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________________ यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - आधुनिक सन्दर्भ में जैनधर्महो उठता है और उसके लिए वह अंगूरों के गुच्छों को ऊपर की ही मिल पाता है और व्यक्ति का दृष्टिकोण अवास्तविक हो ओर कद-कदकर पकड़ने का प्रयास करने लगती है. परंत जाता है। अत: व्यक्ति को चाहिए कि वह सदैव वास्तविकता को बार-बार प्रयास करने पर भी जब वह अंगूर के गुच्छे तक नहीं महत्त्व दे और आवश्यकतानुसार अपने व्यवहार में सुधार करे। पहुँच पाती. तब वह अति निराश होकर वहाँ से चल देती है। ह.बौद्धिककरण(Intellectualization)-मानसिक विरचना इसी बीच जब वहाँ पेड़ पर बैठा कौआ, लोमड़ी से पूछता है कि का यह वह प्रक्रम है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति दुःखद, उसने अंगूरों को क्यों छोड़ दिया तब लोमड़ी का यह कहना है भयपूर्ण या कष्टकर परिस्थितियों के प्रति विमुखता या तटस्थता कि अंगूर खट्टे थे, इस लिए उनका पाना तथा खाना पसंद नहीं । की भावना विकसित करता है, ताकि उसका व्यवहार या कार्य किया। यहाँ लोमड़ी द्वारा प्रस्तुत यह तर्क स्पष्टतः कितना ऊपरी संबंधित संवेगात्मक दशाओं से प्रभावित न हो सके। डाक्टरों में तथा छिछला है, इसको सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। इसी इस विरचना को देखा जा सकता है। वे चीडफाड करते समय कहानी के संदर्भ में जब व्यक्ति अपने मन-पसंद लक्ष्य के रोगियों को कष्ट में देखकर भी कष्ट का चेतन अनुभव नहीं करते गाने प्राप्त न होने पर अपने अनेक तर्क प्रस्तुत करते देखा जा सकता सकता हैं उनके लिए ऐसा करना भी आवश्यक है, क्योंकि यदि वे भी सोनिया है, तब ऐसे युक्तीकरण को अंगूर खट्टे हैं, की संज्ञा दी जाती है। भावक हो जाएँ तो शल्यक्रिया में बाधा पड़ सकती है (Mahi (ii) नीबू मीठा होता है-वास्तव में, नीबू खट्टा होता है, परंतु 1971, Coleman 1975)। व्यक्ति के पास इसके अतिरिक्त जब कोई अन्य विकल्प नहीं बौद्धिककरण की रक्षायक्ति का एक दसरा रूप उस स्थिति होता, तब वह विवश होकर खट्टे नीबू को ही मीठा कहने लगता में भी देखने में आता है जब व्यक्ति दो विरोधी तथा असंगत है। ऐसे ही जब निर्धन व्यक्ति अपनी सूखी रोटी में ही असली मल्यों का बौद्धिक स्तर पर यक्तीकरण प्रस्तत करते देखा जाता स्वाद की बातें करता है, और अपनी झोंपड़ी में सुख और शांति _है। ऐसी रक्षायुक्ति प्राय: उस स्थिति में भी देखने में आती है, के का अधिक गुण गान करते देखा जाता है, तथा सारे जीवन को जबकि एक व्यापारी भ्रष्ट ढंग से धन कमाकर उसमें से कछ ही उच्च श्रेणी का सिद्ध करते देखा जाता है, तब उसके ऐसे अंश मंदिर के निर्माण के लिए दान कर देता है। ऐसी रक्षायुक्ति यक्तीकरण का स्वरूप नीबू मीठा होता है, के युक्तीकरण के से व्यक्ति भ्रष्ट ढंग से धन कमाने के लिए अपनी अंतरात्मा की समरूप ही होता है। धिक्कार से बचने का कुशल प्रयास करते देखा जाता है, तथा इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि युक्तीकरण की रक्षायुक्ति . इससे अपने अहम् की सुरक्षा करते देखा जाता है। का व्यक्ति के जीवन में समायोजन के प्रक्रम में महत्त्वपूर्ण ७. अतिपति- यदि कोई व्यक्ति किसी लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान रहता है। इससे व्यक्ति जीवन की अनेक कठोरताओं असफल हो जाता है तो उसमें हीन भावना विकसित हो जाती है व कटुताओं को सहनशील बना लेता है व व्यर्थ की अन्तर्द्वन्द्व से और उसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए किसी अन्य लक्ष्य को प्राप्त मक्त होने का प्रयास करता है और अन्ततोगत्वा अपने अहम् व करके संतष्टि चाहता है। रच. १९६९ के मतानसार, क्षतिपर्ति एक सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखने में सफल रहता है। ऐसा प्रयास है, जिसमें किसी कमी या अवांछित विशेषता को ५. विस्थापन( Displacement) - विस्थापन वह मानसिक छिपाकर वांछित गुणों के विकास पर बल दिया जाता है। विरचना है जिसके द्वारा व्यक्ति को द्वन्द्व को नियंत्रित या कम उदाहरणार्थ, शारीरिक सौंदर्य में कमी होने पर व्यक्ति एक अच्छा करने में सहायता मिलती है तथा इसके साथ-साथ प्रेरक या वार्ताकार बनकर सामाजिक प्रशंसा अर्जित कर सकता है परंतु इच्छा की किसी न किसी रूप में पूर्ति भी होती है। हिलगार्ड असुरक्षा एवं हीनता की भावना अत्यधिक हो जाने पर व्यक्ति (१९७५) के कहने के अनुसार विस्थापन की दशा में चिंता, क्षतिपूर्ति में असफल हो जाता है। द्वन्द्व तथा अन्य तनावपरक दशाओं में संतुलन स्थापित करने में ८. तदात्मीकरण (Identification) - फ्रायड, १९४४ ने सहायता मिलती है। इस प्रसंग में यह भी ध्यान देने की बात है समायोजन स्थापित करने में तदात्मीकरण का विशेष महत्त्व पितो नटातील कि मानसिक विरचनाओं से समस्याओं का अस्थाई समाधान बतलाया है। इस मानसिक विरचना के आधार पर व्यक्ति किसी boorboorboorboorborionidrowonawaniroinod- २६ admiriwaririwordboardroidward-id-d-d-dowdede Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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