SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालालजी महाराज-अभिनन्दन ग्रन्थ भौतिक विज्ञान की दृष्टि में सामान्य पदार्थ की तुलना में विद्युत चुम्बकीय तरंगें अत्यन्त सूक्ष्म हैं जो कि समस्त विश्व में गति कर रही हैं । विद्युत चुम्बकीय स्पैक्ट्रम का साधारण विभाजन निम्न प्रकार से है रेडियो तरंगे सूक्ष्म तरंगें अवरक्त दृश्यमान बैंगनी एक्सरे | गामा किरणें ०००००००००००० ०००००००००००० १० १०६ १०२ १ १०२ १० १०-१० तरंग दैर्ध्य इस तालिका से स्पष्ट है कि समस्त विकिरणों की तुलना में दृश्यमान विकिरणों का स्थान नगण्य-सा है, लेकिन ये विकिरणे अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । दृश्यमान विकिरणें वर्णवाली हैं। उनके सात वर्ण त्रिपार्श्व (Prism) के . माध्यम से देखे जा सकते हैं । जिसका क्रम निम्न प्रकार से है (सप्त रंग) (१) बैंगनी, (२) नील, (३) नीला, आकाश-सा (४) हरा, (५) पीला, (६) नारंगी, (७) लाल । इन विकिरणों की विशेषता यह है कि बैंगनी से लाल की ओर क्रमिक इनकी आवृत्ति (Frequency) घटती है लेकिन तरंगदैर्घ्य (wave length) बढ़ती है। बैंगनी के पीछे की विकिरणें अपराबैंगनी व लाल के आगे की विकिरणे अवरक्त कहलाती हैं। यह वर्गीकरण वर्ण की प्रमुखता से किया गया है । लेकिन समस्त विकिरणों के लक्षण उनकी आवृत्ति एवं तरंग लम्बाई हैं। अब लेश्या पर विज्ञान के सन्दर्भ में विचार करें। ऐसा लगता है कि छः लेश्या के वर्ण दृश्यमान स्पैक्ट्रम (वर्णपट) की तुलना में निम्न प्रकार से हैं लेश्या दृश्यमान स्पैक्ट्रम १. अपरा बैंगनी से बैगनी तक नील नीला आकाश-सा ४. पीला ५. लाल ६. अवरक्त तथा आगे की विकिरणें कृष्णलेश्या नीललेश्या कापोतलेश्या तेजोलेश्या पद्मलेश्या शुक्ललेश्या उपरोक्त तुलना में ऐसा समझ में आता है कि (१) जैन साहित्य में तेजोलेश्या को हिंगुल के समान रक्त तथा पद्मलेश्या को हल्दी के समान पीला माना है, लेकिन उपरोक्त तुलना में तेजोलेश्या पीले वर्ण वाली तथा पद्मलेश्या लाल वर्ण की होनी चाहिए। (२) प्रारम्भ की विकिरणें छोटी तरंग लम्बाई वाली, बार-बार आवृत्ति करने वाली हैं। इनकी तीव्रता इतनी अधिक है कि तीव्रता से प्रहार करती हुई परमाणु के भीतर की रचना के चित्र प्राप्त करने में सहयोगी होती है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि प्रथम की लेश्यायें गहरे कर्मबन्ध में सहयोगी होनी चाहिए । अधिक तीव्रता तथा आवृत्ति के कारण प्राणी को भौतिक संसार से लिप्त रखनी चाहिए । यह चेतना के प्रतिकूल कार्य है अतः ये लेश्याएँ अशुभ होनी चाहिए और कर्मबन्ध पाप होना चाहिए। विज्ञान के स्पैक्ट्रम प्रकाशमापी प्रयोगों से स्पष्ट है कि ये विकिरणें, पदार्थ के सूक्ष्म कणों को ऊर्जा प्रदान करती हैं और परमाणु के भीतर की जानकारी में सहायक हुई हैं । (३) पश्चात की विकिरणों की तरंग लम्बाई अधिक है, आवृत्ति कम है । अतः इसके अनुरूप वाली लेश्या भी गहरे कर्मबन्ध नहीं करनी चाहिए । ये शुभ होनी चाहिए । 圖圖圖圖圖鑒 JUNEJWAP Alain Education International Plate & Pe
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy