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________________ १८४ | पूज्य प्रवर्तक श्री अम्बालाल जी महाराज-अभिनन्दन प्रन्थ ०००००००००००० ०००००००००००० 00000-feed == साधना के पथ पर संयम अपने आप में एक कसौटी होता है। प्रखर वैराग्य के बिना इस पर कोई खरा उतरे यह संभव नहीं। मुनि श्री मांगीलाल जी, जो केवल ग्यारह वर्ष के होंगे, इतनी लघुवय में भी, अच्छी लगन के साथ संयम-साधना में उतरे और दृढ़ता के साथ उसमें गति करने लगे। पं० मुनि श्री जोधराज जी महाराज के पवित्र सान्निध्य में ज्ञान दर्शनाराधना के साथ-साथ अनेकों क्षेत्रों का विचरण और अनेकों नये अनुभव भी आप पाने लगे। वि०सं० १९८६ में हुए अजमेर वृहद् साधु सम्मेलन में भी आप उपस्थित थे। युवाचार्य पद प्राप्ति और निरस्तता मेवाड़ सम्प्रदाय के रिक्त आचार्य-पद की पूर्ति करने के लिए मेवाड़ के चतुर्विध संघ ने पूज्य श्री मोतीलालजी महाराज को मनोनीत किया तब साथ-साथ युवाचार्यपद के लिए आपका भी मनोनयन हुआ था। तदनुसार सरदारगढ़ में पूज्य श्री मोतीलाल जी महाराज को आचार्य पद दिया गया तब आपको भी युवाचार्य पद पर स्थापित किया । उस समय सम्पूर्ण मेवाड़ के समाज में ऐक्य, प्रेम और वात्सल्य का सुन्दर वातावरण बना था। किन्तु पूज्य आचार्य श्री मोतीलाल जी महाराज तथा आपके बीच में अनुशासन के प्रश्न को लेकर मतभेद हो गया। अतः पूज्य श्री ने इन्हें सम्प्रदाय का भावी शासक मानने से इन्कार कर दिया। फलतः युवाचार्य पद निरस्त कर दिया गया। ताले खुल गये मुनि-जीवन उपकारक जीवन होता है । उसके अन्तस्तल में सेवा की लहरें कल्लोलित होती रहती हैं। श्रद्धेय मुनि श्री भी अपने जीवन में ऐसे अनेकों उपकार कर गये हैं, उनमें राजकरेड़ा का भी एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है। स्थानीय राजाजी ने एक अस्पताल-भवन का निर्माण कराया था। उसे लेकर पंचायत और राजाजी के बीच विवाद खड़ा हो गया। राजाजी ने भवन पर अपना ताला लगा दिया तो पंचायत ने भी अपना ताला बिठा दिया। भवन बन्द पड़ा था । लोकोपकार की एक महान् प्रवृत्ति से जहाँ सेवा स्नेह और प्रेम का वातावरण बनना चाहिए, वहाँ क्लेशपूर्ण वातावरण तैयार होता जा रहा था। मुनि श्री वहाँ पधारे। राजाजी मुनि श्री से प्रभावित थे। उन्होंने मुनि श्री को अधिक ठहरने का आग्रह किया। ठीक अवसर देखकर मुनि श्री ने भी किसी उपकार का आग्रह कर लिया। राजाजी ने कहा-आपका फरमाना होगा, वह उपकार सम्पन्न हो जायगा। इस पर मुनिश्री ने अस्पताल का ताला हटाने को कहा । यद्यपि राजाजी के लिए यह प्रश्न अहं का बना हुआ था, किन्तु मुनिश्री की इच्छा का सम्मान करते हुए अपने अहं को एक तरफ रखकर उन्होंने तुरन्त ताला खोलने का आदेश दे दिया और अस्पताल-भवन जनता को समर्पित कर दिया ।। इस तरह राजकरेड़ा में जो एक क्लेश की जड़ थी, वह मूल से काट दी गई। नगर में शान्ति और प्रेम का साम्राज्य फेल गया। अभयदान श्रद्धेय मुनिश्री के हाथों अनेकों अभयदान के कार्यक्रम भी सम्पन्न हुए। आकड़ासादा में आपके सदुपदेश से अजैन बन्धुओं ने ३६ जीवों को अभयदान प्रदान कर दिया । अन्य कई जगह देवी-देवताओं के वहाँ होने वाले बलिदानों को भी आपने बन्द कराया। वारी कदमाल आदि गांवों में कुछ ऐसे घर माने जाते थे, जिनसे समाज कोई संबंध नहीं रखता था । SONORApp ORR80 A Vein-education intemational For Private Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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