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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ - आधुनिक गन्दर्भ में जैनधर्म - जीवन से सम्बन्धित सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक पक्षों की सैद्धान्तिक रूप से ऐसी समाज वादी व्यवस्था में एक ओर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। अतः इस संबंध में यहाँ समाज के मेहनतकश व्यक्ति तन-मन से अपने उत्पादन का आधुनिक युग में व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से तथा कार्य सम्पन्न करते देखे जाते हैं तथा इस प्रक्रम में उनमें सैद्धान्तिक रूप से समाजवादी व आत्म-निर्भरता पर आधारित स्वाभाविकतः धीरे-धीरे पर्याप्त सामाजिक चेतना व अपने समाजवादी दृष्टिकोणों का कुछ संक्षिप्त उल्लेख भी अति तर्क सम्बन्धित उत्तरदायित्व की भावना भी विकसित होते देखी जाती संगत तथा न्यायसंगत जान पड़ता है। है, और इससे आगे चलकर, सम्बन्धित समाज में एक ऐसी समाजवादी उपागम (Socialistic Approach) - स्थिति आ जाती है, जिसमें लगभग समस्त सदस्य अपने दायित्व समाजवादी उपागम, समाज के स्तर पर व्यक्ति के कल्याण .. के भाव को पूर्णरूप से समझने लगते हैं। के मार्ग की खोज करता है। समाजवादी दार्शिनिक दृष्टिकोण मूलरूप से, इस दृष्टिकोण के संस्थापक कार्ल मार्क्स हैं वस्तुत: ऐसी सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक व्यवस्था पर तथा इसके मुख्य पोषक लेनिन रहे हैं। स्पष्टतः इस उपागम के बल देता है, जिसमें आर्थिक व राजनैतिक सत्ता खेतिहर व कारण विश्व के समाजवादी देशों में पिछले छः या सात दशकों में औद्योगिक मजदूरों, कुशल कर्मचारियों व प्रौद्योगिक विदों (Tech- अपार आर्थिक व सामाजिक प्रगति देखने में आयी है भले ही, nologists) के हाथों में संचित व केन्द्रित होता है, क्योंकि वे ही इस उपागम को कार्यरूप देने में प्रारम्भ में कुछ कठिनाइयाँ रही समाज में उत्पादन के वास्तविक स्त्रोत व साधन है तथा उनके हों. परन्त इस समय इसके कुछ चमत्कारी परिणाम समाजवादी ही माध्यम से एक समाज व राष्ट्र की इष्टतम आर्थिक प्रगति देशों की अपार आर्थिक व सामाजिक प्रगति में अवश्य देखने सम्भव है और राजनैतिक सत्ता के भी उनके हाथों में होने से, को मिल रहे हैं, जिनमें कम से कम, व्यापक स्तर पर, जन उत्पादन के मार्ग में न किसी शोषण का भाव ही श्रमिकों के मन मन साधारण बेकारी, भुखमरी, बीमारी, सामाजिक अत्याचार व में रहता है और न उनको पूँजीवादी-व्यवस्था में व्याप्त औद्योगिक राजनैतिक भ्रष्टाचार से अवश्य मुक्त रहते देखने में आ रहे हैं। तालाबंदी व किसी अन्य विघ्न काही भय छाया रहता है। Dedubordibordwordswordibriubrobratb-sub-abrdsbudirdito-di-३४dutodndirbudiraroraordibedioodiridwarbedibibriudwidwar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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