SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म मुनयो वातरशनाः पिशङ्गा वसते मलाः। है। केशी ही प्रकाशमान (ज्ञानमय) ज्योति (केवल-ज्ञानी) है। वातस्थानुधााजिं यन्ति यद्देवासो अविक्षत् ।। वातरशना मुनि से सम्बद्ध इस सूक्त में कुल सात मन्त्र हैं, उन्मदिता मौनेयेन वातां आ तस्थिमा वयम्। जिनमें छठा और सातवाँ मन्त्र भी केशी की स्तुति से ही सम्बद्ध शरीरदेस्माकं यूयं मासो अभि पश्यथ ।। है। ऋग्वेदोक्त केशी देवता ऋषभदेव का ही पर्याय है। (१०.१३६.२-३) ऋषभदेव का केशी विशेषण इस अर्थ में सार्थक है कि अर्थात् अतीन्द्रियार्थदर्शी वातरशना मुनि मल धारण करते उनके केश बड़े खूबसूरत और धुंघराले हैं। उनका रूप-सौंदर्य हो हैं या वे मलिन प्रकाश वाले हैं। इसी कारण वे पिंगलवर्ण के हैं। कामदेव के भी दर्प को चर करने वाला था। भागवत में उपलब्ध जब वे प्राणोपासना द्वारा वाय की गति धारण करते हैं, तब प्राणायाम उनके नखशिख का वर्णन सौन्दर्य-शास्त्रियों के अध्ययन का रूप तप की महिमा से दीप्त देवत्व को प्राप्त कर लेते हैं। उपजीव्य बन सकता है : 'अतिसुकुमारकरचरणोर:स्थलविपुल सब प्रकार के लोक-व्यवहार का त्याग कर हम मौनवृत्ति -बाह्रसगलवदनाद्यवयवविन्यासः प्रकृतिसुन्दरस्वभावहाससुमुखो से या मननशील अन्तःकरण से अतिशय हर्षित होते हैं और नवनलिनदलायमानशिशिरतारारुणायतनयनरुचिर: वायु पर आधृत हो जाते हैं, यानी देहाभिमान से मुक्त घ्यानवृत्ति सदृशसुभगकपोलकर्णकण्ठनासो विगूढस्मितवदनमहोत्सवेन में स्थित हो जाते हैं। फलतः तुम साधारण मनुष्य हमारे केवल पुरवनितानां मनसि कुसुमशरासनमुपदधानः परागलम्बमान बाह्य शरीर मात्र को ही देख पाते हो। सच्चे आभ्यन्तर स्वरूप कुटिलजटिलकपिशकेशभूरिभारो ...।" (५.६.३१) को नहीं (ऐसा वातरशना मनि कहते हैं)। अर्थात ऋषभदेव के हाथ-पैर. छाती. लम्बी-लम्बी बाँहें, ऋग्वेद में वर्णित वातरशना मुनि वे ही हैं, जिन्हें भागवत् कंधे, गले और मुख आदि अंगों की बनावट बड़ी सुकुमार थी, के अनुसार ऋषभदेव ने उपदेश दिया था। भागवत् में यह भी उनका स्वभावतः सुन्दर मुख, स्वाभाविक मधुर मुस्कान से उल्लेख है कि अपने पुत्र भरत को राज्याभिषिक्त करने के बाद और भी मनोहर जान पड़ता था, नेत्र नवीन कमलदल के समान स्वयं ऋषभदेव भी वातारशना मुनि की भाँति अवधूत हो गए थे : बड़े सुहावने, विशाल और कुछ लाली लिए हुए थे, जिनकी ___. भरतं धरणिपालनायाभिषिच्य स्वयं भवनण्वोर्वरित पुतलियाँ शीतल और संतापहारिणी थीं। अपने सभग नेत्रों के शरीरमात्रपरिशद उन्मान व धान रिण कारण वे बड़े रूप-मनोरम प्रतीत होते थे। उनके कपोल, कान आत्मन्यारोपिताहवनीयो ब्रह्मावर्तात्प्रवव्राज। जडान्धमूकबधिर ___ और नासिका आकृत्या समान और सुन्दर थे। उनके अस्फुट सोलोसिसमा हास्य-रंजित मनोहारी मुखारविन्द की शोभा देखकर पुरनारियों के गृहीतमौनव्रतस्तूष्णीं बभूव (५.५.२९)। चित्त में कामदेव का संचार हो जाता था। उनके मनोज्ञ मुख के आगे भरे रंग की लम्बी-लम्बी घंघराली लटें लटकी रहती थीं ...." इस प्रकार ऋग्वेद में संकेतित वातरशना मनियों के उपदेशक ऋषभदेव स्वयं भी वातरशना मुनियों के प्रमुख प्रमाणित होते हैं। भगवान् ऋषभदेव के कुंचित केशों की परम्परा ऋग्वेद साथ ही ऋग्वेदवर्णित वातरशना मुनियों के लक्षण भागवत् के में, वातरशना मुनियों के वर्णन के क्रम में, केशी नाम में प्राप्त ऋषभदेव में भी परिलक्षित होते हैं। होती है और फिर यही वर्णन-परम्परा कुटिल-जटिल-कपिश केशभूरिभारो श्रीमद्भागवत में भी मिलती है। जैन-परम्परा में ऋग्वेद के उक्त सूक्त में ही 'केशी' की स्तुति उपलब्ध होती है। ऋषभदेव की मूर्तियों के सिरों पर कुंचित केशों की अंकनप्रथा यह 'केशी और कोई नहीं, वरन् ऋषभदेव ही हैं। मंत्र इस प्रकार है प्राचीनकाल से चली आई है, जो आज भी कायम है। यह केश्यग्नि केशी विषं केशी विभर्ति रोदसी। ऋषभदेव का विशेष अभिज्ञान है। केसर, केश और जटा तीनों केशी विश्वं स्वर्द्वशे केशीदं ज्योतिरुच्यते ।।(१०.१३६.१) एक ही अर्थ के वाचक हैं। ऋषभदेव को 'केसरियानाथ' भी केशी अग्नि, जल, स्वर्ग (आकाश) और पृथ्वी को धारण कहते हैं। सिंह भी अपने केशों या केसरों के कारण ही केसरी करता है। केशी समस्त जगत् को व्यापकता के साथ दृष्टिगत कराता कहलाता है। शब्दसाम्य के कारण केसरियानाथ पर केसर चढ़ाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy