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________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ : जैन-धर्म हुआ है। १९. मल्लि पं. दलसुख भाई मालवणिया ने 'जैन-साहित्य का वृहद् "मल्लि" को इस अवसर्पिणी काल का १९वाँ तीर्थंकर इतिहास' की भूमिका में अर की बौद्धपरम्परा के अरक बुद्ध से माना गया है।१७१ इनके पिता का नाम कुंभ और माता का नाम समानता दिखाई है। बौद्ध-परम्परा में अरक नामक बुद्ध का प्रभावती था। मल्लि की जन्मभूमि विदेह की राजधानी मिथिला उल्लेख प्राप्त होता है। भगवान बुद्ध ने पूर्वकाल में होने वाले मानी गई है।९७२ इनके शरीर की ऊँचाई २५ धनुष और रंग साँवला सात शास्ता वीतराग तीर्थंकरों की बात कही है। आश्चर्य यह है माना गया है।९७३ सम्भवतः जैन-परम्परा के अंग-साहित्य में कि उसमें भी इन्हें तीर्थंकर (तित्थकर) कहा गया है।१६८ इसी महावीर के बाद यदि किसी का विस्तृत उल्लेख मिलता है, तो प्रसंग में भगवान् बुद्ध ने अरक का उपदेश कैसा था, इसका वह मल्लि का है। ज्ञाताधर्मकथा में मल्लि के जीवन वृत्त का वर्णन किया है। उनका उपदेश था कि सूर्य के निकलने पर जैसे विस्तार से उल्लेख उपलब्ध है। जैनधर्म की श्वेताम्बर और घास पर स्थित ओसबिन्दु तत्काल विनष्ट हो जाते हैं, वैसे ही दिगम्बर परम्पराएँ मल्लि के जीवनवृत्त के सम्बन्ध में विशेष तौर मनुष्य का यह जीवन भी मरणशील होता है, इस प्रकार ओस से इस बात को लेकर कि वे पुरुष थे या स्त्री मतभेद रखती है। बिन्दु की उपमा देकर जीवन की क्षणिकता१६९ बताई गई है। दिगम्बर परम्परा की मान्यता है कि मल्लि पुरुष थे, जबकि उत्तराध्ययन में भी एक गाथा इसी तरह की उपलब्ध है - श्वेताम्बर परम्परा उन्हें स्त्री मानती है। सामान्यतया जैन-परम्परा 'कुसग्गे जह ओसबिन्दुए थोवं चिट्ठइ लंबमणिए। में यह माना गया है कि पुरुष ही तीर्थंकर होता है, किन्तु श्वेताम्बर एवं मणयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए।। '१७० आगम-साहित्य में यह भी उल्लेख है कि इस कालचक्र में जो विशेष आश्चर्यजनक १० घटनाएँ हुईं, उनमें महावीर का गर्भापहरण इसमें भी जीवन की क्षणिकता के बारे में कहा गया है। और मल्लि का स्त्री रूप में तीर्थंकर होना विशेष महत्त्वपूर्ण है। अतः भगवान् बुद्ध द्वारा वर्णित अरक का हम जैनपरम्परा के अटठारहवें तीर्थंकर अर के साथ कछ मेल बैठा सकते हैं या श्वेताम्बर-आगम ज्ञाताधर्मकथा के अनुसार मल्लि के नहीं, यह विचारणीय है। जैनशास्त्रों के आधार से अर की आयु । सौंदर्य पर मोहित होकर साकेत के राजा प्रतिबुद्ध, चम्पा के राजा ८४००० वर्ष मानी गई है और उनके बाद होने वाले मल्लि चन्द्रछाग, कुणाल के राजा रुक्मि, वाराणसी के राजा शंख, तीर्थकर की आय ५५ हजार वर्ष है। अतएव पौराणिक दष्टि से हस्तिनापुर के राजा अदीनशनु और कम्पिलपुर के राजा जितशत्र. विचार किया जाए, तो अरक का समय अर और मल्लि के बीच । ठहरता है। इस आयु के भेद को न माना जाए, तो इतना कहा ही छहों को समझाकर वैराग्य के मार्ग पर लगा दिया। इन सभी ने छहा का र जा सकता है कि अर या अरक नामक कोई महान् व्यक्ति मल्लि के साथ दीक्षा ग्रहण कर ली। मल्लि ने जिस दिन संन्यास प्राचीन पुराणकाल में हुआ था, जिनसे बौद्ध और जैन दोनों ने ग्रहण किया, उसी दिन उन्हें केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। मल्लि के तीर्थंकर का पद दिया है। दूसरी बात यह भी ध्यान देने योग्य है ४० हजार श्रमण, ५० हजार श्रमणियाँ और १ लाख ८४ हजार कि इस अरक से भी पहले बद्ध के मत से अरनेमि नामक एक गृहस्थ उपासक तथा ३ लाख ६५ हजार गृहस्थ उपासिकाएं थीं।७४ तीर्थंकर हुए हैं। बौद्ध-परम्परा में बताए गए अरनेमि और जैन जैन-परम्परा के अनुसार इन्होंने सम्मेतशिखर पर निर्वाण तीर्थंकर अर का भी कोई संबंध हो सकता है, यह विचारणीय प्राप्त किया।१७५ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवोंहै। नामसाम्य तो आंशिक रूप से है ही और दोनों की पौराणिकता महाबल राजा और अहमिन्द्र देव का उल्लेख हुआ है। भी मान्य है। हमारी दृष्टि में अरक का संबंध अर से और अरनेमि का संबंध अरिष्टनेमि से जोड़ा जा सकता है। बौद्ध-परम्परा में २०. मुनिसुव्रत अरक का जो उल्लेख हमें प्राप्त होता है, उसे हम जैन-परम्परा जैन-परम्परा में बीसवें तीर्थंकर मुनि सव्रत माने गए हैं।१७६ के अरतीर्थंकर के काफी समीप पाते हैं। इनके पिता का नाम सुमित्र, माता का नाम पद्मावती और जन्मस्थान राजगृह माना गया है।७७ इनके शरीर की ऊँचाई २० धनुष और ravirariabeshiorestriariwariwaridroidrowardrowini ४ २odmonitorinsionidiodominiromidnirdestoribards Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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