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________________ १५' २" १६' २" ०. - चीन्द्रमूरिमारक इतिहासविद्वानों में मतैक्य नहीं है। पर १९८० में भारतीय कला इतिहास गोमटेश की मूर्ति के वल्मीक पर विशाल चरणों के चारों संस्थान, कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ ने थियोडलैट उपकरण ओर कन्नड़, तमिल और मराठी में शिलालेख उत्कीर्ण हैं, जो यह के माध्यम से जो माप प्रस्तुत की है, वह अधिक विश्वसनीय घोषित करते हैं कि इस मूर्ति का प्रतिष्ठापक चामुण्डराय है। इसी है। तदनुसार उसका कुल माप ५८' ८" आता है, जो इस मूर्ति के बायें चरण के पास एक गोल पत्थर का कुंण्ड है, जो प्रकार है-- कदाचित् गन्धोदक को इकट्ठा करने के निमित्त बनाया गया है। पाँव की ऊँचाई २८" यहीं १२वीं सदी में दो द्वारपालों की मूर्तियाँ गंगराज ने बनवाई साथ ही परकोटे की दीवार और जालान्ध्र का निर्माण कराया। पाँव के आदि से घुटने तक दूसरे द्वारमण्डप में यक्ष मूर्ति और मानस्तम्भ को बलदेव ने पाँव के आदि से कमर रेखा तक ३१' ४' बनवाया। लगभग ५०० वर्षों के बाद स्तम्भों को अलंकृत . पाँव के आदि से नाभि तक ३५' १" किया गया ओर फर्श बनाया गया। सुत्तालय में गोमटेश मूर्ति के पाँव के आदि से गर्दन रेखा तक ५७'८" तीनों और चौबीसी मूर्तियाँ तथा अंबिका की मूर्ति है, जिन्हें घुटने से कमर रेखा तक समय-समय पर अनेक श्रेष्ठियों ने प्रतिष्ठापित कराया था। कमर रेखा से नाभि तक २'९" (३) श्रवणबेलगोल नगर नाभि से गर्दन रेखा तक २०' ११” गर्दन रेखा से गर्दन तक गोमटेश मूर्ति की स्थापना के बाद इस नगर को गोम्मटपुर कहा जाने लगा लगभग १२वीं सदी में। इसके पूर्व वह 'बेल्गोल' गर्दन से सिर की चोटी तक के नाम से जाना जाता था, क्योंकि यहां धवल सरस् या तालाब बाहुओ की लम्बाई था। धीरे-धीरे श्रद्धालु भक्तों और यात्रियों में वृद्धि होने लगी। शिश्न की लम्बाई ४'." फलतः पानी की कमी को दूर करने के लिए तालाब खोदे गए। कानों से की लम्बाई ११२० और ११५९ ई. के बीच भंडार वसदि बनाई गई। समीप नाक की लम्बाई ही आवास स्थल बनवाए गए और छोटे पहाड़ के अधोभाग से हाथ की लम्बाई अक्कन वसदि तक नगर फैल गया १२वीं सदी में। यहीं उत्तर (क) कलाई से बीच की अंगुली लम्बाई ८' ०" की ओर १११७ ई. में गंगराज के भतीजे हिरिएचिमप्प ने जिननाथपुर की स्थापना की और अरेगल वसदि की स्थापना की। पश्चिम (ख) कलाई से तर्जनी तक लम्बाई की ओर १२०० ई. में रेचण्ण दण्डनायक ने शान्तीश्वर वसदि (ग) कलाई अंगूठा तक ५'०" बनाई। बाद में सिद्धांत वसदि और मांगायि वसदि जैसी अन्य कुल ऊँचाई ५८'८" वसदियाँ भी जुड़ती गईं और श्रवणबेलगोला नगर की सुंदरता बढ़ती चली गई। एक ही पत्थर से बनी निराधार खड़ी इतनी विशाल मूर्ति निश्चित ही दुनिया में अद्वितीय कही जासकती है। बामियान भण्डार वसदि-- श्रवणबेलगोला का यह सबसे बड़ा (अफगानिस्तान) की बुद्ध मूर्तियां १२०, और १७५' अवश्य है, जिनालय है। इसे होयसल राजा नरसिंह के भंडारी हुल्लमप्प ने पर वे एक शिलाखण्ड से निर्मित नहीं है। रयाम्सीज २ की मूर्ति ११५९ ई. में बनवाया था। इसके गर्भगृह में एक ही पंक्ति में (ईजिप्ट) लगभग गोमटेश की ऊँचाई के बराबर है, पर वह मूर्ति चौबीस तीर्थंकरों की मनोज्ञ मूर्तियाँ विराजमान है। प्रवेशद्वार पर न देवता की है और न ही निराधार खडी है। मेम्नान की मूर्ति इन्द्र नृत्य की कलात्मक मूर्तियाँ है। नवरंग आकर्षक है और तीस और चाप्रोन का स्फिंक्स भी भले ही लगभग दस फीट बडे हों फीट ऊँचे परकोटे में भी सुंदर आकृतियां उकेरी गई हैं। मंदिर के पर वे एक ही पाषाण खण्ड से बनी कलाकृति नहीं हैं। सामने भव्य मानस्तम्भ है जो उत्तरकाल में बनाया गया है। ° ५' १०" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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