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________________ जैन आगमों के भाष्य और भाष्यकार | ४४५ 000000000006 000000000000 H क माया RANI चाहिए । कोट्याचार्य और मलधारी हेमचन्द्र की विशेषावश्यक को टीकाओं में इन गाथाओं पर टीकाएँ नहीं हैं और न उन टीका ग्रन्थों में ये गाथाएँ ही हैं अतः इन गाथाओं में जो समय निर्दिष्ट किया गया है वह रचना का नहीं किन्तु प्रति लेखन का है। जेसलमेर स्थित प्रति के आधार पर विशेषावश्यक भाष्य का प्रति लेखन समय शक संवत ५३१ अर्थात विक्रम सम्वत् ६६६ मानते हैं तो इसका रचना समय इससे पूर्व का होना चाहिए। विशेषावश्यक भाष्य जिनभद्र की अन्तिम कृति है । उनकी स्वोपज्ञ वृत्ति भी मृत्यु हो जाने से पूर्ण नहीं हो सकी थी। इस प्रकार जिनभद्र गणी क्षमाश्रमण का उत्तरकाल विक्रम सं० ६५०-६६० के आस-पास रहना चाहिए। आचार्य जिनभद्र गणी की रचनाएँ उपलब्ध हैं - (१) विशेषावश्यक भाष्य-प्राकृत पद्य में (२) विशेषावश्यक भाष्य स्वोयज्ञ वृत्ति-अपूर्ण-संस्कृत गद्य (३) वृहत्संग्रहणी-प्राकृत पद्य (४) वृहत्क्षेत्र समास-प्राकृत पद्य (५) विशेषणवती , , (६) जीतकल्प (७) जीतकल्प भाष्य , , (८) अनुयोग द्वार चूणि प्राकृत गद्य (९) ध्यान शतक , पद्य ध्यान शतक के निर्माता के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद है। विशेषावश्यक भाष्य हम पहले ही बता चुके हैं कि विशेषावश्यक भाष्य जिनदास गणी की एक महत्त्वपूर्ण कृति है। यों आवश्यक सूत्र पर तीन भाष्य लिखे गये हैं-(१) मूल भाष्य, (२) भाष्य और (३) विशेषावश्यक भाष्य । प्रथम दो भाष्य बहुत ही संक्षेप में लिखे गये हैं और उनकी बहुत-सी गाथाएँ विशेषावश्यक भाष्य में मिला दी गई हैं। इस प्रकार विशेषावश्यक भाष्य तीनों भाष्यों का प्रतिनिधित्व करता है। विशेषावश्यक माष्य एक ऐसा ग्रन्थ रत्न है जिसमें जैन आगमों में वर्णित सभी महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चाविचारणा की गई है । ज्ञानवाद, प्रमाण, आचार-नीति, स्याद्वाद, नयवाद, कर्मवाद प्रभृति सभी विषयों पर विस्तार से विश्लेषण है। सबसे बड़ी विशेषता इस ग्रन्थ की यह है कि जैन-तत्त्वज्ञान का जो विश्लेषण किया गया है उसमें जैन दृष्टि के साथ अन्यान्य दार्शनिक दृष्टियों के साथ भी तुलना की गई है। आगमिक विचारधाराओं का जैसा तर्कपुरस्सर विवेचन प्रस्तुत ग्रन्थ में हुआ है वैसा अन्य ग्रन्थों में देखने को नहीं मिलता । बाद के आचार्यों व लेखकों ने प्रस्तुत भाष्य की सामग्री का खुलकर उपयोग किया है और तर्क पद्धति को भी अपनाया हैं। यह साधिकार कहा जा सकता हैप्रस्तुत भाष्य के पश्चात् रचित जितने भी आगम की व्याख्या करने वाले महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं, उन्होंने किसी न किसी रूप में भाष्य का आधार लिया ही है। विशेषावश्यक भाष्य में आवश्यक सूत्र की व्याख्या की गई है, किन्तु सम्पूर्ण आवश्यक सूत्र पर व्याख्या न होकर प्रथम अध्ययन सामायिक से सम्बन्धित जो नियुक्ति की गाथाएं हैं उन्हीं पर विवेचन है । एक अध्ययन पर होने पर भी इसमें ३६०३ गाथाएँ हैं । ग्रन्थ में सर्वत्र आचार्य की प्रबल तर्कशक्ति, अभिव्यक्ति की कुशलता विषय प्रतिपादन की पटुता और व्याख्यान की विदग्धता का सहज ही परिचय प्राप्त होता है। जैन आचार और विचार के उन मूलभूत सभी तत्त्वों का संग्रह है । जहाँ दर्शन की गहनता का सूक्ष्म विश्लेषण किया गया है वहाँ चारित्र की बारीकियों का भी निरूपण है, इस प्रकार विशेषावश्यक भाष्य जैन तत्त्वज्ञान का एक महत्त्व पूर्ण ग्रन्थ रत्न है । जीतकल्प भाष्य आचार्य जिनभद्र गणी की दूसरी कृति जीतकल्प भाष्य है। इसमें उन्होंने वृहद्कल्प लघुभाष्य, व्यवहार भाष्य, HARMA A सम
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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