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________________ ልልልልልስ AAAAAA POTATN गया। त्रिस्तुतिक समाज किसी भी मुनि को प्रान्तीय स्तर पर इतना भव्य आयोजन कर ६१ श्री संघो के द्वारा सामुहिक रुप से पदवी प्रदान करना भी प्रथम ऐतिहासीक ___घटना है। यह भी एक उल्लेखनीय प्रसंग है कि कोंकण क्षेत्र के इतिहास में भी प्रथम बार किसी मुनि द्वारा श्रृंखलाबद्ध आयोजन हुए है। यह अभिनन्दन वान्थ युगों युगों तक आपके व्यक्तित्व कर्तृत्व एवं बहुमुखी विलक्षण प्रतिमा का अभिनन्दन करता रहेगा। अभिनन्दन वान्थ तीन खण्ड़ों में विभक्त है। प्रथम खण्ड़ आशिर्वचन-वंदना एवं शुभ कामनाओं का है। द्वितीय खण्ड में कोंकण प्रदेश का सचित्र धर्म यात्रा वृत्तांत है और तृतीय खण्ड में जैन दर्शन एवं साहित्य से सम्बन्धित विद्वानों की रचनाएँ है। जैन दर्शन के विभिन्न पहलुओं पर आधुनिक संदर्भ में महत्व पूर्ण रचनाओं का समावेश है जो अभिनन्दन वान्थ की गरिमा को स्थायी रुप प्रदान करता है। अभिनन्दन वान्थ के संपादन कार्य की महत्तर जवाबदारी मुझे दी गयी है। परन्तु यह कार्य मेरी सामर्थ्य से बाहर था। किन्तु पूज्य मुनिश्री लोकेन्द्रविजयजी म. की सम्प्रेरणा, मार्गदर्शन पथ प्रदर्शित करती रही। मेरी अन्तेवासिनी शिष्या साध्वी श्री तरुणप्रभा श्रीजी इस ग्रन्थ के लिए अथक प्रयत्नशील रही है। कवि-लेखक-सम्पादक भाई श्री चन्दनमल चाँद ने विद्वानो से रचनाएं मंगाने से लेकर संपादन तक में सहयोग प्रदान किया। धर्मयात्रा वृत्तांत में श्री पुखराजजी एस: जैन कल्याण, रमेश निर्मल, स्वबचन्द मालवी ने भी सहयोग दिया है। सब से अधिक सहयोग श्री चन्दनमलजी बी. मुथा मोहने (कल्याण) वालों का भी रहा जिन्होंने इस वान्थ में संयोजक के रुप में कार्य किया है जो स्मरणिय रहेगा। मैं उन सभी दान दाताओं को भी धन्यवाद दूंगी जिन्होंने वन्दना के रुप में श्रब्दा सुमन अर्पित किये हैं। अंत में उन पूज्य आचार्यो, संतों, विद्वानों, लेखकों और कविओं की आभारी हूँ जिनकी रचनाओं का इस वान्थ में समावेश हुआ है। यह भगिरथ कार्य गुरु कृपा, विद्वानों के सहयोग और अन्तर प्रेरणा से अभिनन्दन वान्थ का संपादन कर पायी हैं। यह अभिनन्दन आप तक पहुँचाते आत्मीय प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ। साध्वी पुष्पा श्री UVA चारित्र ८ व्यक्ति जब कल्पना और आशा का गुलाम बनता है तब अपने आसपास का, समाज और परिवार का भी विचार नही करता, उसे तो अपने आप के हिताहित व कल्याण का भी ख्याल नही करता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.olo
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
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