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________________ - चतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्ध - जैन दर्शन न्यूटॉन। ये तीनों किस अवस्था में किस प्रकार स्थित होते हैं मानव जगत् में मूलभूत परिवर्तन का कारण बन गयी। परमाणुवाद जिससे कि वे एक परमाणु की रचना करते हैं, फिर परमाणुओं के साथ ऊर्जा संप्रत्यय अनिवार्य रूप से जुड़ा रहता है। के मिलने से अणु और अणुओं के संयोग से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड रेडियोधर्मिता भी परमाणुवादी सिद्धान्त का एक महत्त्वपूर्ण अध्याय निर्मित हो जाता है। वैज्ञानिकों ने इस दिशा में मात्र चिंतन ही नहीं है जो ऊर्जा-प्राप्ति का एक आश्चर्यजनक अक्षय भंडार है। यह किया वरन् विभिन्न प्रकार के प्रयोगों द्वारा इसे निर्धारित करने अनायास मनुष्य के हाथ लग गया और मानव इसका प्रयोग का प्रयत्न भी किया। इस कोटि में कई वैज्ञानिकों का नाम रखा उपयोगी और दुरुपयोगी दोनों प्रकार के हित साधन-हेतु कर जा सकता है। लेकिन संभवतः थामसन, जे.जे. ने परमाणु संरचना रहा है। बोर द्वारा प्रतिपादित परमाण्विक मॉडल प्रायः अधिसंख्य के संबंध में जो मॉडल प्रस्तुत किया वह परमाणु संरचना का तत्त्वों के परमाणुओं को निर्दिष्ट करता है, लेकिन इस जगत् में दिग्दर्शन कराने वाला प्रथम मॉडल माना जा सकता है। कुछ ऐसे भी तत्त्व हैं जिन्हें भारी तत्त्व (Heavy element) कहा थामसन ने परमाणु को गोल तरबूज के समान माना तथा जाता है। इनके परमाणुओं में निरंतर परिवर्तन होता रहता है और यह मत प्रस्तुत किया कि तरबूज के बीज की भाँति इलेक्टॉन इस परिवर्तन के कारण तत्त्व की अवस्था में तो परिवर्तन होता परमाणु के अंदर चारों तरफ बिखरे रहते हैं। प्रोटॉन गदे की भाँति ही है उसके गुणधर्म भी प्रायः बदल जाते हैं। इन्हें रेडियोधर्मी बीच में स्थित रहता है।६। परमाण की इस संरचना ने वैज्ञानिकों तत्व (Redio active Element) कहा जाता है। को एक नया चिंतन दिया। वे इस दिशा में निरंतर कार्य करते रेडियोधर्मी तत्त्व के परमाण अस्थायी अवस्था में रहते हैं। रहे। रदरफोर्ड नामक वैज्ञानिक ने परमाणु-आकृति का एक परमाणु स्थायी अवस्था में आने के लिए निरंतर प्रयत्नशील दूसरा मॉडल प्रस्तुत किया। इन्होंने केन्द्रक (Nucleus) को परमाणु रहते हैं, क्योंकि इनमें समायोजन (Re-adjust) की प्रवृत्ति रहती संरचना के साथ संबंधित किया। इनके अनुसार धनावेशित है। अतएव अस्थायी परमाणु में तब तक परिवर्तन का क्रम बना प्रोटॉन परमाणु के केन्द्र में स्थित रहता है, जो केन्द्रक (Nucleus) रहता है, जब तक ये स्थायी अवस्था को प्राप्त न कर लें। कहलाता है। इसी के साथ न्यूट्रॉन भी रहता है। इलेक्ट्रॉन परमाणुओं की स्थायी एवं अस्थायी अवस्था का कारण केन्द्रक केन्द्रक के चारों तरफ समान रूप से बिखरा रहता है। में उपस्थित कणों एवं प्रतिकणों के बीच पाए जाने वाले आकर्षण परमाणु संबंधी रदरफोर्ड का यह मॉडल एक नई जिज्ञासा बल हैं। छोटी तथा बड़ी द्रव्यमान संख्या वाले केन्द्र को की उत्पन्न करने वाला माना गया। क्योंकि इसने यह मत प्रस्तुत प्रतिकण बंधन-ऊर्जा कम ही होती है, फलस्वरूप ये केन्द्रक किया कि इलेक्ट्रॉन केन्द्रक के चारों तरफ समान रूप से बिखरे कम स्थायी रहते हैं। रेडियम एक रेडियोधर्मी तत्त्व है, जिसका रहते हैं, लेकिन इसने यह नहीं बताया कि इलेक्ट्रॉन का यह परमाणुभार २२६ है। केंद्रक में परमाणु का लगभग संपूर्ण भार समान बिखराव किस रूप में होता है। बोर (Bohr) नामक वैज्ञानिक __ और धन-आवेश निहित रहता है। अतः परमाणु भार केन्द्रक ने अपना ध्यान इस दिशा में केन्द्रित किया और उसने परमाण की का सूचक माना जाता है। आकृति का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया। इनके मॉडल की परमाणुओं का यह अवस्था परिवर्तन असीमित मात्रा में विशेषता थी--इलेक्ट्रॉन केन्द्रक के चारों तरफ समान रूप से ऊर्जा उत्पन्न करता है, अथवा ऊर्जा-क्षय का कारण बनता है। बिखरे नहीं रहते हैं, बल्कि ये केंद्रक के चारों तरफ एक नियत ऊर्जा का यह क्षय केन्द्रक से नि:सृत होता है। प्रायः इससे कक्षा में परिभ्रमण करते रहते हैं। बाद में यह परमाण्विक संरचना निकली हुई ऊर्जा-किरणों को वैज्ञानिकों ने एल्फा (३) बीटा, (b) भी विवाद का विषय बन गयी, लेकिन यह परमाणु-संरचना का एवं गामा (1) नाम दिया है। प्रत्येक किरण का अपना अलगअध्ययन करने वालों के लिए अभी भी महत्त्वपूर्ण मॉडल है। अलग तरंगदैर्घ्य (Wave length) होता है। यही इनकी विशेषता है जो विभिन्न प्रकार से उपयोगी बन जाती है। भारी तत्त्वों के रेडियोधर्मिता, ऊर्जा एवं परमाणुवाद नाभिकों के इस क्षय के परिणामस्वरूप विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म परमाणुवाद अपनी नवीन संकल्पनाओं के लिए सर्वदा कणों की उत्पत्ति होती है। इनमें से कुछ विद्युतीय आवेश से प्रसिद्ध रहा है। रेडियोधर्मिता परमाणुवाद की एक ऐसी देन है जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012036
Book TitleYatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinprabhvijay
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year1997
Total Pages1228
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size68 MB
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