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________________ यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन कोटि कोटि वन्दना रे......popsiकांकि को वे इतिहास प्रेमी थे विश जैन मुनियों जैनाचार्यों का मुख्य उद्देश्य अपनी साधना द्वारा आत्म कल्याण करना होता है। साथ ही वे धर्माराधना के लिए सामान्य जनता को भी अपने प्रवचन के माध्यम से प्रेरणा प्रदान करते रहते हैं। वे बालकों में सुसंस्कारों का वमन भी करते हैं। इस प्रकार उनका प्रमुख कार्य क्षेत्र ही रहता है। इसके अन्तर्गत समाज सुधार भी आ जाता है। इतना होते हुए भी यदि कोई जैनाचार्य जैन मुनि धार्मिक विषयों से हटकर इतिहास जैसे विषयों पर अपनी कलम चलाता है तो महत्वपूर्ण बात होती है। ऐसे इतिहास विषयक जानकारी की खबरों कदम-कदम पर आवश्यकता होती है। यह बात अलग है कि सब इसके महत्व को नहीं समझते हैं। अनेक तीर्थों के उद्धारक बाल ब्रह्मचारी परम पज्य आचार्य देवेश श्रीमद विजय यतीन्द्रसरीश्वरजी म.सा. इतिहास विषय के अध्ययन के महत्व को भलीभांति समझते थे। यही कारण रहा कि उन्होंने इतिहास निर्माण के साधनों में प्रमुख शिलालेखों प्रतिमा लेखों का संग्रह किया । जहां-जहां आपका पर्दापण हुआ उनमें से प्रमुख स्थानों का इतिहासिक विवरण सप्रमाण प्रस्तुत कर अनुयायियों का मार्गदर्शन किया आचार्य श्री द्वारा जिन ग्राम-नगरों के इतिहास लेखन का कार्य अपने साहित्य में किया है वह आज हमारी सांस्कृतिक धरोहर बन गया है। आज वह विवरण इतिहास निर्माण के स्रोत के रूप में काम में लिया जा सकता है। आचार्यश्री के इतिहास विषयक वर्णन अपने इतिहास प्रेम के कारण किया आपका यह प्रयास सराहनीय है। आज जब श्रद्धेय आचार्यश्री की स्मृति में एक आचार्य श्रीमद् विजय यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है तो विश्वास किया जाता है कि उसमें आपके इतिहास प्रेम विषयक विवरण को भी पर्याप्त स्थान मिलेगा। मैं आपके इस आयोजन की सफलता की कामना करते हुए आचार्यश्री के चरणों में वंदन करता हूं। प्रति, ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ लालचंद जैन कालुजी वाला, आहौर प्रधान सम्पादक श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ NENENENINENENENINENERENERENENERENNEReNE (24) RENENENENERENENENENERENENENENENENENENERY Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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