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________________ मेवाड़-सम्प्रदाय की साध्वी परम्परा | १८६ 000000000000 000000000000 श्री धन्नाजी जिन-शास्त्रों की अच्छी ज्ञाता, सेवा-विनय-परायणा महासतीजी थीं। अनेकों वर्ष मेवाड़ में विचरण करके ये अन्त के कुछ वर्ष सनवाड़ में स्थानापन्न रहे । सं० २०२६ में इनका स्वर्गवास हुआ । श्री रामाजी, मानाजी, चतरकुंवरजी, सोहनकुंवरजी, सेणाजी इनकी शिष्याएं हुईं । प्रारम्भ की दो महासतियों का स्वर्गवास हो चुका है। शेष तीन विद्यमान हैं। महासती सोहनकुंवरजी की माताजी ने भी दीक्षा ली। उनका स्वर्गवास हो गया । सोहनकुंवरजी की शिष्याएँ श्री नाथकुंवरजी (श्री सौभाग्य मुनिजी की माताजी), श्री उगमवतीजी (श्री सौभाग्य मुनिजी की बहन) और कमलाजी अभी विद्यमान हैं। महासतीजी मोड़ांजी पेमांजी आदि __महासती कंकूजी की एक शिष्या श्री सुहागाजी थीं । मोडाजी उन्हीं की शिष्या हैं । नकूम के सहलोत गोत्र में इनका जन्म हुआ और बड़ी सादड़ी में इनका विवाह हुआ। कुछ वर्षों में ही ये वैधव्य पा गई । इनकी दीक्षा बड़ी सादड़ी में ही हुई, उस समय बीस वर्ष की उम्र थी। महासती मोड़ाजी भद्रपरिणामी, सरल, सात्त्विक, आचारनिष्ठ महासती जी थीं। संवत् २००३ ज्येष्ठ कृष्णा ११ को हणुतिया (जिला-अजमेर) में इनका स्वर्गवास हुआ। पेपांजी इन्ही की प्रथम शिष्या थीं। रतनकुंवरजी, खोडाजी, लेरकुंवरजी, राधाजी, रतनजी ये मोड़ांजी की कुल शिष्याएं हुई। पेपांजी थामला के श्री ताराचन्दजी सलूबाई की संतान थीं। इन्हें ११ वर्ष की उम्र में नाथद्वारा निवासी नन्दलालजी कोठारी के पुत्र कन्हैयालालजी के साथ विवाहित कर दिया था। कन्हैयालालजी केवल तीन माह जिए। महासतीजी श्री मोड़ाजी के सम्पर्क से इन्हें वैराग्योदय हुआ । सं० १९८३ में बड़ी सादड़ी में इनकी दीक्षा सम्पन्न हुई । दीक्षा रतनलाल जी पामेचा के घर से हुई। श्री पेपांजी सात्विक प्रकृति की थोकड़ों का ज्ञान रखने वाली तप रुचि वाली महासतीजी थी। इन्होंने जावद में २५ दिन की तपस्या पर पापड़ का अभिग्रह किया। सं० २०२६ वैशाख सुदी ११ के दिन पलाना में इनका स्वर्गवास हुआ। मोडांजी की शिष्याओं में से अभी श्री रतनकुंवरजी, श्री लहरकुंवरजी दो महासतियाँ विद्यमान हैं ।। Alhar प्रणाम HTTEAN ......> GAUTTTITHUM संसार कैसा अद्भुत जेल खाना है, इसमें बन्दी मनुष्य स्वयं को ६ बन्दी न मानकर मुक्त मानता है। संसार का नाटक विचित्र है। यहाँ पर प्राणी अभिनेता के रूप में काम करता है, किन्तु वह स्वयं को अभिनेता न मानकर 'चरित्र नायक' ही मान बैठता है । यही सबसे बड़ी भूल है। -अम्बागुरु-सुवचन KOREAT E RMER
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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