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________________ मेवाड़ सम्प्रदाय के ज्योतिर्मय नक्षत्र | १२५ -- ०००००००००००० ०००००००००००० र, पूज्य श्री पृथ्वीराय में पट्टालंकृत हुए ऐसा, छोटी और नारायणदास जी महाराज, पूज्य श्रा पूज्य श्री पृथ्वीराज जी महाराज मेवाड़ की यशस्वी सन्त परम्परा के मूल संत रत्न गिने जाते हैं । मेवाड़ प्रदेश में जैन धर्म की मुकुलित कलि को विकसित करने का श्रेय पूज्य श्री पृथ्वीराज जी महाराज को ही दिया जा सकता है । ये मेवाड़ संप्रदाय के प्रथम आचार्य थे । इनके बाद पूज्य श्री दुर्गादास जी महाराज, पूज्य श्री हरजी राज जी महाराज, पूज्य श्री गांगोजी महाराज, पूज्य श्री रामचन्द्र जी महाराज, पूज्य श्री मनोजी महाराज, पूज्य श्री नारायणदास जी महाराज, पूज्य श्री पूरणमल जी महाराज क्रमश: मेवाड़ सम्प्रदाय में पट्टालंकृत हुए ऐसा, छोटी और बड़ी दोनों पट्टावलियों से सिद्ध है । एक अन्य पट्टावली के अनुसार, पूज्य श्री पृथ्वीराज जी महाराज के बाद पूज्य श्री दुर्गादास जी, पूज्य श्री नारायण जी, पूज्य श्री पूरणमल जी, पूज्य श्री रामचन्द्र जी महाराज हुए ऐसा क्रम है। इनमें पूर्व मत छोटी-बड़ी पट्टावली के अनुरूप है, जो प्राचीन है, यह पट्टावली अर्वाचीन है। अत: पहली परम्परा ही समीचीन लगती है । बड़े खेद का विषय है कि उपर्युक्त परम्पराधीन पट्टाचार्यों, महामुनियों के विषय में हम केवल नाममात्र का परिचय ही दे पा रहे हैं। बहुत शोध करने के उपरान्त भी हमें उक्त पूज्यों के विषय में कोई जानकारी नहीं मिल पायी। पूज्य श्री पूरणमल जी महाराज के बाद पट्टानुक्रम से घोर तपस्वी पूज्यश्री रोडजी स्वामी का नाम आता है। पूज्यी श्री रोड़ जी स्वामी से ही, मेवाड़ सम्प्रदाय के महात्माओं की ऐतिहासिकता के कुछ प्रमाण उपलब्ध होते हैं जिन्हें आगे क्रमशः देने का प्रयास किया गया है। PAISA K I HUIRAHED ANTHIL IMIMITILY -----0-0--0--0-0--0 ---0--0-0-0--0--0-0 दूध का वर्ण तो उज्ज्वल है, व्यवहार भी कितना उज्ज्वल है, जो मथने वालों के हाथ में स्निग्ध-उज्ज्वल नवनीत देता है। चन्दन का तन ही नहीं अन्तर मन भी कितना सुगन्धित है, जो घिसने वालों के हाथों को मधुर सौरभ से सुगन्धित कर देता है। ____ संत का रूप ही नहीं, स्वरूप भी कितना निर्मल और पावन है, जो उसकी चरण-वन्दना करने वाले भी विश्व में शीर्षस्थ बन जाते हैं। -अम्बागुरु-सुवचन ----------------- -0-0-0--0-0-0--0--0-2 TAIN ar அறிவின் SBRat:
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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