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________________ घोर तपस्वी पूज्यश्री रोड़जी स्वामी | १३१ तेले का तप कर स्वामीजी ने वहाँ अखण्ड ध्यान किया। वहीं तपस्वीजी की आँखें खुल गईं। दृष्टि लोट आई । शिला धर दी रायपुर की 'घणां की वाली' में तपस्वीजी ध्यानस्थ थे। एक ग्वाले ने तपस्वीजी के चारों तरफ रेती का ढेर लगाकर ऊपर एक बड़ा-सा पत्थर रख दिया। बड़ा जबरदस्त परीषह था । किन्तु स्वामीजी अडिग ध्यानस्थ बैठे रहे । एक भाई प्रायः प्रतिदिन उस मार्ग से आया-जाया करता था । उसने स्वामीजी की यह स्थिति देखी। उसे बड़ा दुःख हुआ । उसने तुरन्त उपसर्ग उठा दिया। कहते हैं, नगर में चर्चा होने पर ग्वाला को पकड़ भी लिया गया। किन्तु स्वामीजी ने आहार त्याग कर उसे छुड़ा दिया । सनवाड़ में उपसर्ग सनवाड़ आज तो जैन समाज का अच्छा केन्द्र है । किन्तु एक युग में वहाँ किसी जैन मुनि का प्रवेश ही कठिन था। जैन अनुयायियों का निवास नहीं होगा अथवा अत्यल्प संख्या में रहा होगा । उस स्थिति में श्री रोड़जी स्वामी सनवाड़ पधारे नियमानुसार स्वामीजी ने एकान्त वन में ध्यान किया । ग्वाले, जो ढोर चरा रहे थे, मुनि को देखकर पहले तो डरे, किन्तु मुनि की शान्त मुद्रा से उनका भय जाता रहा । वे क्रोध और कौतूहल के मिश्रित भावों में बह कर स्वामीजी को दोनों पाँवों से पकड़कर घसीटने लगे । यह भयंकर क्लेशप्रद उपसर्गं था, किन्तु सहिष्णुता के मूर्तिमन्त आदर्श स्वामीजी अक्षुब्ध बने रहे । कहते हैं, उन्हें भी अधिकारी दण्ड देने लगे तो स्वामीजी ने मुक्त करा दिया । 3 सर्प द्वारा अभ्यर्थना स्वामीजी के अपार धैर्य के प्रसंग में पाठक पहले पढ़ चुके हैं कि उदयपुर में नाग ने स्वामीजी का चरणवन्दन किया । श्री नृसिंहदासजी ने इस प्रसंग को अपनी ढाल में इस तरह ढाला है - स्वामी वठा सू पधारियाजी गया उदयपुर मांय । स्वामी तो देवे धर्म देशना वे तो भाया करे अरदास ॥ आतापना लेवे स्वामी रोडजी सिला ऊपर जाय । सर्प निकल्यो तिण अवसरे उ तो कालो डाटक नाग ॥ प्रक्रमा दीनी तिण अवसरे राजा वासक नाग । पगां विचे ऊभो रयो वो तो ऊभो करें अरदास ।। क्षमा का आदर्श कैलासपुरी ( एकलिंगजी ) शैवमत के प्रधान पीठों में से एक है । एक युग था, जब साम्प्रदायिक द्वेष हवा की तरह जनजीवन में घुला मिला था "हस्तिना ताड्यमानोऽपि १. स्वामी शहर सू पघारिया गया विखम तेलो कर स्वामी विराजियाजी वाँकी आंख्या खुली २. रायपुर स्वामी आवियाजी घणां की वाली तपस्या करे स्वामी रोड़जी मूरख सिला मेली माथे आय ।। ३. सनवाड़ स्वामी आविया जी तपस्या करे भरपूर | चरण पकड़ ग्वाला धींसिया वाँ तो क्षमा आणी मनशूर ॥ उजाड़ । तत्काल || में जाय । fse ★ 000000000000 000000000000 XOOOOOCEED CATIONAL
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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