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________________ GMAAAA000, शुभ-कामनाएँ ODDOOOODOOT (UTTUIAN श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी से वर्तमानयुग तक श्रमण परंपरा का प्राणिमात्र पर अत्यन्त उपकार रहा है। लब्धीधारी गणधरों, आचार्यों एवं महान त्यागी श्रमण भगवंतों ने जन-जन के कल्याण के कार्य भी अपनी साधना के साथ किये। सृष्टि के इस क्रम में अनेक युग बदले, परिस्थितियां और परिवेश भी बदले हैं। परन्त श्रमण भगवंत महावीर की त्याग प्रधान परम्परा धर्म प्रचार में सदा अपमत रही है। आज भी हमारे उपकारीगणवों की धर्मयात्रा अविराम रत्नत्रयी की आराधना करते हए चल रही है। सौधर्म बृहत् तपोगच्छीय श्रमण की परंपरा में अनेक ऊज्जवल नक्षत्र के रुप में अनेक मुनि भगवंत हए है। इसी श्रृंखला में पूज्य मुनिराजश्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी 'शार्दूल', पूज्य मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी 'मार्तण्ड' भी आज समग्र जैन समाज के दैदिप्यमान रत्न है। जिन्होंने मोहने नगर से ही कोंकण धर्म क्षेत्र की यात्रा प्रारंभ की थी। हमारे नगर में समस्त जैन संघ को एकता की शक्ति में बन्द कर २०४१ माघ शुक्ला १२ शुक्रवार 9७ फरवरी ८e को ऐतिहासिक प्रतिष्ठा के कार्यक्रम करवाये। यह प्रतिष्ठा इस क्षेत्र की एक यशस्वी प्रतिष्ठा रही है। प्रातः स्मर्णिय गुरुदेव राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.की गुरु जयन्ती का प्रतिवर्ष मेले के रुप में आपकी ही प्रेरणा और आशिर्वाद से हो रहा है। यह हमारा अहोभाग्य है कि प्रबुन्द नवचेतना के उन्नायक पूज्य मुनिराज श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी म.सा. को "कोंकण केशरी" पद से विभुषित करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। हमारी इस भावना को समस्त कोंकण प्रदेश ने स्वीकार कर महर्ष स्वागत किया। जो समस्त कोंकण प्रदेश के लिए गौरव पूर्ण प्रसंग था। हमारे श्री संघ पर पूज्य प्रवर के अनंत-अनंत उपकार है। उनके उपकार हमारे श्री संघ के लिए चिरकाल तक स्मरणिय रहेंगे। "कोंकण केशरी" पद प्रदान के उपलक्ष्य में प्रकाशित अभिनन्दन ग्रन्थ वास्तव में अभिनंदनीय कदम है। _"कोंकण केशरी" पूज्य प्रवर निरन्तर जिनशासन प्रभावनाएँ, सामाजिक व रचनात्मक कार्य करते रहें। इसी मंगल कामना के साथ। श्री राजस्थान जैन संघ मोहने (कल्याण) महा. पण KAUTTAVAN १८ आशा रुपी बदली जब बिन बसरे ही गुजर जाती है तब मनुष्य की मन रुपी धरती पर इच्छा रुपी फसल नही वरन् Jain Education International निराशा रुपी रेगीस्तान छा जाता है। www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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