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________________ (४) अनुलोम विलोम भस्त्रिका बाएँ नासारन्ध्र से दीर्घ श्वास का पूरक मूलाधार चक्र तक निकाल रेचन दें। इसी प्रकार दक्षिण नासारंध्र से दीर्घश्वास लेकर इन प्राणायामों को करते समय पूरक में मूलाधार चक्र पर कुछ कुम्भक में मणिपूरचक्र नाभिस्थान पर और रेचन में नासाग्र पर करें। फिर दाहिने नासापुट से बाएँ नासारन्ध्र से निकाल दें। सेकंड तक ध्यान स्थिर करें, ध्यान जमाने का प्रयास करें। इन प्राणायाम भस्त्रिका प्राणायाम से मस्तिष्क शूल आदि रोग मिट जाते हैं, फेफड़ों और मस्तिष्क की जकड़न जो श्लेष्म आदि के कारण हो गई हो, वह मिट जाती है, नासिकारंध्र साफ हो जाते हैं, सर्दी का प्रकोप समाप्त हो जाता है और मूलाधार तथा मणिपूरचक्र जागृत होने लगते हैं। - पूरक, रेचक, कुम्भक क्रिया भस्त्रिका प्राणायाम के वर्णन में पूरक, कुम्भक और रेचक इनका अभिप्राय समझना आवश्यक है जरूरी है कि इन तीनों के समय का अनुपात कितना रखना चाहिए। वस्तुस्थिति यह है कि योग और ध्यान पद्धति वैज्ञानिक आधार पर अवस्थित हैं। इनके निश्चित नियम हैं। अनर्गल क्रिया कोई भी नहीं है और अपनी मनमानी भी नहीं चल सकती। यदि कोई साधक योग्य गुरू से निर्देशन लिए बिना मनमानी योग और ध्यान साधना करता है तो उसके अनिष्टकारी परिणाम उसे भोगने पड़ते हैं। इसीलिए कहा गया है - देखा देखी साधे जोग। छीजै काया बाढ़े रोग ॥ - तो अब आप रेचक, पूरक, कुम्भक-इन तीनों का यथार्थ स्वरूप जान लें और साथ ही इनकी विधि और समय का अनुपात भी पूरक का अभिप्राय है-श्वास के द्वारा बाह्य वातावरण में फैली हुई प्राणवायु को नासारन्ध्रों से शरीर के अन्दर ले जाना, कुम्भक इस वायु को शरीर के किसी भी चक्र अथवा स्थान पर रोकना है और रेचक इस वायु को नासारन्धो द्वारा बाहर निकालना है। क्रिया के रूप में यह रेचन, कुम्भन और पूरण कहलाते हैं तथा रेचक, पूरक और कुम्भक इनका संज्ञा रूप मैंने तीन शब्द बताये हैं साथ ही यह जानना भी योग - महर्षियों ने रेचक, कुम्भक और पूरक का अनुपात २:४:१ बताया है, यानी । सेकण्ड में पूरक करें तो ४ सेकण्ड तक कुम्भक और २ सेकण्ड में रेचन कर दें। यदि आप 'अहं' मंत्र को लें तो 'अ' अक्षर के पूरक में ४ सेकण्ड का समय लगायें 'ह' अक्षर के साथ १६ सेकंड का कुम्भक और 'म्' अक्षर का मानसिक उच्चारण करते हुए ८ सेकण्ड में इसका रेचन कर दें। Jain Education International कुछ योग शिक्षक अंकगणित के अंक ४:१६:८ के साथ पूरक, कुम्भक, रेचक करने की शिक्षा देते हैं पर मैं आपको 'अर्हम्' मंत्र के मानसिक उच्चारण के साथ पूरक, कुम्भक, रेचक क्रिया करने की प्रेरणा देना चाहता हूँ इसका कारण यह है कि यह मंत्र अर्हन्त परमेष्ठी का वाचक है। इसके द्वारा मन-मस्तिष्क भी शुद्ध होता है, हृदय में श्रद्धा भक्ति की भावना का संचार होता है। ध्यान करते समय आँखों के सामने या नासाग्र पर 'अर्हन्त' परमात्मा का रूप देंखे । इससे अपार आत्मिक प्रसन्नता प्राप्त होती है। तो अब आप 'अर्हम्' मंत्र के मानसिक उच्चारण के साथ पूरक, कुम्भक और रेचक प्राणायाम सच्ची शांति केवल बाहर के साधन-संपति या पद- सत्ता में नहीं है। सची शांति का निवासालय तो मन ही हैं। For Private & Personal Use Only ३३३ www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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