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________________ अभिनंदन - गीत मुनिश्री लोकेन्द्रविजय ऋषिराज! तुम्हारे चरणों में शत वंदन करते हम। तेरा अभिनंदन करते हम। ॥ ध्रुव ॥ गुगलिया कुल में जन्मे, कमला-सुत नयन सितारे। श्री मोतीलाल के कुल-दीपक, तुम जगती के उजियारे। बाल ब्रह्मचारी मुनिवर को, वंदन करते हम॥ १ ॥ गुरु लक्ष्मण की कीर्ति बढ़ाकर, शिष्य का फर्ज निभाया। धर्म ध्वजा फहराकर जग में, " कोंकण केशरी' पद पाया। धर्म-दीप बनकर मुनिवर तुम, भगा रहे अध तम॥ २ ॥ सरस्वती के वरद् पुत्र! तुम त्यागी तन-मन-धन से। स्वागत करें तुम्हारा मुनिवर, भावों के अर्चन से। करुणा के सागर है मुनिवर! जल की बूंद हैं हम।। ३ ॥ तीर्थों के संस्थापक मुनिवर, युग-युग अलख जगाओ। जैन धर्म के जयकारों को, चहुँदिशि में प्रसराओ। भाव पुष्प " लोकेन्द्र विजय" के अर्पित हैं हर दम॥ ४ ॥ तेरा अभिनंदन करते हम तुम्हें शत वंदन करते हम।। मानव महान हो तो भी, अज्ञान की गुलामी से, सत्य का निरीक्षण नहीं कर पाता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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