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________________ - यतीन्द्रसूरिस्मारकग्रन्य - जैन दर्शन - बाध हेत्वभासों को देखा जाता है।१३६ वेदान्त दर्शन में न्याय दर्शन प्रतिपाद्यसिद्ध पक्षाभास है। जो पक्ष किसी कारण से बाधित हो द्वारा प्रतिपादित हेत्वाभासों का खंडन प्राप्त होता है। १३७ जाए उसे बाधित पक्षाभास कहते हैं। इसके चार भेद होते हैं - बौद्ध दर्शन - नागार्जन ने हेत्वामास के आठ प्रकार (१) प्रत्यक्षबाधित- जो प्रत्यक्ष से बाधित है। जैसे - बताए हैं - १३८ (१) वाक्छल, (२) सामान्यछल, (३) संशयसम, स्वलक्षण निरंश है। (४) कालातीत, (५) प्रकरणसम, (६) वर्ण्यसम, (७) व्यभिचार (२) अनुमानबाधित - जो अनुमान से बाधित है। जैसे तथा (८) विरुद्ध। - सर्वज्ञ नहीं है। (३) लोकबाधित - जो लोक द्वारा बाधित है। जैसे - असङ्ग के मत में हेत्वाभास दो हैं१३९ - अनिश्चित अथवा माता गम्य है। अनैकान्तिक तथा साध्यसम। (४) स्ववचनबाधित - जो अपने वचन के कारण वसुबन्धु के अनुसार हेत्वाभास तीन हैं १४० - असिद्ध, बाधित है। जैसे - सब भाव नहीं हैं। अनिश्चित तथा विरुद्ध हेत्वाभास - जैन दर्शन - "अन्यथानपपन्नत्वं हेतोर्लक्षणमीरितम । समन्तभद्र जैनतर्क में हेत्वाभास की स्पष्ट व्याख्या तो सिद्धसेन तत्प्रतीतिसंदेह विपर्यासैस्तदामता।।११४३ दिवाकर की रचना में मिलती है किन्तु उनके पूर्ववर्ती आचार्य अन्यथानुपपन्नत्व हेतु का लक्षण है, अर्थात् साध्य के समन्तभद्र ने विज्ञानाद्वैत के खंडन के सिलसिले में प्रतिज्ञाभास बिना उत्पन्न न होना किन्तु जब इस बात का अभाव होता है, तथा हेत्वाभास की चर्चा की है। उनके विचार को डॉ. कोठिया यानी साध्य के न होने पर भी साधन या हेतु का होना हेत्वाभास इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं १४१ - होता है। "विज्ञप्तिमात्रता की सिद्धि यदि साध्य और साधन के ज्ञान हेत्वाभास के तीन प्रकार हैं - असिद्ध, विरुद्ध तथा से की जाती है, तो अद्वैत की स्वीकृति के कारण न साध्य संभव है अनैकान्तिक। और न हेत्, अन्यथा प्रतिज्ञादोष और हेतदोष प्राप्त होंगे।" "असिद्धस्त्वप्रतीतो यो योऽन्ययैवोपपद्यते। इससे यह कहा जा सकता है कि समन्तभद्र ने प्रतिज्ञादोष विरुद्धो योन्यथाप्यत युक्तोऽनैकान्तिकः स तु।।''१४४ यानी प्रतिज्ञाभास तथा हेतु दोष यानी हेत्वामास को माना है। असिद्ध - जिसकी प्रतीति अन्यथानुपपन्नत्व से नहीं होती है। सिद्धसेन दिवाकर - विरुद्ध - जो साध्य के न होने पर ही उत्पन्न होता है, यानी सिद्धसेन दिवाकर ने तीन प्रकार के आभासों को मान्यता विपक्ष में उत्पन्न होता है, उसे विरुद्ध कहते हैं। दी है और उनके विवेचन-विश्लेषण किए हैं - (१) पक्षामास अनैकान्तिक - साध्य तथा साध्यविपर्यय दोनों ही के (२) हेत्वाभास तथा (३) दृष्टान्ताभास। साथ जो हो, उसे अनैकान्तिक हेत्वाभास कहते हैं। पक्षाभास - जो पक्ष के स्थान पर आता है किन्तु पक्ष दृष्टान्तामास - का काम नहीं करता, जो पक्ष जैसा लगता है, उसे पक्षाभास कहते हैं। "साधर्म्यणात दृष्टान्तदोषा न्यायविदीरिता। अपलक्षणहेतूत्याः साध्यादि विकलादयः।।' १५४५ "प्रतिपाद्यस्य यः सिद्धः पक्षामासोऽक्षलिङ्गतः। लोकस्ववचनाभ्याम् च बाधितोऽनेकधा मतः।।'१४२ जिन हेतुओं में हेतु के लक्षण नहीं हैं, उनसे उत्पन्न होने के पक्षामास के दो प्रकार होते हैं - (१) प्रतिपाद्यसिद्ध पक्षाभास कारण दृष्टान्त आभास हो जाता है। जो दृष्टान्त दोष साधर्म्य के तथा (२) बाधित पक्षामास। प्रतिवादी को सिद्ध होने वाला द्वारा होता है उसे साधर्म्य दृष्टान्ताभास कहते हैं। इसके छह भेद होते हैं।१४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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