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________________ पी. का टिकिट पार्टियां देती है। इस प्रकार राजनीति में निर्वाचन में हम धर्म और जाति को खुद ही दाखिल कर देते है। धर्म और जाति के नाम में हम एक दूसरे के गलेको काटते है, मकान-दुकान जलाते है क्या यह मनुष्य के लिए शोभनीय है? हिन्दू-मुस्लिम दंगे अंग्रेजों के जाने के बाद स्वतन्त्र भारत में आज तक जारी है, उन्हें हम बन्द नहीं करा सके। हजारों साल पहले महावीर ने मनुष्य की समानता का एक आदर्श प्रस्तुत किया था। उन्होने कहा था मनुष्य जन्म से नहीं, कर्म से महान होता है। उन्होने स्वयं हरिकेश चाण्डाल को गले से लगाया, उसे मुनि बनाया और कहा मुनष्य को मुनष्य से घृणा नहीं करनी चाहीए। हर व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है। सब भगवान् बन सकते है। जैनदर्शन यह नहीं मानता कि ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुआ ब्राह्मण कहलाता है या ब्राह्मणकुल मे पैदा होने पर व्यक्ति ब्राह्मण होता है। यहाँ जाति को जन्मना नहीं, कर्मणा मना गया है कम्मुणा बम्मणो होइ, कम्मुणा होइ खत्तिओ। वइस्सो कम्मुणा होइ, सुद्दो हवइ कम्मुणा ||३० अर्थात मुनष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय, कर्म से वैश्य और कर्म से शूद्र होता है। ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म का आचरण करे,३१ जो सत्यवादी हो, अहिंसक हो, अकिंचन हो,३२ और जिसमें रागद्वेष न हो, भय न हो।३३ हमारा समाज जाति-प्रथा में, राग-द्वेष में, सम्प्रदाय में फंसा है। साम्प्रदायिक उन्माद ने धर्म-ज्योति को मलिन कर दिया है। समतावादी समाज की रचना के लिए साम्प्रदायिकता, जातिवाद, संकीर्णता और दुर्भावना को त्यागना होगा। जैनदर्शन इस युग में हमें नयी समाज-संरचना का व्यावहारिक रुप प्रदान करता है। सम्प्रदाय की प्रतिबद्धता की केंचुली को उतारना होगा। साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण हम दूसरे सम्प्रदाय की निन्दा करते है, दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की जरुरत नहीं समझते, क्योंकि एकान्तिक आग्रह से ग्रस्त होते है। धर्म-दृष्टि को व्यापक, उदार बनाने पर, धर्म-सहिष्णु होने पर, आत्मोपम्य दृष्टि विकसित करने पर अवश्य समतावादी समाज की संरचना की जा सकती है। ३०. उत्तराध्ययन २५/३१ ३१. उत्तराध्ययन २५/३० ३२. उत्तराध्ययन २५/२१ ३३. उत्तराध्ययन २५/२२-२३ संसार के छोटे-बडे प्रत्येक व्यकि आशा और कल्पना के जाल में फंस कर मंत्र भ्रमण करते रहते है। २११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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