SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 686
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -चतीन्द्र सूरि मारकग्रन्थ -- जैन-साधना एवं आचार जब गन्दे शब्द मन में प्रवेश पा जाते हैं तो वहाँ वे जड़ भी की है? उनकी साधनाओं ने अगर कोई आध्यात्मिक चेतना जमा सकते हैं। वे मन के किसी भी कोने में जम सकते हैं और उत्पन्न की, तो वह कहाँ गायब हो जाती है? इससे तो यही धीरे-धीरे पनप भी सकते हैं, क्योंकि मन जल्दी भूलता नहीं है निष्कर्ष निकलता है कि उनकी वर्षों की साधनाएँ ऊपर-ऊपर और जो शब्द उसके भीतर गूंजते रहते हैं, अवसर पाकर अनजाने की हैं, वे आईं और तैर गईं, उन्होंने जीवन को कोई संस्कार नहीं में ही वे जीवन को आक्रान्त कर देते हैं। अतएव ब्रह्मचर्य के दिया। यह निष्कर्ष भले ही कटु है, पर मिथ्या नहीं है, साथ ही साधक को अपने कान पवित्र रखने चाहिए। वह जब भी सुने, हमारी आँखें खोल देने वाला भी है। पवित्र बात ही सुने और जब कभी प्रसंग आए तो पवित्र बात ही यह समझना गलत है कि वे भद्दे गीत क्षणिक और मन सनने को तैयार रहे । गन्दी बातों का डटकर विरोध करना चाहिए- की तरंग मात्र है। जलाशय में जल की तरंग उठती है. पर तभी मन के भीतर भी और समाज के प्रांगण में भी। घरों में गाये जाने उठती है. जब उसमें जल जमा होता है। जहाँ जल ही न होगा. वाले गन्दे गीत तुरन्त ही बंद कर देने की आवश्यकता है। वहाँ जलतरंग नहीं उठेगी। इसी प्रकार जिस मन में अपवित्रता मुझे मालूम हुआ है कि विवाह-शादियों के अवसर पर और गंदगी के कुसंस्कार न होंगे, उस मन में अपवित्र गीत गाने बहत सी बहिनें गन्दे गीत गाती हैं। जहाँ विवाह का पवित्र वातावरण की तरंग भी नहीं उठनी चाहिए। अतएव यही अनुमान किया जा है, आदर्श है, और जब दो साथी अपने गृहस्थ-जीवन का सकता है कि मन में विकार जमे बैठे थे, प्रसंग आया तो बाहर मंगलाचरण करते हैं, उस अवसर पर गन्दे गीत उस पवित्र वातावरण निकल आए। को कलुषित करते हैं और मन में दुर्भाव उत्पन्न करते हैं। बहुत से लोग बात-बात में गालियाँ बकते हैं। उनकी जिस समाज में इस प्रकार का गन्दा वातावरण है. बरे गालियाँ उनकी असंस्कारिता और फूहड़पन को सचित करती विचार हैं और कलुषित भावनाएँ सहसा पैदा हो जाती हैं, उस हैं, परन्तु यहीं उनके दुष्परिणाम का अन्त नहीं हो जाता है। समाज की उदीयमान प्रजा किस प्रकार सुसंस्कारों और उज्ज्वल उनकी गालियाँ समाज में कलुषित वायुमंडल का निर्माण करती चरित्र वाली बन सकेगी? जो समाज अपने बालकों और हैं। उनकी देखादेखी छोटे-छोटे बच्चे भी गालियाँ बोलना सीख बालिकाओं के हृदय में, कानों द्वारा जहर उँड़ेलता रहता है, उस जाते हैं। जिन फूलों को खिलोने पर सुगन्ध देनी चाहिए, उनसे समाज में पवित्र चारित्र और सत्त्वगणी व्यक्तियों का परिपक्व जब हम अभद्र शब्दों और गालियों की बदबू निकलती देखते हैं, तो दिल मसोस कर रह जाना पड़ता है। मगर बालकों की उन होना कितना कठिन है। गालियों के पीछे वे बड़े हैं, जो विचारहीनता के कारण अपशब्दों ___आश्चर्य होता है जिन्होंने प्रतिदिन, वर्षों तक, सामयिक का प्रयोग करते रहते हैं। की, आगामों का प्रवचन सुना, वीतराग प्रभु और महान् आचार्यों जिस समाज में इस प्रकार की विचारधारा बह रही हो, उस की वाणी सुनी और सन्तों की संगति और उपासना की, उनके समाज की अगली पीढ़ियाँ देवता का रूप लेकर नहीं आने मुख से किस प्रकार अश्लील और गन्दे गाने निकलते हैं? शिष्ट वाली हैं। अगर आपके जीवन में से राक्षसी वृत्तियाँ नहीं निकली और कुलीन परिवार किस हद तक इन गीतों को बर्दाश्त करते हैं तो आपकी सन्तान में दैवी वृत्तियों का विकास किस प्रकार हो हैं? और कोई भी शीलवान् व्यक्ति कैसे ऐसे गीतों को सुनता है? सकता है? देवता की सन्तान देवता बनेगी, राक्षसों की सन्तान अश्लील गीत समाज के होनहार कुमारों और कुमारिओं देवता नहीं बन सकती। के हृदय में वासना की आग भड़काने वाले हैं, कुलीनता और . ये बातें छोटी मालूम होती हैं परन्तु छोटी-छोटी बातें भी शिष्टता के लिए चुनौती हैं और समग्र वायुमंडल को विषमय समय पर बड़ा भारी असर पैदा करती हैं। एक प्राचीन दार्शनिक बनाने वाले हैं। आचार्य ने परमात्मा से बड़ी सुन्दर याचना करते हुए कहा है - मैं नहीं समझ पाता कि जो पुरुष और नारियाँ ऐसे अवसर भद्रं कर्णाभ्याम, शृणुयाम: शरदः शतम् । पर इतनी नीचाई पर पहुँच जाते हैं, उन्होंने वर्षों की साधना क्यों भद्रमक्षिण्यपि पश्यामः शरदः शतम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy