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________________ • यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ - इतिहास. श्री जिनचन्द्रसूरि श्री जिनलब्धिसूरि के पट्टधर श्री जिनचंद्रसूरि सं. १४०६ माघ सुदि १० को बैठे। मारवाड़ के कुसुमाण (कोसवाणा ) गाँव के मंत्री केल्हा छाजहड़ की पत्नी सरस्वती के पुत्र थे। आपका नाम पातालकुमार तथा दीक्षा नाम यशोभद्र हुआ। सं. १३८१ वै.ब. ६ को पाटण में प्रतिष्ठा के समय बड़ी दीक्षा हुई। सं. १४१४ मिती आषाढ़ बदि १३ को स्तम्भतीर्थ में स्वर्गवासी हुए । श्री जिनभद्रसूरि ये उलपुर मेवाड़ के छाजहड़ धीणिग की पत्नी खेतल देवी के सुपुत्र थे । इनका जन्म नाम रामणकुमार था। ये बड़े विद्वान और प्रभावक आचार्य थे। सं. १४७५ मिती माघ सुदि १५ को श्री जिनराजसूरि जी के पाट पर विराजे । इन्होंने ७ स्थानों में ज्ञानभंडार स्थापित किए व अनेक जिनालयों, प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा की। जैसलमेरनरेश वैरिसिंह और त्र्यंबकदास आदि जगण आपके भक्त थे। श्री भावप्रभाचार्य और श्री कीर्तिरत्नसूरि को आपने आचार्यपद दिया । चालीस वर्ष के आचार्य काल में आपने बड़ी शासन सेवा की। सं. १५१४ मार्गशीर्ष बदि ९ में कुंभलमेर में आपका स्वर्गवास हुआ। श्रीजिनेश्वरसूरि आप खरतर गच्छ की वेगड़ शाखा के प्रथम आचार्य थे। शाखा में भट्टारक पद छाजहड़गोत्रीय को ही दिया जाता था, ये छाजहड़ झांझण की धर्मपत्नी झबकू देवी के पुत्र थे । आपने छह मास पर्यंत बाकुला और एक लोटा जल की तपश्चर्या द्वारा कराही देवी को प्रसन्न किया था । सं. १४०९ में स्वर्णगिरि पर महावीर जिनालय और सं. १४११ में श्रीमाल नगर में प्रतिष्ठा कराई। सं. १४१४ में आचार्य पद प्राप्त किया। पाटण में खान का मनोरथ पूर्ण किया। राजनगर के बादशाह महमूद वेगड़ा को बोध दिया। बादशाह ने समारोहपूर्वक पदोत्सव किया। आपके भ्राता ने ५०० घोड़ों का दान दिया और एक करोड़ द्रव्य व्यय किया। बादशाह ने 'वेगड़' विरुद् दिया तब से छाजहड़ वेगाड़ा भी कहलाए। बादशाह ने कहा - " मैं भी बेगड़ तुम भी बेगड़, गड़ गुरु गच्छ नाम। सेवक गच्छ नायक सही बेगड़, अविचल पामो ठाम " ॥ Jain Education International ये शक्तिपुर (जोधपुर) में सं. १४३० में अनशनपूर्वक स्वर्ग पधारे। वहाँ स्तूप बनवाया जो बड़ा चमत्कारी है। सं. १४२५ और १४२७ में प्रतिष्ठाएँ कराई थीं। जिनशेखरसूरि सं. १४५० में आचार्यपद प्राप्त कर प्रभावक और प्रतापी बने। महेवा के राठौड़ जगमाल पर गुजरात के बादशाह की फौज आने पर अभिमंत्रित सरसों और चावल द्वारा घोड़े और सवार पैदा कर युद्ध में विजयी बनाया। बीबी ने कहा - पग पग नेता पाड़िया, पग पग पाड़ी ढाल । बीबी पूछे खान ने जग केता जगमाल ।। बादशाह को गुरु के पास लाने पर आन मना के छोड़ दिया। सं. १४८० में महेवा में स्वर्गवासी हुए । श्रीजिनधर्मसूरि आप सं. १४८० मिती ज्येष्ठ सुदि १०, गुरुवार को श्री जिनेश्वरसूरि के पाट पर बैठे। आपने अनेक जगह प्रतिष्ठाएँ कराईं, ग्रामानुग्राम विचरे, तीर्थयात्राएँ कीं । जयानंदसूरिजी को आचार्य पद दिया। सूराचंद के निकट रायपुर में महावीर जिनालय की सं. १५०९ में प्रतिष्ठा की। राणा घड़सी को प्रतिबोध देकर श्रावक बनाया। राणा ने घड़सीसर व कालूमुहता ने कालूसर कराया। महेवा में भी वणवीर ऊदा ने महोत्सव किया। रावलजी वंदनार्थ आए । पट्टावली में बिहार का विस्तृत वर्णन है। सं. १५१२ में मंत्री समर सरदार ने प्रतिष्ठा करवाई। मंत्री जेसंघ और उसकी भार्या जमना देने अपने पुत्र देदा को समर्पित किया । सं. १५१३ में जेसलमेर पधारे, रावल देवकरण सन्मुख आए । मंत्री गुणदत्त ने बिम्ब प्रतिष्ठा कराई। रावलजी ने नया उपाश्रय बनवाया। देदा को दीक्षा दी, दयाधर्म नाम प्रसिद्ध किया । जेसलमेर में पानी बरसाकर अकाल मिटाया। १५२३ में मंत्री गुणदत्त मं. राजसिंह ने आषाढ़ में नंदि महोत्सव पूर्वक जयानंदसूरि से आचार्य पद दिलाकर जिनचंद्रसूरि को पट्टधर किया । श्रावण में जिनशेखर सूरि स्वर्गवासी हुए। सं. १५२५ में आषाढ़ सुदि १० को स्तूप - प्रतिष्ठा हुई। mérômean? 06 p For Private Personal Use Only म www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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