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________________ पा विशाल मण्डप सजाया गया था। मुनि श्री के आसनग्रहण के पश्चात श्री संघ ने सामुहिक गुरु वन्दन किया। पश्चात मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. ने मांगलिक सुनाया और संक्षिप्त उद्बोधन दिया और कहा, "इस चातुर्मास समय में जो समय हमने बिताया। उस दौरान हमारे द्वारा अगर किसी का मन दुखाया गया हो। कारण वश कटुवचन कहे गये हो। और उनकी आत्मा को ठेस लगी हो तो आज विछोह की इस घडी में हम अन्र्तमन से उन लोगों से और श्री संघ से क्षमा चाहते है।" मुनिराज श्री के वचनों को सुनकर उपस्थित जन समुदाय के नेत्र बरबस ही गीले हो गये। मुनि श्री लोकेन्द्र विजयजी ने अपने संक्षिप्त और सारगर्भित प्रवचन में बताया "इस गोरेगाँव के राजस्थान भवन में हमने सफलता पूर्वक जो चातुर्मास पूर्ण किया। उसका श्रेय यहाँ के श्री संघ को है। यहाँ साम्प्रदायिक सौहार्दता एकता का जो अनुठा उदाहरण हमे देखने को मिला, वह वास्तव में प्रशंसनिय है। यहाँ के कार्यकर्ता गण को हम अतमन से धन्यवाद देते है और आशिर्वाद देते है कि भविष्य में भी इसी प्रकार से श्री संघ और अन्यत्र जगहो से पधारे मुनि भगवन्तो की निस्वार्थ भाव से सेवा करते रहे!" इसके पश्चात श्री सिद्धाचल तीर्थ की यात्रा के प्रतिक श्री सिद्धाचल पट्ट की परिक्रमा विधिवत कि गई और चैत्यवन्दन किया गया। पातुर्मास परिवर्तन में पधारे चतुर्विध श्री संघ की भक्ति का लाभ श्री श्रीमाल परिवार की तरफ से की गई थी। आज मुनिराज द्वय श्री से मिलने वालों का तांता लगा रहा! जो सौहार्द भाव, एकता और आत्मीयता का अनुपम उदाहरण गोरेगाँव चातुर्मास मे देखने को मिला वह वास्तव में प्रशंसनिय है। यहाँ के चातुर्मास को सानन्द सम्पन्न कर के गोरेगाँव से विहार कर जोगेश्वरी, अंधेरी की तरफ प्रस्थान किया। इस तरह बम्बई महानगर के उपनगरों में विचरण करते आगे बढते हए दिनांक २३-११-९० को श्री शांतिनाथ जैन मंदिर कबुतर खाना दादर प्रवेश किया। दादर ईस्ट मे श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का आयोजन था। बम्बई के उपनगर दादर (पूर्व) में दिनांक २६-११-९० सोमवार को श्री राजेन्द्र जैन मण्डल (भीनमाल) शैतान चौकी दादर की ओर से राज राजेश्वरी माँ भगवती श्री पार्श्व पद्मावती माताजी की महापूजन का भव्यातिभव्य आयोजन रखा गया। यह अनुठा, अनोखा आयोजन श्री मद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के प्रशिष्य एवं षष्ठम पट्टधर शांत स्वभावी गच्छाधिपति वर्तमानाचार्य देवेश श्री मद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के आज्ञानुवर्ति श्रमण सूर्य आगम दिवाकर पू. मुनि प्रवर श्री लक्ष्मण विजयजी 'शीतल' म.सा. के सुविनित शिष्य रत्नेश प्रवचनकार, शासन प्रभावक मृदुभाषी पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. वात्सल्य महोदधी ज्योतिषरत्न मधुर वक्ता पू. मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी म.सा. एवं साध्वी श्री पुष्पा श्रीजी आदि ठाणा ७की पावनिय शुभ निश्रा में किया गया। इस महापुजन के लिये श्री हालारी वीसा ओसवाल भवन में विशेष सजावट की गई थी। ठीक १२ बजे महापूजन का कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। इस महापूजन के मध्य अपने संक्षिप्त सारगर्भित उद्बोधन में भक्ति के महत्व पर प्रकाश ११० मानव जब माया-के-मोह जाल में उलझ जाता हैं तब वह अपने अस्तित्व को भी भूल जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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