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________________ अभिनन्दनीय वृत्त : सौभाग्य मुनि 'कुमुद' | ३ 000000000000 ०००००००००००० श्री किशोरीलालजी और श्री प्यारबाई को हमने प्रत्यक्ष नहीं देखा । अतः उनके जीवन की मौलिक विशेषताओं का साधिकार वर्णन करने की स्थिति तो नहीं है, किन्तु फल से वृक्ष का अनुमान लगाये जाने के समान पुत्र से माता-पिता को कुछ-न-कुछ तो पहचाना ही जा सकता है। जिनकी सन्तान पूज्य जी अम्बालालजी महाराज जैसी पवित्र चरित्र-सम्पन्न सन्तान हो, उन माता-पिता का चरित्र अवश्य ही उत्तम होगा, यह सहज विश्वास है । विपरीत धार्मिक परिस्थितियों में भी स्वधर्म के प्रति उनकी प्रगाढ़ता उनके दृढ़ चरित्र को प्रकट करती है । साथ ही पारिवारिक मेलजोल को इस कारण बिगड़ने नहीं देना एक अलग विशेषता है जो इन्हें व्यवहारकुशल और मधुर स्वभावी होना सिद्ध करती है। व्यावसायिक चातुर्य तो था ही, जो उन्हें संस्कारों से मिला था। कुल मिलाकर माता-पिता धर्मनिष्ठ, चरित्रवान, दृढ़ आस्तिक और चतुर थे। विक्रम सम्वत् १९६२ ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया मंगलवार को प्यारबाई ने एक पुत्र-रत्न को जन्म दिया। प्रथम पुत्र का स्वागत तो हार्दिकता के साथ होता ही है। बच्चे का नाम हम्मीरमल रखा गया । यह नाम केवल छह वर्ष रहा । थामला से मावली सेठ किशोरीलालजी सोनी के एक और भाई थे गमेरमलजी। उन्होंने अपना निवास स्थान मावली बनाया था। उनका निःसन्तान ही देहावसान हो गया। उनकी पत्नी रामीबाई एकाकी रह गई। वह एक बार थामला गई। उनको अपना एकाकीपन खल रहा था। छह वर्ष के छोटे से हम्मीरमल को देखा तो मावली ले जाने की हठ करने लगीं। माता-पिता छोटे से बच्चे को भेजने के लिए राजी नहीं थे, किन्तु जिद के कारण वह उनको उठा लाई और पुत्रवत् प्यार बरसाने लगीं। हम्मीरमल का अम्बालाल के रूप में नया नाम-संस्करण कर दिया। हम्मीरमल नाम भुला दिया गया। उसके साथ ही थामला लगभग दूर पड़ गया। कभी-कभार जाना हो जाता, वह भी प्रसंगवश, अन्यथा मावली ही अब जीवन-निर्माण का स्थल बन गया। पाठशाला में भी भर्ती हुए। तेरह वर्ष की उम्र में उस समय की उच्च कक्षा 'अपर' उत्तीर्ण कर अम्बालाल जी ने अपनी शिक्षा सम्पूर्ण कर ली। दादी के प्यार भरे नेतृत्व, लालन-पालन में अम्बालाल का यह समय बड़ा सुखमय बीता। संस्कारों की खाद जीवन-पौधे का निर्माण करने में बड़ा उपयोगी हिस्सा अदा करती है । बच्चा कैसा बनेगा? इस प्रश्न का उत्तर उसके संस्कारों में मिल सकता है । अन्यत्र नहीं । अम्बालाल जहाँ स्कूल में साक्षरता प्राप्त कर रहा था, साथ ही उसको कुछ ऐसे संस्कार भी मिल रहे थे, जो किसी बहुत बड़े सभाग्य के बिना सम्भव नहीं हो सकते । अम्बालाल के रिश्ते में एक मामी थी, बड़ी धर्मप्रिय और श्रद्धालु । वह यद्यपि गृहस्थ थी किन्तु साध्वाचारसी स्थिति में रहती थी। वर्ष में दो बार अपने हाथों से लुंचन करती, चारों स्कन्ध का पालन करती, केवल दरी पर सोती, बहुत त्यागवृत्ति से रहती थी वह । उसका भी इस बच्चे से बड़ा ही प्यार था । अम्बालाल भी समय मिलते ही उसके पास चला जाता। मामी उसे बराबर त्याग-वैराग्य का सन्देश देती रहती। जीवन का महत्त्व त्याग में है, भोग में नहीं। यह बात मामी कई तरह मे उसे बताया करती थी। अम्बालाल धीरे-धीरे ऐसे संस्कार पाने लगा, जिनमें श्रद्धा और संयम का बीज पल सके । भविष्यवाणी हस्तरेखा या देह-चिह्न भावी का कुछ परिचय दे सकते हैं, यह विवादास्पद हो सकता है, किन्तु इन्हें आधार बनाकर कही गई बातें काकतालीय न्यायवत् ही सही सिद्ध हो जाएँ तो कम से कम यह तो सिद्ध कर ही देती हैं कि यह विषय एकदम तो निस्सार नहीं है । एक चारण वृद्ध को अम्बालाल का अचानक हाथ या देह-चिह्न विशेष दिखाई दिया। तदनुसार उसने जो कुछ कहा-उस पर आज अवश्य आश्चर्य है। उसने अम्बालाल को लगभग बारह वर्ष की वय में MPANNA HERaye Jain Education International For Private & Personal Use Only SExt/www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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