SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन आगमों के भाष्य और भाष्यकार | ४४७ उद्देश्य की व्याख्या में तालवृक्ष से सम्बन्धित नाना प्रकार के दोष और प्रायश्चित, ताल प्रलम्ब के ग्रहण सम्बन्धी अपवाद निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के देशान्तर गमन के कारण और उसकी विधि, श्रमणों की बीमारी के विधि-विधान, वैद्यों के प्रकार, दुष्काल आदि विशेष परिस्थिति में श्रमण श्रमणियों के एक-दूसरे के अवगृहीत क्षेत्र में रहने की विधि, ग्राम, नगर, खेड़, कर्यटक, मडम्बन, पतन, आकर द्रोणमुख, निगम, राजधानी, आश्रम, निवेश, संबाध, घोष, अंशिका, पुटभेदन, शंकर आदि पदों का विवेचन किया गया है। नक्षत्रमास, चन्द्रमास ऋतुमास, आदित्य मास और अभिर्वाधित मास का वर्णन है । जिनकल्पिक और स्थविरकल्पिक की क्रियाएँ, समवसरण, तीर्थंकर, गणधर, आहारक शरीरी, अनुत्तर देव, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि की शुभ और अशुभ कर्म प्रकृतियाँ, तीर्थंकर की भाषा का विभिन्न भाषा में परिणमन, आपण गृह रथ्यामुख, शृङ्गाटक, चतुष्क, चत्वर, अन्तरापण, आदि पदों पर विवेचन किया गया है और उन स्थानों पर बने हुए निर्ग्रन्थियों को जिन दोषों के लगने की संभावनाएं हैं उनकी चर्चा की है । भाष्यकार ने बारह प्रकार के ग्रामों का उल्लेख किया है ( १ ) उत्तानकमल्लक, (२) अवाङ्मुख मल्लक, (३) सम्पुटकमल्लक, (४) उत्ज्ञानकण्डमल, (५) वाहक (६) सम्पुटखण्डमल्लक, (७) मिति, (4) पडालि, (६) बलभि (१०) अक्षाटक, (११) रूपक, (१२) काश्यपक । तीर्थंकर, गणधर, और केवली के समय ही जिनकल्पिक होते हैं । जिनकल्पिक की समाचारी का सत्ताइस द्वारों में वर्णन किया है- ( १ ) त (२) संहनन, (३) उपसर्ग, (४) आतंक (५) वेदना, (६) कतिजन (७) स्थंडिल (e) वसति (2) कियाश्विर, (१०) उच्चार, (११) प्रसवण, (१२) अवकाश (१३) तृणफलक, (१४) संरक्षणता, (१५) संस्थापनता (१६) प्राभृतिका, (१७) अग्नि, (१८) दीप, (१२) अवधान, (२०) स्वय (२१) माचर्या (२२) पानक, (२३) नेपालेप (२४) असे (२५) आषाम्ल (२६) प्रतिमा (२७) मासकल्प । 1 स्थविर कल्पिक की प्रव्रज्या, शिक्षा, अर्थग्रहण, अनियतवास, और निष्पत्ति जिनकल्पिक के सदृश ही है । विहार की चर्चा करते हुए, विहार का समय, विहार करने के पूर्वगच्छ के निवास एवं निर्वाह योग्य क्षेत्र का परीक्षण, उत्सर्ग और अपवाद की दृष्टि से योग्य-अयोग्य क्षेत्र प्रत्युपेक्षकों का निर्वाचन क्षेत्र की प्रति लेखना के लिए किस प्रकार गमनागमन करना चाहिए, विहार-मार्ग, एवं स्थंडिल भूमि, जल, विश्राम स्थान, भिक्षा, वसति, उपद्रव आदि की परीक्षा प्रतिलेखनीय क्षेत्र में प्रवेश करने की विधि, मिक्षा के द्वारा उस क्षेत्र के निवासियों के मानस की परीक्षा, भिक्षा, औषध आदि सुगम व कठिनता से मिलने का ज्ञान, विहार करने से पहले वसति के स्वामी की अनुमति, विहार करते समय शुभ शकुन देखना, आदि 1 स्थविर कल्पिकों की समाचारी में निम्न बातों पर प्रकाश डाला है - ( १ ) प्रतिलेखना - वस्त्र आदि के प्रति लेखना का समय, प्रति लेखना के दोष और प्रायः श्चित, (२) निष्क्रमण - उपाश्रय से बाहर निकलने का समय, (३) प्राकृतिका गृहस्थ के लिए जो मकान तैयार किया है उसमें रहना चाहिए या नहीं रहना चाहिए। (४) मिक्षा के लेने का समय, और भिक्षा सम्बन्धी आवश्यक वस्तुएँ, (५) कल्पकरण - पात्र साफ करने की विधि, लेपकृत और अलेपकृत पात्र, पात्र लेप से लाभ । (६) गच्छशतिकादि -- आधाकर्मिक, स्वगृहयतिमिश्र, स्वगृह पाषण्ड मिश्र, यावर्दार्थिक मिश्र, फीतकृत, पूतिकमिक, और आत्माकृत (७) अनुपान रथ यात्रा का वर्णन और उस सम्बन्धी दोष (८) पुर:कर्मभिक्षा लेने से पहले सचित्त जल से हाथ आदि धोने से लगने वाला दोष, (६) ग्लान- रूग्ण सन्त की सेवा से होने वाली निर्जरा, उसके लिए पथ्यापथ्य की गवेषणा, वैद्य के पास चिकित्सा के लिए जाने की विधि, उनके साथ वार्तालाप, आदि किस प्रकार करना । रुग्ण साधु को निर्दयता पूर्वक उपाश्रय आदि में छोड़कर चले जाने वाले आचार्य को लगने वाले दोष और उनका प्रायश्चित (१०) गच्छ प्रतिबद्ध यथालंदिक वाचना आदि कारणों से गच्छ से सम्बन्ध रखने वाले यथालंदिक कल्पधारियों के साथ बन्दन आदि व्यवहार ( ११ ) उपरिदोष — ऋतुबद्ध काल से अतिरिक्त समय में एक क्षत्र में, एक मास से अधिक रहने से लगने वाले दोष । (१२) अपवाद - एक मास से अधिक रहने के आपवादिक कारण, निर्दय और नियन्थिनियों के बिहार का विस्तृत वर्णन है। 000000000000 pres 000000000000 HOODFOLDES त
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy