SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 917
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहासने गुरु महाराज से प्रतिबोध पाकर सम्यक्त्वसहित बारह व्रत पाटण पीरात मांझिसो तो सारोजगजाने कोलै पल्लीवाल सो तो पाइली मुझारजू।। स्वीकार किए। गुरु महाराज ने स्वर्णमय छाजों के प्रादुर्भाव से ताके पीछे खेड़वीचि वेगड़ विरुद धर्यो सर्यो मकसूद खरतरे सिरदारजू। छाजहड़ गोत्र की स्थापना की। कलश दंडचढ़ाया वेगड़ विरुद पाया धराया तातेगच्छ चौरासीवे वेगडसिंगार जू।।४।। पहिला छाजड़ कोला वरडीया पल्लीवालउवा का गुरु पल्लीवाल पल्ली शुभ थान जू। उद्धरण छाजहड़ बीजा वेगड़ प्रसिद्ध खेड़ में हुआ समृद्ध सातवीस देहरा कराया सुप्रधान जू। एक बार श्री जिनपतिसूरिजी ने अजमेर-चातुर्मास में रामदेव सोवन कलशदंड मंडपमंड अखंड पातसाहीसनाथ मेदनीमंडानजू खेड पल्ली सोनगिरि गूजर जंगलधर गौरी गृह एने थानवेगड़े दीवान जू।।४।। आदि के समक्ष प्रसंगवश खेड़निवासी उद्धरण शाह मंत्री की प्रशंसा की। रामदेव उद्धरण से आकर मिला। उसने सेठ रामदेव को बहुत श्री जिनेश्वरसूरि-गीत में ही सम्मानित किया। उसने मंत्री की पत्नी को जिनालय जाते समय तंवेगड विरुदेवडो.छाजहडाकल छात्र हो. छाबभर के साड़ियां आदि ले जाते देखा तो आश्चर्यपूर्वक नौकर से गच्छ खरतर नो राजियो, तूसींगड़ वड गात्र हो...३ इसका कारण ज्ञात किया कि स्वधर्मी बहिनों को भेंट करने के लिए परतो पूर्योखान नोअणहिल वाडइ मांहि हो ये प्रतिदिन ले जाती हैं। राम देव उद्धरण के घर का आचार देखकर महाजन बंद मूकावियो, मेल्यो संघ उच्छाहि हो...६ प्रसन्न हुआ। एक बार उद्धरण ने नागपुर में मंदिर-निर्माण कराया आराधी आणंदसूवाराही विपुराय हो था। प्रतिष्ठा के लिए बुलाए आचार्य के न पहँचने पर मंत्री पत्नी जो धरणेंद्र पिण परगट कियो, प्रगटीअति महिमाय हो....५ खरतरों की पुत्री थी, के कथन से चैत्यवालिया के पास प्रतिष्ठान राजनगरनइ पागुरया, प्रतिबोध्या महमद हो। कराके सकुटुम्ब मंत्री खरतरगच्छीय श्रावक हो गया। पदढवणो परगट कियो, दुःख दुरजन गया रद हो...७ सी गडसींग वधारिया, अति ऊंचा असमान हो ऊपर सं.१२१५ में मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी से छाजहड़ धीगड भाई पांचसई,घोड़ादीधा दान हो...८ गोत्र उत्पन्न हुआ. लिखा है जब कि यहाँ उद्धरण छाजहड़ के द्वारा सवा कोटि धन खरचीयो. हरख्यो महमद साह हो खरतरगच्छीय होने का उल्लेख है। इस विषय की एक प्रसिद्ध विरुद दियो वेगड तणो, परगट थयो जग माह हो ९ (हे.पै.का.से.पृ. ३१४) गाथा उद्धृत की जाती है-- 'बारह सौ पणयाले विक्कमे वच्छरे वइक्कंते श्री क्षेमराज उपाध्याय गीतसार उद्धरण केड पमुहा छाजहडा खरतरा जाया।' छाजहड़गोत्रीय लीलासाह की पत्नी लीलादेवी के पुत्र थे १५१६ में उद्धरण ने खेड़ नगर में जिनपति सूरि से प्रतिष्ठा कराई। गच्छ नायक के श्री जिनचंद्रसूरि जी से दीक्षा ली। वा. सोमध्वज के जिसका ऊपर कल्पसूत्रप्रशस्ति में वर्णन है। शिष्य हुए। गुरुपरंपरा :-जिन कुशल-विनयप्रभ- विजयतिलक-क्षेमकीर्ति क्षेमहंस-सोमध्वजशि. आपके तीन शिष्य थे, जिनमें प्रमोदमाणिक्य शि. वेगड़ शाखा के जिनसमुद्रसूरि-रचित महाराजा अनूपसिंह जयशोम के शि. गुणविनय हुए। क्षेमराज की कृतियाँ-- जौर राठौड़ वंशावली संबंधी काव्य में छाजहड़-गोत्र संबंधी प्राप्त पद्य-- १ उपदेशसप्ततिका (सं. १५४७ हिसार, श्रीमाल पपर वोदा आदि) .. कुमर स्वरूप देखी काजलज्यों नेत्र रेखी छाजड़े में सुविशेषी काजल देनाम जू। २. इक्षुकार चौपई गा. ५० आणि के सेठ को दीनो, लहिणो सोदूर कीन्हों, दोहू को रह्यो अक्रीनोआवेनिज धाम जू।।। ३. श्रावक विधि चौपई गा ७०, सं. १५४६ बरहड़ीयां का गोत छाजड़े ते छाजड़ोत ऐसे गोत छाजड़ को भयो तिण ठाम जू। ४. पार्श्वनाथ रास ना. २५ वदत समुंद महाराजश्री अनूपसिंह जी कोकाको करें काम वाको सरें कामज॥३८ ५. सीमंधरस्तवन ६. पार्श्वनाथ १०८ नाम काजल के वेर उद्धरण जूकिए उद्धार सातवीस चैत्य खेड़ वीचि गुरु वेण जू। ७. वरकाणा स्त. एवं स्तवन सज्झादि उपलब्ध हैं। श्रीजिनपति सूरि प्रतिष्ठा करी पडूर मांड्यो विषवाद भूर वरडीये तेण जू।। श्री जिनलाभ सूरिजी महाराज की पदस्थापना कच्छ के मांडवी बंदर जीत्योखरतरे सूर वेगड़ पडूर हारयो गुरु वरडीये कोले भये मैणजू। में छाजहड़गोत्रीय शाह भोजराज कारित नंदी महोत्सवपूर्वक हुई थी। वेगड़ कोले भाई छाजड़ दोनूं कहाई वृद्ध वंत हो सहाई जोलूंजिन जैन जू।।३९।। छाजड़ में घालि दीनौ ताहूँ पै छाजड़ भये असल वरडीया तें छाजड़ कुमार जू। आचार्य शाखा के (६५) जिनचंद्रसूरि का सं.११७४६ मार्गशीर्ष सुदि १२ को लूण करणसर में छाजहड़ रतनसी जोधाणी ने पदोत्सव किया था। andidabrandardwondondoniyorderGovindvdroidnidi१११Hidndroidndirdabrdwordwondiwondiniromidroombinirdabudanda Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy