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________________ चतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ जैन दर्शन को पाँच प्रकार का बताया है- (१) लिङ्ग पर आधारित अनुमान, जैसे धूम से अग्नि का अनुमान । (२) स्वभाव पर आधारित अनुमान, जैसे- एक चावल को देखकर हंडे के संपूर्ण चावलों के पकने का अनुमान । (३) कर्म पर आधारित अनुमान, जैसे-सूँघने से नाक का अनुमान । (४) गुण पर आधारित अनुमान, जैसे- अनित्य वस्तु से दुःख का अनुमान । (५) कार्य कारण पर आधारित अनुमान -- जैसे अधिक भोजन से पेट भरने का अनुमान या पेट भरने से अधिक भोजन खाने का अनुमान | जैन- दर्शन - अनुयोगद्वारसूत्र १२१ में अनुमान के प्रकारों का विवेचन करते हुए कहा गया है अनुमान तीन प्रकार के होते हैं -- पूर्ववत्, शेषवत् तथा सामान्यतोदृष्ट । पूर्ववत् - - पहले से जाने हुए हेतु को देखकर जो अनुमान किया जाता है उसे पूर्ववत् अनुमान कहते हैं। इसे समझने के लिए सूत्रकार ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है जिसमें पुत्र संबंधी एक माँ के द्वारा किया गया अनुमान विवेचित है - किसी माँ का पुत्र छोटी अवस्था में घर छोड़कर अन्य किसी स्थान पर चला गया और वह उस समय लौटा जब युवा हो गया था । किन्तु माँ अपने पुत्र की देह के विभिन्न चिन्हों को देखकर पहचान गई। उसने चिन्हों के आधार पर अनुमान करते हुए कहा - यह मेरा पुत्र है १२२ । शेषवत् - उन दो पदार्थों में से किसी एक को देखकर दूसरे का अनुमान करना, जो एक-दूसरे से संबंधित होते हैं तथा साथ रहते हैं। शेषवत् अनुमान के पाँच प्रकार बताए गए हैं- (क) कार्येण - अर्थात् कार्य को देखकर कारण का अनुमान करना ध्वनि से शंख का, ताडन से भेरी का, ढक्कित ध्वनि सुनकर बैल का, केकायित सुनकर मोर का, हिनहिनाना सुनकर घोड़े का, चिंघाड़ना सुनकर हाथी का तथा घणघणाना सुनकर रथ का अनुमान करना आदि कार्यतः अनुमान है। (ख) कारणेन -- कारण को देखकर कार्य का अनुमान करना । तन्तु को देखकर वस्त्र का अनुमान करना क्योंकि तन्तु वस्त्र कारण है, वस्त्र तन्तु का कारण नहीं है। मिट्टी के पिण्ड को টটট Jain Education International देखकर घट का अनुमान करना क्योंकि मिट्टी, पिण्ड घट का कारण है। घट मिट्टी के पिण्ड का कारण नहीं है। इस तरह से बादल को देखकर वृष्टि का अनुमान करना, चंद्रमा के उदित होने से समुद्र में तूफान तथा सूर्य को उगते हुए देखकर कमल के खिलने का अनुमान आदि कारणतः अनुमान है। (ग) गुणेन -- गुण के आधार पर गुणी का अनुमान करना । कसौटी से. स्वर्ण का बोध, गंध से फूल का बोध, रस से स्वाद का बोध, सुगंध से मदिरा का बोध, छूने से वस्त्र का बोध करना गुणतः अनुमान है। (घ) अवयवेन -- अवयव के आधार पर अवयवी का अनुमान करना । अवयव को देखकर अवयवी का या अंग को देखकर अवयवी का अनुमान करना। सींगों को देखकर भैंस का ज्ञान करना, चोटी को देखकर मुर्गे का, दाँतों को देखने के बाद हाथी का, दाढ़ देखकर सूअर का, मोर का पंख देखकर मोर का, खुर देखकर घोड़े का, नखों को देखकर बाघ का बोध करना आदि अवयवतः अनुमान है। (ङ) आश्रितेन -- आश्रित रहने वाली वस्तु को देखकर आश्रय का अनुमान करना, जैसे धूम को देखकर अग्नि का अनुमान करना । ये सभी आश्रयतः अनुमान है। दृष्टसाधर्म्यवत् - इसके दो प्रकार हैं - (१) सामान्यतोदृष्ट-- किसी एक व्यक्ति को देखकर उसके देश (तद्देशीय) के या उसकी जाति के अन्य लोगों का अनुमान करना सामान्यतोदृष्टअनुमान है। (२) विशेषतोदृष्ट-- विशेष गुण को देखकर किसी व्यक्ति या वस्तु का अनुमान करना विशेषतोदृष्ट अनुमान है, जैसे अनेक व्यक्तियों में से किसी एक को अलग करके उसकी विशेषता पर प्रकाश डालना। कोई व्यक्ति जनसमूह में अपने मित्र को उसकी विशेषता के आधार पर पहचान लेता है। काल के आधार पर अनुमान के भेद--इसके आधार पर अनुमान के तीन भेद किए गए हैं- (१) अतीतकाल - ग्रहण, (२) प्रत्युत्पन्नकाल- ग्रहण तथा (३) अनागतकाल-ग्रहण | सिद्धसेन दिवाकर इन्होंने कहा है १२३ - जब व्यक्ति अपने ही समान दूसरे को भी निश्चय करवाता है तो उसे ही ४onn For Private Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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