिंगल शिरोमणि, दूहा चन्द्रिका, राजस्थान गीतों का छन्द ग्रंथ, वृत्त रत्नाकर बालावबोध आदि । ३ - अलंकार - शास्त्र – वाग्भट्टालंकार बालावबोध, विदग्ध मुखमंडन बालावबोध, रसिक प्रिया बालावबोध आदि । ४ -- काव्य टीकाएँ भर्तृहरिशतक-भाषा टीका त्रय, अमरुशतक, लघुस्तव बालावबोध, किसन - रुक्मणी की टीकाएँ, धूर्त्ताख्यान कथासार, कादम्बरी कथा सार । ५ – वैद्यक शास्त्र — माधवनिदान टब्बा, सन्निपात कलिका टब्बाद्वय, पथ्यापथ्य टब्बा, वैद्य जीवन टब्बा, शतश्लोकी टब्बा व फुटकर संग्रह तो राजस्थानी भाषा में हजारों प्राप्त हैं । ६ - गणित शास्त्र - लीलावती भाषा चौपाई, गणित सार चौपाई आदि । ७ – ज्योतिष शास्त्र - लघुजातक वचनिका, जातक कर्म पद्धति बालावबोध, विवाहपडल बालावबोध, भुवन दीपक बालावबोध, चमत्कार चितामणि बालावबोध, मुहूर्त्त चिन्तामणि बालावबोध, विवाहपडल भाषा, गणित साठीसो, पंचांग नयन चौपाई, शकुन दीपिका चौपाई, अंग फुरकन चौपाई, वर्षफलाफल सज्झाय आदि । कवि हीरकलश ज्योतिष के प्रकाण्ड पण्डित थे। इनकी प्राकृत भाषा में रचित 'ज्योतिष सार' तथा राजस्थानी में रचित 'जोइसहीर' इस विषय की महत्त्वपूर्ण रचनाएँ हैं । इसकी पद्य संख्या १००० के लगभग है । ८- नीति, व्यवहार, शिक्षा, ज्ञान आदि- प्रायः प्रत्येक कवि ने इनके लिए किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं स्थान ढूँढ ही लिया है। इन विषयों से सम्बन्धित स्वतन्त्र रचनाएँ भी मिलती हैं, जिनमें "छीहल - बावनी", "डूंगरबावनी" आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृतियाँ हैं। इनमें प्रवाहपूर्ण बोलचाल की भाषा में, व्यवहार और नीति विषयक बातों को बड़े ही धार्मिक ढंग से कहा है । उक्त विषयों से सम्बन्धित अन्य रचनाओं में 'संवाद, कक्का - मातृका - बावनी' और कुलक' आदि के नाम लिये जा सकते हैं । चाणक्य नीति टब्बा, पंचाख्यान चौपाई व नीति प्रकाश आदि ग्रन्थ भी इस दिशा में उल्लेखनीय है । E - ऐतिहासिक ग्रन्थ- मुंहणोत नैणसी की ख्यात, राठौड़ अमरसिंह की बात, खुमाण रासो, गोरा-बादल चौपाई, जैतचन्द्र प्रबन्ध चौपाई, कर्मचन्द्र वंश प्रबन्ध आदि रचनाएं ऐतिहासिक ग्रन्थों में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है | इनसे इतिहास की काफी सामग्री उपलब्ध हो सकती है। जैन गच्छों की पट्टावलियाँ व गुर्वावलियाँ गद्य व पद्य दोनों में लिखी गई हैं । जैनेतर ख्यातों एवं ऐतिहासिक बातें आदि की अनेक प्रतियाँ कई जैन भण्डारों में प्राप्त हैं । १० - सुभाषित - सूक्तियाँ - राजस्थानी साहित्य में सुभाषित सूक्तियों की संख्या भी बहुत अधिक है । अनेक सुभाषित उक्तियाँ राजस्थान के जन-जन के मुख व हृदय में रमी हुई है। कहावतों के तौर पर उनका प्रयोग पद-पद पर किया जाता है। जैन विद्वानों ने भी प्रासंगिक विविध विषयक राजस्थानी सैकड़ों दोहे बनाये हैं श्री अगरचन्द नाहटा ने उदयराज व जिनहर्ष की सुभाषित सूक्तियों का एक संग्रह प्रकाशित किया है । ११ - विनोदात्मक - राजस्थानी साहित्य में विनोदात्मक रचनाएँ भी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुई हैं । इन रचनाओं में ऊन्दररासो, मांकण रासो, मखियों रो कजियो, जती जंग आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं । १२ -- ऋतुकाव्य उत्सव काव्य- बारहमासे - चौमासे संज्ञक अनेक राजस्थानी जैन रचनाएँ उपलब्ध है । ये रचनाएँ अधिकांश नेमिनाथ और स्थूलिभद्र से सम्बन्धित होने पर भी ऋतुओं के वर्णन से परिपूरित है। सबसे प्राचीन ऋतुकाव्य बारहमास — "जिन धर्म सूरि बारह नावऊँ" है । IRF XX 巰 & Perse
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy