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________________ हीम का लगाकर देख रहा था जिस रास्ते संघ आज अत्यन्त प्रसन्न था। बहत सबेरे से ही आबाल यवा वद्ध और महिलाये नये नये परिधानो में सुसज्जित होकर उस रास्ते की ओर टकटकी लगाकर देख रहे थे जिस रास्ते से मुनिराज द्वय आनेवाले थे। सबके मन में अनोखा उत्साह था। मुनिराज श्री के दर्शन की ललक सभी में थी। पू. मुनिराजश्री का नगरागमन १० बजे हुआ। मुनिराज श्री को आते देखकर सभी दौड पडे और उधर बैंडवालोने मधुर धुन छेड दी, महिलाओं ने मंगल गीत गाना शुरु कर दिया। बच्चे किलकारी मार मारकर आगे पीछे भाग दौडकर रहे थे। नगर के बाहर सामैया सह स्वागत हुआ और इसी समय युवा वर्ग ने उच्च स्वरों में नारा लगाया:- "लेखेन्द्र लोकेन्द्र आये है, नई रोशनी लाये है।" मुनिराज द्वय एवं साध्वीश्री पुष्पाश्रीजी ठाणा ६ को मंगल कलश से बधाया एवं गहुंली की गई। और साथ ही मोहना नगर का वातावरण धर्ममय और मोहक हो उठा। चतुर्विध श्री संघ के रुप में नगर प्रवेश कर भ्रमण कर जिन प्रतिमाओं के दर्शन वंदन कर कच्छी गुजराती उपाश्रय में मुनिद्वय विराजित हुए। प्रारंभिक मंगला चरण के पश्चात संक्षिप्त उद्बोधन हुआ। त्रि में मुनिराज द्वय की शुभ सानिध्यता में, मार्गदर्शन में प्रतिष्ठा के कार्यक्रम को सुचारु और सुव्यवस्थित रुप से संचालित करने हेतू विभिन्न समितियां गठित की गई। किसी भी आगन्तुक अतिथि को किसी प्रकार का कोई कष्ट न हो, कोई तकलीफ न हो इसके लिये जैन मित्र मण्डल का गठन किया गया। श्री संघ के सदस्य समय-समय पर मुनिराज द्वय का दिशानिर्देश प्राप्त कर प्रतिष्ठा के कार्य को गति देते रहे। १० फरवरी १९८९ को मोहना नगर (कल्याण) में श्री अजितनाथस्वामी आदि जिन बिंब एवं प्रभु श्री मद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी की गुरु मुर्ति प्रतिष्ठा का यह कार्यक्रम शुरु हुआ। नुतन जिन मंदिर आहोर (राज.) के निवासी शाह श्री पुखराजजी भगवानजी परिवारवालोंने बनवाकर मोहना जैन श्री संघ को सादर समर्पित किया। दो खण्ड के जिन मंदिर में उपर जिन बिम्ब की स्थापना एवं नीचे के खण्डमें गुरुमूर्ति की स्थापना होगी। ११ फरवरी १९८९ को रात्रि में कर्जत बालिका मंडलने नयनाभिराम संगीत कथा रुपक, डांडीया व दीपक नृत्य प्रस्तुत किया जिसकी उपस्थित दर्शको ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। अत: बालिकाओं को उत्साहवर्धक पुरस्कार प्रदान किये गये। १३ फरवरी १९८९ को स्थानिय गुजराती कच्छी बालिका मंडलने अपने कार्यक्रम का प्रारंभ स्वागत गीत से किया। बालिकाओने महासती चन्दनबालाका नाटक प्रस्तुत कर उपस्थित दर्शको का मन मोह लिया। १४ फरवरी १९८९ को विशेष कार्यक्रम में आमंत्रित संगीतकार ने अपनी मधुरतम कर्णप्रिय स्वरो में वाद्ययंत्रो की सहायता से संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया। बाद में श्री अरिहन्त जैन युवक मंडल, कल्याण ने अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम में 'अमर कुमार' 'भक्ति में शक्ति नागिन नृत्य, थाली नृत्य, आदि बहुत ही सराहे गये। १६ फरवरी १९८९ का दिन अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक उल्लास और आनन्द के वातावरण में प्रारंभ हुआ। मोहना श्री संघ को इसी दिन की चीर प्रतीक्षा थी। मोहना का जैन मित्र मंडल सूर्योदय से ही अपने कार्य में जुट गया था। बाहर गांव के अतिथि बसों, कारों, ट्रेनो से आ रहे थे, स्थानिय नागरिको का उत्साह उमंग देखते बनता था। उत्साह और उमंग का छलकता सागर सभी के मुख मण्डल पर छाई प्रसन्नता की चमक अनोखी थी। आज ही दोपहर ७८ कामी पूरुष को कभी भी ममय, संयोग, परिस्थिति या भविष्यपर विचार करने तक का ज्ञान नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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