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________________ ०००००००००००० ०००००००००००० आचार्यप्रवर श्री नृसिंहदास जी महाराज S AN फका JOINT .....2 NITION ..... ..... EASUR प्राक्कथन घोर तपस्पी श्री रोड़जी स्वामी का उदयपुर में स्वर्गवास हुआ। तदनन्तर मेवाड़-सम्प्रदाय के यशस्वी आचार्य पद पर श्री नृसिंहदास जी महाराज को समारूढ़ किया गया । श्रीनृसिंहदास जी महाराज के सम्पूर्ण जीवन-वृत्त से तो आज भी हम अनजान हैं। किन्तु पूज्य श्रीमानजी स्वामी द्वारा विरचित गुरुगुण की ढालें उपलब्ध हो जाने से कुछ ऐतिहासिक अन्धेरा हटा। कुछ अनुश्रुतियाँ तथा कुछ ढालों की सूचनाएँ इन सब को मिलाकर जो जानकारी मिली वह नीचे उद्ध त की जा रही है। जन्म श्री नृसिंहदासजी महाराज का जन्म-स्थान रायपुर है। भीलवाड़ा जिले का यह गांव आज भी जैनधर्म का अच्छा क्षेत्र है। मेवाड़ मुनि-परम्परा के चातुर्मास यहाँ प्रायः होते ही रहते हैं। नागरिकों का मुनियों के प्रति बड़ा सद्भाव तथा वात्सल्य भाव है। श्री गुलाबचन्द जी खत्री और उनकी धर्मपत्नी गुमानबाई हमारे चरितनायक के माता-पिता थे। पूज्यश्री का जन्म समय क्या रहा, इसका कुछ भी पता नही। हाँ इतना अवश्य ज्ञात है कि संवत् १८५२ में जब पूज्यश्री की दीक्षा हुई तब वे जवान ही नहीं विवाहित भी थे और व्यापार करते थे। इतनी तैयारी के लिए उस समय उनकी उम्र बीस-पच्चीस वर्ष की होनी ही चाहिए। इससे अनुमान लगता है कि पूज्यश्री का जन्म १८२७-१८३१ के बीच किसी वर्ष का होना चाहिए। अध्ययन और विवाह पूज्य श्री गृहावस्था में भी पढ़े-लिखे थे, ऐसा ढाल से ज्ञात होता है। वह युग लगभग अज्ञानता का युग था। ब्राह्मणों और महाजनों के बच्चे अवश्य थोड़े बहुत पढ़-लिख लिया करते थे। देश में उस समय भी विद्वान अवश्य थे, किन्तु वे मात्र अमुक-अमुक थे। आम नागरिकों में इतनी अनक्षरता थी कि हींग को हग, मिर्च को मच तथा दोहा को दुआ लिखकर काम चला लिया करते थे। इसका प्रमाण उस युग की बहियाँ और लिखे-पत्र आदि हैं। ऐसे उस युग में श्री नृसिंहदास जी का अच्छा पढ़ लिख लेना सभाग्य और बौद्धिक योग्यता का प्रमाण है। योग्यावस्था में विवाह हुआ। विवाह कहाँ हुआ, कन्या का नाम क्या था, उसके माता-पिता कौन थे, इसकी कोई जानकारी नहीं। १ सेर रायपुर साँभलो रे गढ़मढ़ पोल प्रकार । सेठ सेनापति तिहाँ बसे रे बहुला छे सुखकार ।। २ खत्रीवंश में जाणिये रे गुलाबचन्द जी नाम । भारज्या गुमानबाई दीपती रे रूपवंत अभिराम ।। ३ भणे गुणे बुधवन्त थया, जोवन वय में आय । वेपार वण्ज करे घणो, रह्या परम सुखमांय ।। ४ परण्या एकज कामणी, सुख विलसे संसार । धर्म ध्यान हिये सीविया, जाण्यो अथिर संसार ।। R00 LD Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org,
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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