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________________ * 000000000000 oooooooooooo 000 8000 परमल अम्बेश Jain Education International १ गढकोट, किला थामला [ छन्द - सेणोर - चोसर ] उगणी से बासटे - अम्ब मुनि ओत, मेवाड़ में जोत जागी । मुक्ता मुनि-आयने ओप उजवाय ने, ज्ञानी पायने वैराग गुरु पागी ॥। १ ।। संवत् बयासिये मगसर शुद श्रेष्ठवन संयमी - काज संघ रा श्रावका भावना भाव का समय का दावका, मतो कीनो । "अभिनन्दन" आदर्यो सुजग वन्दन रो, सन्त दोष दश दूर कर-कर्म चकचूर कर भाव भवपूर भर, मोह मारियो ॥ २ ॥ मरु-मेवाड़ में मालव-मझार में, धायो । पुहुमि पहाड़ में सिंह तपे ज्यु तावड़ा पलक रा शहर औ पावड़ा, 'गामड़ा' 'अम्ब' आयो ॥ ३ ॥ नर अर नारियाँ सुणे उपदेश जोतारिया जारिया कर्म- जाला । झुक्या नर नाहरा गुण देख ताहरा घर अर बाहरा फेर भगत जिन भावरा भया यूँ बावरा, निव्या नर नावरा अम्ब आगे । चरण रज धूर सूं कर्म भक भूर, सूर नर पूर रा भाग जागे ।। ५ ।। माला ।। ४ । जैन अजैन जो समझ ली सैन जोझुक्या नेण गुणाने देख दूणा । कीरत री बेलड़ी रही ना नेनड़ीगढा-कोटो अगुणा शिर मोड़रो स्व पद दीनो ॥ ७ ॥ मगन-मदन सारा ही 'रजत कवि' परमल २ पूर्व फक [] घोर तपस्वी 'रजत मुनि' अष्टमी, सारियो । For Private & Personal Use Only जी शिष्य सोभाग जी, हरखे है मना माही । राजरा- काँई वखाण करेअम्बेश ना जुगा ३ पश्चिम में अथूणा ।। ६ ।। जाही ॥ ८ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.012038
Book TitleAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamuni
PublisherAmbalalji Maharaj Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1976
Total Pages678
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size26 MB
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