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________________ श्री पार्श्व पद्मावती महापुजन का अद्भूत चमत्कार आकुर्डी पुणे ८ जून १९८९ को मुनिभगवन्तों ने आकुर्डी में मंगल प्रवेश किया यहाँ श्री पार्श्व पंचकल्याणक पूजा सम्पन्न हुई। मुनि भगवन्त ११ जून को आकुर्डी के अन्तर्गत प्राधिकरण में पधारे। वहाँ घाणेराव निवासी गुरुभक्त श्री शाह नागराज चांदमलजी श्रीमाल परिवार की ओर से श्री पार्श्वपद्मावती महापूजन का आयोजन किया गया। इस महापूजन का महत्व अपने आप में एक कहानी बन गयी । मुनिराज जिस समय श्री पार्श्वपद्मावती माता के पूजन के लिये बनवाए गये पांडाल से उपर श्री चांदमलजी के घर पहुँचे। उस समय एक आकस्मिक घटना हुई मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखर विजयजी ने अभी अपना आसन ग्रहण ही किया था कि उन्हे सहसा ऐसा लगा जैसे बिजली के तार से शरीर छु गया हो। देखा तो ऐसा कुछ नहीं था। न कोई तार था न कुछ और ! फिर ऐसा क्यों हुआ। मुनि श्री ने पलभर आँखे मूंद ली। आत्मा ने पुकार कर सावधान किया " जल्दी नीचे पांडाल में पहुँचो । अनहोनी घटना हो सकती है।" मुनिश्री ने तुरन्त निचे पहुँच कर चारो तरफ नजर दौडाई पांडाल के एक कोने में सजावट के एक बल्ब के करीब बिजली से आग लग चुकी थी। तत्काल मैन स्वीच को बन्द कर उस बल्ब को हटा दिया गया और एक दुर्घटना होने से बच गई। मुनिश्री के पास खड़े व्यक्तियों ने कहा :- 'मुनिवर आपको कैसे ज्ञात हुआ कि आग लगने वाली है। आपकी महिमा अपरम्पार है। सभी उपस्थित जन समुदाय और चांदमलजी श्रीमाल परिवार के लोग हतप्रभ थे। मुनिश्री ने बस इतना ही कहा:- इसमें मेरा कुछ नहीं यह तो श्री पद्मावती माताजी का चमत्कार है।" सबने मन ही मन माताजी को नमन किया। भगवती श्री पद्मावती माताजी के इस चमत्कार की खबर तत्काल चारो तरफ फैल गई। जब महापूजन प्रारंभ हुई तब पूरा पांडाल खचाखच भर गया। सभी भक्तिभाव से विभोर थे। श्री चांदमलजी श्रीमाल परिवार का कोई भी सदस्य पूजा में बैठता तो उसके अंगो में माँ के 'पवन' का संचार होता । माताजी के इस चमत्कार को देखकर लोग भाव विह्वल हो गये और श्री पद्मावती माताजी की जय जयकार करने लगे। श्री पार्श्वपद्मावती की यह छठ्ठी महापूजन थी । यह भक्तो के मानस पटल पर अमिट छाप छोड़ गई। इस महापूजन में भक्तों की जितनी भीड हुई उतनी पहले कभी नहीं हुई। मुनिप्रवर की साधना की सराहना करते हुए भक्तजन थकते न थे। आकुर्डी में इस चमत्कारिक महापूजन से जिन शासन का प्रभाव द्विगुणित हो गया। Jain Education International कर्तव्य के प्रति जहाँ निष्ठा दृढ होती हैं, वहाँ मन में उत्साह की औट में नौराश्य आता ही नहीं हैं। For Private Personal Use Only ९१ www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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