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________________ शुमकामना मेरा हृदय हर्ष की उत्ताल तरंगो से तरंगित हो रहा है कि मेरे संसार पक्ष के सहोदर भाता "कोंकण केशरी" पूज्य मुनिराज श्री लेवेन्द्रशेखर विजयजी म.सा. के पद समारोह पर अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने जा रहा है। वास्तव में अभिनन्दन-वन्दन उन्हीं महान आत्माओं का होता है जिनका जीवन सदाचरण में ढला हो। मैं समय-समय पर पूज्य भाता गुरुदेव के दर्शन का लाभ लेता हैं आपके चरणों में कोई भी दुःखी एवं चिन्तापास्त व्यक्ति आते हैं वे परमसन्तुष्ट होकर हंसते हुए जाते है। यह उनकी महान साधना एवं करुणा पूरित हृदय का प्रभाव प.पू. छोटे धाता मुनिराज श्री लोकेन्द्र विजयजी भी अपनी साधना में अडिग है। आप श्री दारा दिये गये वासक्षेप एवं पद्मावती मंत्र से अभिमंत्रित दोरा जिसमें इतनी ताकत है, शक्ति है कि कैंसर जैसे रोग भी जड़मूल से समाप्त हो गये हैं, जो व्यक्ति ऑपरेशन के लिए तैयार हो गया था उसके भी वासक्षेप व्दारा बिना ऑपरेशन अच्छा हो गया। ऐसे अनेक कार्य दोनों भाता मुनिराजों ने कर के जन कल्याण किया ज्ञानी महर्षियों ने कहा है, जिस घर में संत का जन्म हुआ हो, उस घर की कई पीढ़ियो का उन्दार हो जाता है। पूज्य श्री के प्रति शुभ -भावना, दीर्घ आयु की मंगल कामना करते हए चरण कमलों में शत् शत् वन्दन करता है। जीवनलाल मोतीलालजी गुगलिया रतलाम (म.प्र.) दि. २३/१२/eo YA • संसार त्याग की भावना को स्थगित करने का मतलब यही है कि अब तक सत्य का दर्शन नही हुआ और विलम्ब से यदि कोई और नया आवरण आ चिपका तो आत्मासाधन का मार्ग अंधकार में डूब जाता है इस का तात्पर्य यह हैं कि मंगल कार्य में विलंब नही होना चाहिए। AIIANS AVAVAVANYON २६ जिसके प्राण मृदुता, करुणा और वात्सल्य से भरे होते हैं, वे चाहे जिसके दु:ख को अपना दुःख मान लेते हैं। भक्त, संत, महात्मा और समत्वशील आत्मायें इससे ही करुणा सागर कहलाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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