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________________ प्रवचन पूर्ण होने के पश्चात मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी, मुनिश्री लोकेन्द्र विजयजी, साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ और श्री संघ के श्रावक श्राविका कल्याण नगर के जिन मंदिरो में दर्शन-वन्दन करने गये। आज के इस चैत्य वंदन,दर्शन को चतुर्विध श्री संघ सहित "चैत्य परिपाटि" कहते है। वहाँ से आकर अब सामुहिक प्रतिक्रमण की तैयारी की गई। शाम को साम्वत्सरिक प्रतिक्रमण करके सभी ने अन्त:करण पूर्वक एक दूसरे से क्षमायाचना की। मुनिराजश्री ने सर्वप्रथम श्री संघ से अन्त:करण पूर्वक क्षमायाचना की। मिच्छामि दुक्कड़म किया। पश्चात श्री संघ ने भी भक्तिभाव पूर्वक आत्मप्रसन्नता से मुनिद्रय व साध्वी मंडल से क्षमायाचना की। बादमें सभी ने प्रतिक्रमण के पश्चात एक दूसरे से क्षमा प्रार्थना की। इसी क्षमापना पर्व के साथ ही श्री पर्वृषण महापर्व सानन्द सोल्लास सम्पन्न हुआ। भाद्रपद शुकू १० तदनुसार १० सितम्बर को कल्याण नगर में आठवा अचिन्त्य महिमावन्त महान प्रभावशाली श्री पार्श्व पद्मावती महापूजन का भव्य आयोजन किया गया। यह आयोजन महाजन वाड़ी में शा. श्री. जवेरचन्दजी टेकचन्दजी की ओर से किया गया था। श्री छोटे राही एण्ड पार्टी ने संगीतमय स्वर लहरी में पूजन का जो आनन्द बढ़ाया उसे सभी ने मन्त्रमुग्ध होकर सराहा और आनन्द लिया। महापूजन के सुअवसर पर महाराष्ट्र राज्य के तत्कालीन खाद्य मंत्री श्री नकुल पाटील एवं कल्याण महानगर पालिका के आयुक्त श्री भोसले पधारे थे। महापूजन के दौरान आयोजक श्री जवेरचन्दजी की धर्मपत्नि श्रीमति कमलादेवी के शरीर में माताजी के पवन का संचार हआ। आसोज सुद पूर्णीमा को श्री उम्मेदमलजी प्रतापजी की ओर से श्री पाश्वे पद्मावती महापूजन का आयोजन किया गया। कल्याण नगर में मुनिराजद्वय के चातुर्मास काल में हुए धार्मिक अनुष्ठानों को हमेशा याद किया जायेगा, विशेष रुप से श्री अर्हत् महापूजन की स्मृतियां तो अमिट रहेगी। वास्तव में इस कल्याण नगर में श्री अर्हत् महापूजन का भव्य आयोजन पहली बार ही किया गया था। इसलिये इसकी महिमा निराली बन गई है। यह महापूजन श्री मुनिद्रय की शुभ निश्रा में आसोज शुक्ल ६ दिनांक ६ अक्टूबर १९८९ को पढ़ाई गई। इस महापूजन में दूर दूर से अनेक श्रद्धालुओं ने आकर लाभ लिया। श्री राजस्थान जैन संघ ने इस महापूजन को पूर्णतया सफल बनाने में तन मन धन से अच्छा सहयोग दिया। रात्रि को प्रभु भक्ति का आयोजन हुआ। श्री सोहनलाल शास्त्री की पार्टी ने प्रभु भक्ति का गुणगान किया। महापूजन में विधिकार डा. बाबुभाई नवसारी गुजरात से पधारे थे। महावीर हाल में आयोजित इस महापूजन के अवसर पर मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने संक्षिप्त उद्बोधन दिया। शा. जुहारमलजी छोगमलजी परिवार की तरफ से कल्याण नगर में सर्वप्रथम बार श्री राजेन्द्र सूरि अष्टप्रकारी पूजन पढ़ाई गई। चातुर्मास काल पूर्ण हो जाने के कारण कार्तिक पूर्णिमा को पू. मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी पू. मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. और साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी आदि ठाणा ६ प्रताप हाल से चातुर्मास परिवर्तन हेतू श्री चतुर्विध श्री संघ सहित बॅण्ड-बाजों के साथ गांधी चौक स्थित ब्राह्मण वाड़ी पधारे। श्री सिद्धाचल तीर्थ की यात्रा स्वरूप श्री सिद्धाचलजी का पट्ट यहाँ लगाया गया। जिसका उपस्थित श्री संघ समुदाय ने दर्शन वन्दन कर लाभ लिया। जिस तरह समय मन अविरत गतिमान बनता है उसी तरह समय भी अविरत गतिमान है। ९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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