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________________ जैन ज्योतिष -श्रीमती करुणा शाह, ज्ञानके अलग अलग प्रकारोमेंसे ज्योतिष एक ऐसा विशिष्ट ज्ञानका साधन है जिसका सीधा उपयोग करनेसे इष्ट सिध्धि और कल्याण प्राप्ति सरल हो जाती है। ज्योतिष विषयों पर अनेक शिक्षित वर्गमें विचार होने लगे है। कुछ लोग ज्योतिषको मानते नहीं। कुछ लोगो के मन पर ज्योतिष विषय पर उलटा प्रभाव होता है। ज्योतिषका मूल स्थान है आकाश जीसे हम खगोलशास्त्र कहते है। इस खगोलशास्त्र के विषयमें पूर्व और पश्चिम के मत भिन्न प्रकारके है। जैन दर्शन उससे अपना अलग विचार दिखाता है। सूर्य-चंद्र-ग्रह-नक्षत्र और तारा ये पांच ज्योतिष है। इसमें सबसे श्रेष्ठ चंद्र है उसके बाद सूर्य का स्थान है। सूर्य और चंद्र दो इन्द्र है बाकी सब ग्रह नक्षत्र उसके परिवार है। ग्रह ८८ और नक्षत्र २८ है ताराओंकी संख्या तो करोड़ो के आसपास है। ये सब चंद्रका परिवार है। जंबुद्विप में दो चंद्र दो सूर्य है। लवणसमुद्रमें चार चंद्र, चार सूर्य है। और अढाई द्विपमें १३२ चंद्र और १३२ सूर्य है। इनकी संख्या हरेक शाखकारोंने अलग बताई है। ये सब चर ज्योतिष है। ये ज्योतिष चक्र मेरू पर्वतके पास प्रदक्षिणा रूपसे फिर रहा है। अढाईद्वीपकी बाहर स्थिर ज्योतिष चक्र है। कालकी गणना चर ज्योतिषचक्र पर ही आधार रखती है। ज्योतिष शुभ अशुभ कार्योका कतृत्व धारण करता है। दूसरोंका मंतव्य है कि ज्योतिष कतृत्व नही । लेकिन सूचकत्व जरूर है। जैन ज्योतिषको मंतव्य है विश्वमें हो रहे कार्योंमें ज्योतिष चक्र अगर कुछ न करे तो कोई ग्रह कोई नक्षत्रमें प्रवेश करें और जो परिवर्तन होता है। अगर ये परिवर्तन ऐसा ही हो जाये सहजगतिसे तो विश्वमें कोई कार्य ही नही बन सकता। इस लिये इस मन्तव्यके अनुसार ज्योतिषचक्र में ऐसे किरण प्रसर रहे है जिनकी विश्वके हवामान, मानवी वस्तु पर उसकी असर होती है ज्योतिष दैवी तत्वको मानता है और वो कार्य करता है। ज्योतिष का आधार गणित है। गणित की भिन्न पध्धति है। कोई भी गणित का प्रयोग करो परिणाम सच निकला तो वो पध्धति मान्य है। पश्चिमी क्षेत्रमें ताराओंका महत्व बहुत देते है। नक्षत्रके आसपास जो ताराओंका पूंज रहता है। उसी पुंजके प्रकाशसे नक्षत्र पर असर पडती है वह नक्षत्रका कारकत्व कहलाता है। तारे स्वयं प्रकाशित है और ग्रह पर प्रकाशित है। उदाहरण के स्वरूप एन्टरस (Anteras) नामका तारापूंज ज्येष्ठाके पास है और ज्येष्ठा नक्षत्र वृश्विक राशीका नक्षत्र है तारोंकी असर ज्येष्ठा नक्षत्रके ७५.५४' कला होनेसे उस व्यक्ति के जिवन पर उसकी असर होगी अगर इस राशीमें रवी शनी जैसे ग्रह अष्टम स्थान पर होने से सर्पदंशका भय रहता है ये शास्त्र बहुत गहन है। उसके प्रतियोगमें वृषभ राशी आती है वृषभ राशीमें कृतिका नक्षत्र और अलडेबरान नामका तारा पूंज है पाश्चिमात्य ज्योतिषोने इस विषयों पर बहुत अच्छी प्रगति की है। हमारे जैन ज्योतिष शाखोको इस आधुनिक तंत्र पर विशेष ध्यान देना जरूरी है। शास्त्र एक है। फलित एक है। इस शास्त्रकी गहराईमें जानेसे फलित सच निकलता है। नये ग्रहोंकी खोज ही है। ये ग्रहो की उम्र एक एक राशीमें ७४ सालकी दी है कोई ७ सालका है। हर्षल-नेपच्युन जैसे ग्रह बहुत स्फोटक है। मेदनीय ज्योतिषमें इस ग्रहोंके फलित बहुत प्रभाविक रहते है। ये बहुत मंद गति ग्रह है। चंद्र, सूर्य बुध, शुक्र जैसे तेज गतिके ग्रहोंकी युति जब हर्षल नेपत्युन जैसे मंद गति ग्रहोंसे होती है तो फलित सामनेह दिखाई पड़ता है। मन की पंखड़ियां जब ऐक्यता के सूत्र से पृथक हो जाती है तो प्रत्येक मानव के प्रयत्न सफल नही हो सकते। ३६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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