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________________ यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म में इस बात में भी सहमत हैं कि महावीर ने तीस वर्ष की आयु संन्यास ग्रहण किया था, यद्यपि उनके संन्यास ग्रहण करते समय उनके माता-पिता जीवित थे या मृत्यु को प्राप्त हो गए थे, इस बात को लेकर पुनः मतभेद हैं, श्वेताम्बर - परम्परा के अनुसार महावीर ने गर्भस्थकाल में की गई अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार अपने माता-पिता के स्वर्गवास के पश्चात् ही अपने भाई नन्दी से आज्ञा लेकर संन्यास ग्रहण किया, २९३ परन्तु दिगम्बर- परम्परा के अनुसार महावीर ने अपने माता-पिता की आज्ञा से संन्यास ग्रहण किया था। महावीर का साधना-काल अत्यन्त दीर्घ रहा, उन्होंने बारह वर्ष, छह माह तपस्या करके वैशाख शुक्ला दशमी को बयालीस वर्ष की अवस्था में कैवल्यज्ञान प्राप्त किया था । २१४ वे कैवल्य प्राप्ति के पश्चात् लगभग ३० वर्ष तक अपना धर्मोपदेश देते रहे और अंत में ७२ वर्ष की अवस्था में मध्यम - पावा में निर्वाण को प्राप्त हुए । उनके संघ में १४००० श्रमण तथा ३६०० श्रमणियाँ थीं । २१५ महावीर के जीवनवृत्त - सम्बन्धी प्राचीनतम उल्लेख हमें आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के उपधान सूत्रनामक नवें अध्ययन में तथा द्वितीय श्रुत-स्कन्ध के भावना नामक अध्ययन में मिलता में पुनः महावीर के जीवनवृत्त का विस्तृत उल्लेख कल्पसूत्र उपलब्ध होता है। इसके पश्चात् आवश्यकचूर्णि और परवर्ती महावीर - चरित्रों में मिलता है। महावीर के जीवनवृत्तों को हम कालक्रम में देखें, तो ऐसा लगता है कि प्राचीन ग्रंथों में उनके जीवन के साथ बहुत अधिक अलौकिकताएँ नहीं जुड़ी हुई हैं, किन्तु क्रमशः उनके जीवनवृत्त में अलौकिकताओं का प्रवेश होता गया, जिसकी चर्चा हम पूर्व में कर चुके हैं। महावीर की ऐतिहासिकता - महावीर की ऐतिहासिकता निर्विवाद है। महावीर के जन्मस्थल कुण्डग्राम को आजकल वसुकुण्ड कहते हैं, जो कि आज भी गण्डक नदी के पूर्व में स्थित है। बसाढ़ की खुदाई से प्राप्तं सिक्के और मिट्टी की सीलें ईसा पूर्व लगभग तीसरी शताब्दी की कही जाती हैं। सिक्कों पर अंकित - 'वसुकुण्डे जन्मे वैशालिये महावीर' से महावीर की ऐतिहासिकता सिद्ध होती है। वर्धमान महावीर को बौद्ध पिटक -ग्रंथों में 'निगंठ- नातपुत्त' कहा गया है । २१६ निर्ग्रन्थ- परम्परा का होने के कारण सम्भवतः महावीर को निगंठ (निर्ग्रन्थ) तथा ज्ञातृवंशीय क्षत्रिय होने के कारण नातपुत्त कहा गया हो । Jain Education International For Private दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों ही परम्पराओं ने महावीर को 'कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ का पुत्र माना है । दिगम्बर-ग्रन्थों तिलोयपण्णत्ति, देशभक्ति और जयधवला में सिद्धार्थ को 'णाह' वंश या नाथ वंश का क्षत्रिय कहा गया है२९७ और श्वेताम्बरग्रन्थ सूत्रकृतांग में 'णाय' कुल का उल्लेख है । २१८ इसी कारण से महावीर को णायकुलचन्द और णायपुत्त कहा गया है। णाह, णाय, णात शब्द एक ही अर्थ के वाचक प्रतीत होते हैं। इसीलिए 'बुद्धचर्या में श्री राहुलजी ने नाटपुत्त का अर्थ - ज्ञातृपुत्र और नाथपुत्र दोनों किया है। ४ ७ अस्तु यह निर्विवाद सिद्ध हो जाता है कि बौद्ध ग्रंथों के निग्रंथ 'नाटपुत्त' कोई और न होकर महावीर ही थे, जिस प्रकार शाक्यवंश में जन्म होने के कारण बुद्ध के अनुयायी 'शाक्यपुत्रीय श्रमण' कहे जाते थे । २१९ इस तरह महावीर के अनुयायी 'ज्ञातृपुत्रीय निर्ग्रन्थ' कहे जाते थे । २२० श्री बुहलर ने अपनी पुस्तक 'इण्डियन सेक्ट ऑफ दी "बौद्ध जैनास्' में इस विषय पर प्रकाश डालते हुए लिखा है२२१ - पिटकों का सिंहली संस्करण सबसे प्राचीन माना जाता है। ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में उसको अंतिम रूप दिया गया, ऐसा विद्वानों का मत है। उसमें बुद्ध के विरोधी रूप में निगंठों का उल्लेख है। संस्कृत में लिखे गए उत्तरकालीन बौद्ध-साहित्य में भी निर्ग्रन्थों को बुद्ध का प्रतिद्वंद्वी बतलाया गया है। उन निगंठों या निर्ग्रन्थों के प्रमुख को पालि में नाटपुत्त और संस्कृत में ज्ञातृपुत्र कहा गया है। इस प्रकार यह सुनिश्चित हो जाता है कि नापुत्त या ज्ञातृपुत्र तथा जैनसम्प्रदाय के अंतिम तीर्थंकर वर्धमान एक ही व्यक्ति हैं । २२२ बौद्ध त्रिपिटक और अन्य बौद्ध साहित्य से यह स्पष्ट हो जाता है कि बुद्ध के प्रतिद्वंद्वी वर्धमान (नाटपुत्त) बहुत ही प्रभावशाली थे और उनका धर्म काफी फैल चुका था । २२३ महावीर-युग की धार्मिक मान्यताएँ ईसा पूर्व छठी - पाँचवीं शताब्दी धार्मिक आन्दोलन का युग था। उस समय भारत में ही नहीं, सम्पूर्ण एशिया में पुरानी धार्मिक मान्यताएँ खण्डित हो रही थीं और नए-नए मतों या सम्प्रदायों का उदय हो रहा था। चीन में लाओत्से और Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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