SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युक्त एकावतारी श्री पद्ममावती देवी के दर्शन हुए। पूज्य श्री ने अपने प्रिय शिष्य मुनि श्री लेखेन्द्रशेखरविजयजी को भी साधना की दृष्टि से .सं २०४० में पालीताणा चातुर्मास के दौरान एक साधना निष्ठ साधक बनाया। पूज्य श्री 'शीतल' के महाप्रयाण के पश्चात साधना से साध्य तक पहुँचने के लिए गतिमान रहे है। आज उनकी ही साधना का प्रतिफल है कि उनके द्वारा लिया गया १०८ महापूजनों का संकल्प पूर्णता की ओर बढ़ रहा है। अतिनिकट समय में ही श्री पार्श्वनाथ प्रभु युक्त २४ भुजाओं से सुशोभित मां भगवाती पद्मावती देवी का नयनाभिराम मंदिर का निर्माण होगा। भोजनशाला, ध्यानकक्ष और मंदिर के भूमि पूजन भी हो चुके है। इतने कम समय में इस संस्था का इतना विराट रुप में विकास होना भी श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की कृपा का फल है। श्री पार्श्वपद्मावती शक्ति पीठ के नाम से इसका रजिस्ट्रेशन भी हो गया है। और आज विकास के पथ पर प्रगतिशील है। इसके कर्मठ कार्यकर्ता है श्री राजेश सी. जैन, चन्दनमल बी. मुथा, रमेश एस. जैन, डूंगरमलजी दोषी, ओटरमलजी जैन, वीरचन्दभाई के सतत प्रयत्नों से यह शक्ति पीठ एक जैन समाज का एक अनोखा धाम होगा। • जिस जीव की धर्म के प्रति सची भावना हैं उसे धर्म-चर्चा में आनंद ही आनंद दिखाई देता है। जहाँ धर्म चर्चा होती वहाँ मेरे-तेरे का वितण्डवाद नही होता। क्योंकि धर्म एक व्यापक तत्व द्वारा ही अपूर्व ज्ञान प्राप्त कर मुक्ति पथ प्रशस्त होता पर-कल्याण को दृष्टि-ध्यान में रखकर कार्य करने वाले कभी भी पराजय को उपलब्ध नहीं होते। १२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012037
Book TitleLekhendrashekharvijayji Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpashreeji, Tarunprabhashree
PublisherYatindrasuri Sahitya Prakashan Mandir Aalirajpur
Publication Year
Total Pages320
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy