SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० C MUMMS Din हाँ, आ रही है। सुगन्ध के परमाणु हमारी नासा में प्रविष्ट हो रहे हैं ? हाँ, हो रहे हैं। क्या आप नासा में प्रविष्ट सुगन्ध के परमाणुओं का रूप देख रहे हैं ? नहीं। आयुष्मान् ! अरणि की लकड़ी में अग्नि है ? हाँ, है। क्या आप अरणि में छिपी हुई अग्नि का रूप देख रहे हैं ? नहीं। आयुष्मान् ! क्या समुद्र के उस पार रूप है। हाँ, है। क्या आप समुद्र के पारवर्ती रूपों को देख रहे हैं ? नहीं। आयुष्मान् ! मैं या आप, कोई भी परोक्षदर्शी सूक्ष्म, व्यवहित और दूरवर्ती वस्तु को नहीं जानता, नहीं देखता किन्तु वह सब नहीं होता, ऐसा नहीं है। हमारे ज्ञान की अपूर्णता द्रव्य के अस्तित्व को मिटा नहीं सकती। यदि मैं पांचों अस्तिकायों को साक्षात् नहीं जानता-देखता, इसका अर्थ यह नहीं होता है कि वे नहीं हैं। भगवान महावीर ने प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा उनका साक्षात् किया है, उन्हें जाना-देखा है, इसीलिए वे उनका प्रतिपादन कर रहे हैं। इस प्रसंग से जाना जा सकता है कि पंचास्तिकाय का वर्गीकरण अन्य तीथिकों के लिए कुतुहल का विषय था । इस विषय में वे जानते नहीं थे। उन्होंने इस विषय में कभी सुना-पढ़ा नहीं था। यह उनके लिए सर्वथा नया विषय था । महुक के तर्कपूर्ण उत्तर से भी वे अस्तिकाय का मर्म समझ नहीं पाये। कुछ दिन बाद फिर परिव्राजकों की गोष्ठी जुड़ी। उसमें कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी आदि अनेक परिव्राजक सम्मिलित थे । उनमें फिर महावीर के पंचास्तिकाय पर चर्चा चली। कालोदायी ने कहा-श्रमण महावीर पाँच अस्तिकायों का प्रतिपादन करते हैं--धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय । वे कहते हैं कि चार अस्तिकाय अजीवकाय हैं । एक जीवास्तिकाय जीव है। चार अस्तिकाय अमूर्त हैं । एक पुद्गलास्तिकाय मूर्त है । यह कैसे हो सकता है ? उस समय भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य गौतम राजगृह से गुणशिलक चैत्य की ओर जा रहे थे। उन परिव्राजकों ने गौतम को देखा और वे परस्पर बोले-देखो, वे गौतम जा रहे हैं । महावीर का इनसे अधिक अधिकृत व्यक्ति कौन मिलेगा? अच्छा है हम उनके पास चलें और अपनी जिज्ञासा को उनके सामने रखें। उस समय एक संन्यासी दूसरे संन्यासी के पास मुक्तभाव से चला जाता, बुला लेता, अपने स्थान में आमन्त्रित कर लेता-इसमें कोई कठिनाई नहीं थी। मुक्तभाव और मुक्त वातावरण था। इसलिए परिव्राजकों को गौतम के पास जाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। वे सब उठे और गौतम के पास पहुँच गये। उन्होंने कहा-तुम्हारे धर्माचार्य ने पंचास्तिकाय का प्रतिपादन किया है । क्या यह युक्तिसंगत है ? गौतम ने उनसे कहा--आयुष्मान् परिव्राजको ! हम अस्ति को नास्ति नहीं कहते और नास्ति को अस्ति नहीं कहते । हम सम्पूर्ण अस्तिभाव को अस्ति कहते हैं और सम्पूर्ण नास्तिभाव को नास्ति कहते हैं। तुम स्वयं इस पर मनन करो और इसे ध्यान से देखो। गौतम परिव्राजकों को संक्षिप्त उत्तर देकर आगे चले गये । कालोदायी ने सोचा-पंचास्तिकाय के विषय में हमने महुक को पूछा, फिर गौतम को पूछा। उन्होंने अपने-अपने ढंग से उत्तर भी दिये। पर जब महावीर स्वयं यहाँ उपस्थित हैं, तब क्यों न हम महावीर से ही उस विषय में पूछे । कालोदायी के पैर भी महावीर की दिशा में बढ़ गये । उस समय भगवान् महावीर महाकथा कर रहे थे । कालोदायी वहाँ पहुँचा । भगवान् ने उसे देखकर कहा-कालोदायी ! तुम लोग गोष्ठी कर रहे थे और उस गोष्ठी में मेरे द्वारा प्रतिपादित पंचास्तिकाय के विषय में चर्चा कर रहे थे। क्यों यह ठीक है न ? RARO OG FESSET www.jamelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy