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________________ ४४२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ 000000000000 000000000000 १२. पंचाशक प्रकरण १३. पंचवस्तु प्रकरण टीका १४. प्रज्ञापना सूत्र प्रदेश व्याख्या १५. योग दृष्टि समुच्चय १६. योग बिन्दु १७. ललित विस्तरा चैत्य वन्दन सूत्र वृत्ति १८. लोक तत्त्व निर्णय १६. विशति विंशतिका प्रकरण २०. षड्दर्शन समुच्चय २१. श्रावक प्रज्ञप्ति २२. समराइच्च कहा (समरादित्य कथा) २३. सम्बोध प्रकरण २४. सम्बोध सप्ततिका प्रकरण २५. आवश्यक सूत्र टीका डा. हर्मन याकोबी ने लिखा है कि इन्होंने प्राकृत भाषा में लिखित जैनागमों की संस्कृत टीकायें नियुक्तियाँ एवं चूणियाँ लिखकर जैन एवं जैनेतर जगत का बहुत उपकार किया। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त भी उनके ८२ ग्रंथ और हैं जिनमें उनकी बहुमुखी रचना शक्ति के दर्शन होते हैं। इन ८२ प्रथों का उल्लेख पं० हरगोविन्ददास कृत 'हरिभद्र चरित्रम्", स्व मनसुखलाल किरनचन्द मेहता, पं० बेचरदासजी कृत 'जैन-दर्शन' आदि के आधार पर हुआ है। उनके द्वारा रचित आध्यात्मिक तथा तात्विक ग्रन्थों के अध्ययन से पता चलता है कि वे प्रकृति से अति सरल एवं सौम्य थे। गुणानुरागी तथा जैन धर्म के अनन्य समर्थक होते हुए भी वे सदैव सत्यान्वेषी थे। तत्त्व की विचारणा करते समय वे सदा माध्यस्थ्य भाव रखते थे। उनका समय वि० सं० ७५७ से ८२७ के बीच में माना जाता है । कुमारिल भट्ट वि० सं०७५० के आसपास हुए हैं एवं धर्मपाल के शिष्य धर्मकीत्ति ६९१ वि० सं०७०६ वि० तक विद्यमान रहे हैं। हरिभद्रसूरि ने इन सबका उल्लेख अपने ग्रन्थों में किया है। संवत् ८३४-३५ में रचित कुवलय माला प्राकृत कथा के रचनाकार उद्योतन सूरि हरिभद्र सूरि के शिष्य थे। आचार्य श्री ने अष्टक, षोडषक एवं पंचाशक आदि प्रकरण लिखकर तत्कालीन असाधु आचार को मार्ग निर्देश दिया। चैत्यवासियों को उन्होंने ललकारा कि वे धर्म के पथ से च्युत हो रहे हैं। उनके द्वारा देव द्रव्य का भक्षण रोकने के लिए उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि देव द्रव्य का भक्षण करने वाला नरकगामी होता है। वे निश्चय ही युग द्रष्टा, सृष्टा एवं क्रान्तिकारी थे । आज उनके साहित्य के पठन पाठन की आवश्यकता है जिससे हम चतुर्विध संघ को पतन के रास्ते से हटाकर वीर प्रदर्शित मार्ग पर आरूढ़ कर सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal use only
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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